संदेश

2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शादी- विवाह

आज तक जितनी शादियों मे मै गया हूँ, उनमे से करीब 80% में दुल्हा-दुल्हन की शक्ल तक नही देखी... उनका नाम तक नही जानता था... अक्सर तो विवाह समारोहों मे जाना और वापस आना भी हो गया पर ख्याल तक नही आया और ना ही कभी देखने की कोशिश भी की, कि स्टेज कहाँ सजा है, युगल कहाँ बैठा है...  बैठा भी है कि नहीं, या बरात आई या नहीं... भारत में लगभग हर विवाह में हम 70% अनावश्यक लोगों को आमंत्रण देते हैं...  अनावश्यक लोग वो है जिन्हें आपके विवाह मे कोई रुचि नही..वे केवल दावत में आये होते हैं... जो आपका केवल नाम जानते हैं. जो केवल आपके घर की लोकेशन जानते हैं.. जो केवल आपकी पद-प्रतिष्ठा जानते हैं. और जो केवल एक वक्त के स्वादिष्ट और विविधता पूर्ण व्यञ्जनों का स्वाद लेने आते हैं...  ये होते हैं अनावश्यक लोग.. विवाह कोई सत्यनारायण भगवान की कथा नही है कि हर आते जाते राह चलते को रोक रोक कर प्रसाद दिया जाए. केवल आपके रिश्तेदारों, कुछ बहुत निकटस्थ मित्रों के अलावा आपके विवाह मे किसी को रुचि नही होती..  ये ताम झाम, पंडाल झालर, सैकड़ों पकवान, आर्केस्ट्रा DJ, दहेज का मंहगा सामान एक संक्रामक बीमारी का ...

किसान आंदोलन

जब कभी आंदोलन की शुरुआत होती है तो सरकारें उसको औचित्यहीन बताते हुए नजरअंदाज करती है।जब आंदोलन की तीव्रता बढ़ती है तो सरकार अपने लोगों द्वारा उनको बदनाम करने की कोशिश करती है।जब बदनाम करने में नाकाम हो जाती है और आंदोलन आगे बढ़ जाता है तो सरकार असामाजिक तत्वों को हिंसक बनाने के कार्य पर लगा देती है। अब तक का किसान आंदोलन बेहद अनुशासित,शांतिपूर्ण रहा है।  ऐसे में सरकार ने खुद ही किसानों के रास्ते रोककर,सड़के खोदकर गलती कर डाली।सरकारी तानाशाही व गलतियों के कारण देशभर के किसानों में हलचल पैदा हुई।दिल्ली की तरफ कूच करने लगे। सोशल मीडिया ने  आईटी सेल वालों को मुंहतोड़ जवाब दिया है और बेहद शालीन,तर्कपूर्ण व संयमित तरीके तल्ख लहजे में आईना दिखाया है। अब सरकार व किसान नेताओं पर सबकुछ निर्भर है।केंद्रीय कृषि मंत्री कह रहे है कि मैं बात करूंगा यानि सरकार की तरफ से दूसरी बड़ी गलती की जा रही है।किसान नेताओं को इसका लाभ उठाना चाहिए।किसी भी सूरत में बुराड़ी गांव के निरंकारी ग्राउंड में जाने की भूल नहीं करनी चाहिए।आंदोलन अपनी तीव्रता के चरम पर है और बड़े स्तर पर लामबंदी हो रही है ऐसे में जितना लंबा...

मन की थकान

 देखते है के मज़बूत दिखने वाले लोग भी अचानक जीवन से पलायन कर जाते है... क्यों?? संघर्ष सभी को थकाता है। ऐसे में अगर भावनात्मक स्थिरता साथ छोड़ने लगे तो आत्मविश्वास भी छूटने लगता है।  “मैं काफ़ी हूँ” ख़ुद पर यह भरोसा अच्छी बात है,  लेकिन मुझे “कब” सहायता की आवश्यकता है, यह परख आनी भी बहुत ज़रूरी होती है। कई बार हम अपने आत्मविश्वास को एक ज़िम्मेदारी की तरह “ओढ़” लेते है, एक लम्बे समय तक आत्मविश्वास से परिपूर्ण रहने वाले व्यक्ति के किए औरों के आगे यह स्वीकार करना कठिन होता है के उसका मन भी कमज़ोर पड़ रहा है। “मन का मज़बूत होना” और “मन को मज़बूत दिखाना” दो अलग बातें है। जीवन की सौ प्रतिशत परिस्थितियों में मन मज़बूत रहेगा — यह ज़रूरी नहीं है!   कितना भी मज़बूत व्यक्ति हो “थकान” सभी को होती है, पर बहुत से लोग इस थकान को उतारने का प्रबन्ध करने की बजाय अपनी बची खुची ऊर्जा इस थकान को ढकने-छुपाने-cover up करने में खर्च करने लगते है। जब के यह समय सहायता लेने का होता है !  नतीजा, ऊपर से स्थिर दिखने वाला मन एक दिन ढह जाता है और लोगों को लगता है — “अचानक हो गया” कोई मन “...

तुकाराम ओम्बले

चित्र
26/11 स्वर्गीय तुकाराम ओम्बले जी!     कितना बड़ा कलेजा चाहिए AK-47 की नली के सामने अपनी छाती कर के सैकड़ों लोगों को मार चुके राक्षस का गिरेबान पकड़ने के लिए... एक गोली, दो गोली, दस गोली, बीस गोली... चालीस गोली... चालीस गोलियां कलेजे के आरपार हो गईं पर हाथ से उस राक्षस की कॉलर नहीं छूटी। प्राण छूट गया, पर अपराधी नहीं छूटा... कर्तव्य निर्वहन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है यह।     स्वर्गीय ओम्बले सेना में नायक थे। सेना से रिटायर होने के बाद उन्होंने मुंबई पुलिस ज्वाइन की थी। चाहते तो पेंशन ले कर आराम से घर रह सकते थे। पर नहीं, वे जन्मे थे लड़ने के लिए, जीतने के लिए...  होते हैं कुछ योद्धा, जिनमें लड़ने की जिद्द होती है... वे कभी रिटायर नहीं होते, कभी बृद्ध नहीं होते, मृत्यु के क्षण तक युवा और योद्धा ही रहते हैं।     एक थे कैप्टन विक्रम बत्रा... कारगिल युद्ध में एक चोटी जीत लिए, तो अधिकारियों से जिद्द कर के दूसरी चोटी के युद्ध में निकल गए, दूसरी जीत के बाद तीसरी, तीसरी के बाद चौथी... अधिकारियों ने छुट्टी दी, तो नकार दिए। कहते थे, "ये दिल मांगे मोर.." जब त...

तनाव

डिप्रेशन जितनी जटिल समस्या है उतना ही असंवेदनशील हमारा समाज है. कायरता या वीरता की बातचीत से ऊपर उठकर देखिए डिप्रेशन के मामले में हम विश्व गुरु हैं.  मानसिक अवसाद से जूझ रहे ज़्यादातर लोग किसी के भी संपर्क में नहीं रहना चाहते वे अपने आप को अलग-थलग कर लेते हैं. इसलिए लोगों से बात करते रहने, टच में रहने से समस्या ख़त्म नहीं होगी. क्योंकि हममें से ज़्यादातर लोग मेंटल हेल्थ को समझने या सुलझाने में सक्षम नहीं हैं. विदेशों में हमने मास शूटिंग की घटनाएं देखी हैं. अकारण ही कोई बंदूक़ लेकर अनजाने लोगो पर फ़ायरिग करने लगता है. ये भी डिप्रेशन का ही एक विकृत रूप है. 2002 दंगे में बाबू बजरंगी, 2020 के दंगे में रामभक्त गोपाल, कपिल गुर्जर, शाहरुख इन लोगों की काउंसलिंग की जाती तो हमें पता चलता कि किन परिस्थितियों में इंसान इतना असंवेदनशील हो जाता है कि वह किसी की जान लेने को उतारू हो जाता है. अगर सरकार देश में बढ़ रहे डिप्रेशन पर कोई ठोस क़दम नहीं उठाती तो हमारे यहां भी मास शूटिंग की घटनाएं आने वाले दिनों में हो सकती हैं.  मगर अफसोस इस बात का है कि जब भी कोई सिलेब्रिटी डिप्रेशन से आत्महत्या क...

मन की उड़ान

मुझे शुरू से ही यह समाज एक विकृत समाज लगा है। इस समाज का आधारभूत ढांचा ही ग़लत है। इस समाज को एक शब्द में परिभाषित करें तो समाज मतलब बंदिशें और मुझे बंदिशें रत्तीभर पसंद नहीं। यहाँ आपके अभिभावक/बड़े/नातेदार आपको बताएंगे और तय करेंगे कि आप क्या पहनें, क्या करें और कैसे दिखें! आप उनकी उम्मीदों का बोझ लेकर जीते रहते हैं। आपको क्या पसंद है, आपकी रुचि क्या है और आप किस चीज़ में निपुण हैं यह मायने ही नहीं रखता। आपको वह करना है जो वो आपको बताएं कि "ये तुम्हारे लिए बेहतर है।"  मैं अगर अपना ही उदाहरण दूँ तो मुझे ऐसा कोई काम करना पसन्द नहीं है जिसमें किसी प्रकार की कोई क्रिएटिविटी करने की गुंजाइश न हो। मैं अभी जो करता हूँ उसमें मुझे क्रिएटिव होने के तमाम अवसर रोज़ ही मिलते हैं। मगर मुझे हर बार कोई न कोई नातेदार या घर के लोग भविष्य का उलाहना देकर यह बताते हैं कि मैं किसी बैंक या सरकारी किसी भी ऐसे काम में लग जाऊँ जहां मेरा भविष्य बेहतर हो(उनके हिसाब से)। मुझे क्या पसंद है, मैं क्या कर सकता हूँ और मुझमें क्या संभावनाएं हैं, यह कोई मायने नहीं रखता।  इस समाज में बड़े पैमाने पर बदलाव की ज़रूरत है...

छोटी छोटी बातें

किसी के चेहरे पे मुस्कुराहट दिल में ख़ुशी लाने के लिए छोटी-छोटी बातें भी बहुत होती हैं..लोगों को admire और appreciate करना सीखिए..किसी का कोई फेसबुक पोस्ट, व्हाट्सएप्प-स्टेटस, फेसबुक-स्टेटस आपको अच्छा लगे तो उस पर रियेक्ट और कमेंट करिए; उन्हें बताइए कि आपको कितना अच्छा लगा उस विचार, मीम या फ़ोटो को देखकर-पढ़कर.. लोगों को छोटी-छोटी बातों से कॉन्फिडेंस मिलता है..मैं फेसबुक-व्हाट्सएप्प पर दिल खोलकर अच्छे पोस्ट्स पर रियेक्ट करता हूँ, शेयर करता हूँ..किसी के व्हाट्सएप्प स्टेटस पे कुछ अच्छा लगता है तो रिप्लाई करके बताता हूँ..जबकि कुछ लोग बस दिन भर ऑनलाइन रहते हैं, सब देखते हैं लेकिन appreciate नहीं करते..क्या करेंगे यार इतने attitude का? मेरी बात मानकर देखिए, लोगों को appreciate करके देखिए, आपको सुक़ून मिलेगा और सामने वाले को ख़ुशी..और किसी को ख़ुशी देने के लिए छोटी-छोटी बातें भी बहुत होती हैं अगर सही तऱीके से की जायें, और कही जायें..और एक मुस्कुराहट बिखेरना जब इतना आसान है तो हमें क्यूँ नहीं करना चाहिए.. जीने की शुरूआत कहीं से तो करनी ही होगी न..बस एक बार शुरुआत करके देखिए, अच्छा लगेगा. 

कुछ लोग

कुछ लोग तिलिस्मी होते हैं...मतलब बहुत ही सादा और सीधे लेकिन आप न चाहते हुए भी खिंचे चले जाते हैं उनकी तरफ़.. बहुत ही साधारण सी बात है, और बहुत मुश्किल भी..कितने ही लोगों से आप रोज मिलते हैं, टकराते हैं, देखते हैं, सुनते हैं, पढ़ते हैं...लेकिन कुछ लोग कभी-कभी बड़ी ख़ामोशी से क़दम रखते हैं और हो सकता है कि आपकी ज़िंदगी में असल में भी न क़दम न रखा हो बल्कि वर्चुअली कहीं टकरा गए हों आपसे और बहुत गहरा प्रभाव छोड़ दिया हो आपके मन पर.. कुछ अलग ही आभा होती है ऐसे लोगों की जो छा जाती है आप पर और कितना भी न-न कर लें आप, संभालें नहीं संभाल पाते ख़ुद को.. हालाँकि कई लोग इसे इश्क़ कह सकते हैं लेकिन मैं इसे तुरंत इश्क़ कहने से बचूँगा क्यूँकि ये इश्क़ नहीं बस एक अनसमझा रूहानी सा एहसास होता है, जो किसी के बारे में आपको अच्छा या कुछ अलग सा महसूस कराता है, हाँ, ये अलग बात है कि बाद में कभी ये इश्क़ में तब्दील हो सकता है.. और मैं इसे आकर्षण भी नहीं कहूँगा क्यूँकि आकर्षण का मुख्य कारण रंग-रूप हो सकता है, लेकिन इस तरह की स्थिति में आप किसी के बाहरी रूप से ज़्यादा उसके किसी भीतरी रूप से कहीं ज़्यादा प्रभावित हुए होते हैं ...

हाथरस

हाथरस की बेटी मनीषा को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि दोषियों को फांसी दी जाये।  संपूर्ण भारत की मांग। नमस्कार सभी देशवासियों को:-14 सितम्बर को जो बहिन मनीषा के साथ हुआ है, ऐसा बहुत सी बहिनो के साथ होता आया है, ओर तब तक होता रहेगा जब तक इसके लिए कोई सख्त कानून नही बनता।    कल निर्भया के साथ हुआ,दामिनी के साथ भी हुआ।और आज मनीषा के साथ हुआ। वो दिन आज भी हो सकता हैं वो दिन कल भी हो सकता जब मेरी या आपकी बहिन बेटी के साथ ऐसा हो जाये तो ,कब तक बच सकते हैं आप कभी भी घटित हो सकता। ओर ये जब तक होता रहेगा जब तक तुम लोग किसी बेटी को अपनी बेटी और किसी बहिन को अपनी बहिन नही मानोगे,  मेरे देशवासियों आज हमे उन क़ानूनो की कोई जरूरत नही जो चंद लोगो के लिये फायदा पहुंचाने के लिये बने हैं या बनाये जा रहे हैं।          हमे आज उस कानून की जरूरत हैं कि अगर कोई भी हमारी बहिन बेटियों के साथ ऐसी दरिंदगी करता है तो उसे सरेआम कानून द्वारा सजा दी जाए। इसके लिये पूरे देश को एक होकर केंद्र सरकार से आज ही कोई ऐसा कानून पारित करने के लिये आवाज उठाये। शत-शत नमन बहिन मनीषा हम शर्मिंदा...

तमाशा

कब तक हमलोग ये सब देखते और सुनते रहेगें,जब सरकार हर मुद्दे पर कड़ा कानून बना सकती है तो ये रेपिस्ट लोगों पे कड़ा कानून क्यों नही बना रही है, जब भी कुछ इस तरह की घटना होती है तो लोंगो में आक्रोश होता है वे क्रोधित होते हैं लेकिन कुछ कर नही पाते है, क्योंकि हमलोंगों की आवाज सुनने वाला कोई नही है,धीरे-धीरे ये गुस्सा खत्म हो जाता है और बात आई गई हों जाती हैं। अगर कोई दोषी कभी पकड़ा जाता है तो उसपे दोष सिद्ध होने में सालों लग जाते हैं।  ये कैसा कानून है ?  और हमलोग बस अपने स्टेटस और स्टोरी में बस RIP लगा के रह जाते है ! आख़िर उन बेरहमियो के लिए कानून क्यों नही बना रही है सरकार ।  हमलोग सिर्फ अफसोस करते रहते हैं और उसे भूलने की कोशिश करते हैं लेकिन फिर से कुछ नए ऐसी घटना सुनने को मिल जाती है जिससे रूह कांप जाती है ! आज देश मे मानवाधिकार, महिलाआयोग , हिन्दुत्व के सारे ठेकेदार व पत्रकारिता , पुलिस, सरकार व अदालत  सब निष्क्रिय हो चुका है ।।  दुर्गा काली बनने का तो पता नही लेकीन हा  आज जरूरत है देश की हर इक बेटी को  फूलन देवी बनने की ।। जो सीधे बलात्कारियो के सीने म...

ज़िंदगी

कभी-कभी ज़िंदगी ख़्वाब सी लगती है, लेकिन मुश्किल ये है कि ख़्वाब अच्छा या बुरा कुछ भी हो सकता है। हर वक़्त चिंता या बेवजह परेशानी में घिरे रहना किसी भी मुश्किल का हल नहीं होता है, इसलिए ख़ुश रहने और अपने आप में जीने से बड़ी कोई बात नहीं है। एक मित्र हैं मेरे, वैसे तो ठीक ही हैं लेकिन बड़े परेशान जीव हैं.. बिना किसी कारण के तनाव और परेशानी में कैसे रहा जाता है, ये उनसे कोई भी सीख सकता है..उनकी ज़िंदगी में कुछ ठीक न हो, तो चिंताग्रस्त रहते ही हैं..बल्कि कोई अच्छी बात भी हो तो भी चिंता में रहते हैं कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाए.. दरअसल, ज़िंदगी बड़ी आसान सी है लेकिन पता नहीं क्यूँ हम बेवजह की धारणाओं और शिगूफों में उलझकर अपने चैन को तीली दिखा देते हैं..जो होना है, उसे हम रोक नहीं सकते बल्कि सिर्फ़ कोशिश कर सकते हैं कि सब सही हो, और कोशिश करने के बाद सब कुछ छोड़ दें चाहिए उस सर्वज्ञ पर, कि जो होगा वो अच्छा ही होगा...बेवजह चिंताग्रस्त रहने से तो कुछ नहीं होता न..बस मुश्किलें बढ़ती ही हैं.. वैसे भी, जब से होश संभालो बस मुश्किलें ही दिखती हैं ज़िंदगी में, और हम बेवजह की चिंताओं और ईर्ष्या में घुलकर दुबले हुए...

आजादी

🇮🇳 मुबारक़बाद आप सभी को, उस दिन के लिए जिस दिन ये देश आज़ाद हुआ..और बेइन्तहां ख़ुशी होना भी चाहिए और मैं ख़ुश हूँ भी.. लेकिन मैं बहुत ज़्यादा ख़ुश उस दिन होऊँगा, जिस दिन इस देश की सड़कें, मंदिर और मदरसे लड़कियों के लिए सुरक्षित होंगे, हम अपने लड़कों को औरतों का सम्मान करना सिखा सकेंगे, कोई किसान आत्महत्या नहीं करेगा, कोई ग़रीब भूख से नहीं मरेगा, हर बच्चा अच्छे स्कूल जा सकेगा, साफ़ पानी और अच्छा खाना सभी का बेसिक अधिकार होगा, हर एक के पास रोज़गार होगा, हिंदू-मुस्लिम का झगड़ा नहीं होगा, इंसान की जान की क़ीमत कम से कम एक गाय से ज़्यादा होगी..लोग अपनी विरासत में ज़मीन-जायदाद के बजाय अच्छे विचार छोड़ेंगे..एक इंसान अपने तऱीके से ज़िंदगी को जीना चाहे तो लोग उसे जज न करें और उसके घरवाले उसे अपने तऱीके से जीने के लिए तानों के रूप में क़ीमत न वसूलें.. कितना कुछ और है जो मैं चाहता हूँ कि सच हो, लेकिन हर चीज़ सच नहीं हो सकती..तो हम सोच लेते हैं कि कभी तो सब अच्छा होगा, और न भी हो तो उम्मीद तो है ही, और सबसे ज़्यादा हमारी कोशिशें तो हैं ही न..तो कोशिश करिए, अपने मन का करिए और प्रेम कीजिये, यही असल आज़ादी है. 

मन के मते

आप सोचते हैं कि कल जी लेंगे, अभी तो कितनी ही ज़िंदगी पड़ी है आगे,और वो कल कभी आ नहीं पाता. सबसे पहले आता है बचपन..आप बहुत कुछ मन के मुताबिक़ करते हैं, भागते हैं-दौड़ते हैं-गिरते हैं, दुनियादारी तब भी चलती रहती है, लेकिन उस वक़्त आप अपने मन के हिसाब से थोड़ा-बहुत चलना सीख रहे होते हैं..कितनी ही बार इसलिए कूट दिए जाते हैं कि आप वैसे नहीं हो जैसे कि आपके आस-पड़ोस के टॉपर्स बच्चे हैं. अरे छोड़िये ऐसे लोगों के बारे में सोचना, हर बच्चा अलग होता है, और यही समझना जरूरी भी है हर बच्चा आईआईटी या आईआईएम नहीं जाता, बहुत सारे अपनी ज़िंदगी में और कुछ ढंग का करते हैं,बिज़नेसमैन और साइंटिस्ट लोग के अलावा कुछ लोग हमें बाइचुंग भूटिया, दीपा कर्माकर, सचिन, राजकुमार राव, मोहित चौहान, एमएफ हुसैन, जैसे भी तो चाहियें.. फिर आप बड़े हो जाते हैं, और सोचते हैं दुनिया बदल देंगे..थोड़ा-बहुत मन का करते भी हैं लेकिन उनमें से ज़्यादातर ऐसा होता है जो बस संगति के कारण होता है क्यूँकि आप आज़ादी की रौ में बह जाते हैं, घर और स्कूल से बाहर कॉलेज लाइफ को इंजॉय तो करते हैं आप लेकिन बहुत कम होते हैं जो अपने बचपन को इन सबके बीच ज़िंदा रख पात...

कोरोना

कोरोना का प्रकोप दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है! क्या लगता है आपको, महीने दो महीने में कोरोना चला जायेगा, हम पहले की तरह जीवन जीने लगेंगे ? नहीं.. कदापि नहीं!. यहाँ तक कि वैक्सीन आने के बाद भी शायद सब कुछ पहले की तरह होने में साल लग जाय । corona virus  अब हमारे देश में जड़ें जमा चुका है, अब सवाल यह उठता है कि हमें स्वयं इस वायरस से लड़ना पड़ेगा, अपनी जीवन शैली में बदलाव करके, अपनी इम्युनिटी स्ट्रांग करके..! हमें करीब 50 साल पुरानी जीवन शैली अपनानी होगी। अपने भोजन में पौष्टिक आहार की मात्रा बढ़ानी होगी! अपने आहार में ताज़े फलों का रस, हरे पत्तों के रस की मात्रा बढ़ानी होगी। भूल जाइए जीभ का स्वाद, तला-भुना मसालेदार,  होटल वाला खाने से बचें नियमित जीवन शैली में बदलाव लाएं! शुद्ध आहार लें, शुद्ध मसाले खाएं। आंवला, गिलोय, काली मिर्च, दालचीनी, इलायची, सोंठ, लौंग आदि पर निर्भर हों। चीज, पनीर, ब्रेड, बिस्किट, टोस्ट, चॉकलेट, केडबरी, वडापाव,  फ़ास्ट फ़ूड, पिज़्ज़ा, बर्गर, वगैरह वगैरह.. ना खाये और सभी तरह के पेकिंग वाले ड्रिंक, कोल्ड्रिंक को भूल जाएं। मानव/फेक्ट्री मे निर्मित सभी खाध प्रदार्थ ...

मन का

कभी-कभी सोचता हूँ कि कितने ही लोग हैं जो कितना कुछ अपने ही भीतर लेकर जीते रहते हैं, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाते वो कहने, करने या होने का, जो वो असल में चाहते हैं. कितने हो होंगे जो मन में बस इस डर को लेकर जीते हैं, कि अगर कह दिया तो क्या होगा, अगर कर दिया तो क्या होगा, या अगर वो होने की कोशिश की जो होने का मन है तो क्या होगा..सामाजिकता, नियम, और क़ायदों के डर की बेड़ियों में बस जकड़े हुए जीते हैं, मानो अपने दिमाग़ के भीतर एक काल-कोठरी बना रखी हो और उसी में पड़े-पड़े गुज़ार भर रहे हैं ज़िंदगी.. मुझे नहीं पता कि लोगों को क्या समझ आता है, लेकिन इत्ती सी ज़िंदगी में अपने लिए कुछ लम्हे चुरा लेने का हक़ और फ़ैसला हर एक को लेना ही चाहिए..कितनी ही बातें या लोग हों, अपने मन की भी कर लेना ज़रूरी है..हर एक की समझ अलग है, अपब्रिंगिंग अलग है, सोच अलग है, लेकिन अपने लिए सभी को सोचना ही चाहिए. क्यूँ नहीं हम थोड़ा ख़ुद के लिए जी लेते, थोड़ा सा पागल हो लेते, थोड़ी सी मस्ती अपने मन के हिसाब से करते, थोड़े से दोस्त ऐसे बनाते जिनके हम होना चाहते हैं, थोड़ी सी रिवायतें तोड़ते, थोड़े से लम्हे दुनिया की आँखों में धूल झोंककर ख़ुद...

ओरत

 में जब भी देखता हूँ तो सबसे ज़्यादा सामाजिक रिवाज़ों, पितृसत्ता, और कायदों का विक्टिम स्त्रियों को ही पाता हूँ, जैसे उन्हें इंसान ही नहीं समझा जाता, जैसे उनकी राय की, उनकी सोच की, और उनके ख़यालों की कोई वैल्यू ही न हो और मानसिक ही नहीं शारीरिक तौर पर भी उनकी इच्छाओं का सम्मान करना ज़्यादातर लोग ज़रूरी नहीं समझते..बहुत से मामलों में तो उनके अपने माँ-बाप ही उन्हें ज़िन्दगी चलाने के लिए ऐसे रिश्तों को ढोते रहने और सहने को मजबूर करते हैं जो एक स्त्री के लिए नर्क से भी बुरा होता है.. ऐसा नहीं कि पुरूषों को परेशानियाँ नहीं होतीं, या उनके साथ ग़लत नहीं होता, लेकिन जिस तरह के सामाजिक ताने-बाने से हमें बुना गया है, और जिस तरह के धार्मिक ग्रंथों या कहानियों से संदर्भ लिए जाते हैं स्त्री के बंधनों को जस्टिफाई करने के लिए वो तो अति है हर मामले में..और उस पर स्त्रियों की अपनी परेशानियाँ इस तकलीफ़ को कई गुना बढ़ा देती हैं.. जो भी हो, मुझे जो लगता है, महसूस होता है वो लिख देता हूँ बिना ये सोचे कि किसे क्या लगेगा..कुछ ग़लत लगता है तो कह देता हूँ, कुछ अच्छा लगता है तो तारीफ़ कर देता हूँ, और कमाल की बात है कि...

आत्महत्या

आत्महत्या करने का फ़ैसला कोई तुरंत नहीं लेता, बल्कि बहुत सोचकर ऐसा करता है. मैं बिल्कुल इत्तेफ़ाक़ रखता हूँ, कि आत्महत्या के पीछे कई दिनों या महीनों का डिप्रेशन होता है, लेकिन मुझे ऐसा भी लगता है कि बस कोई एक क्षण होता है जब ये फ़ैसला हो जाता है, और अगर उस क्षण कोई आपसे बात कर ले, आप किसी से बात कर लें, कोई आवाज़ आपको भटका दे, तो फ़िर वो वक़्त शायद टाला जा सके.. दुनिया अपने आप में इतनी परेशानियों से भरी है कि हजारों वजहें हैं हार मान लेने की, लेकिन लाखों वजहें हो भी सकती हैं जीने की..बस कभी हारा हुआ महसूस करें, तो सोचें कि जिंदगी ने कितना-कुछ दिया भी तो है, किसी दोस्त से बात कर लें, कुछ और सोच लें, मुश्किल है लेकिन कोशिश करके देखें, और ये समझें कि अगर पूरी दुनिया में कोई एक इंसान भी है जो चाहता है आपको, तो उनका क्या होने वाला है.. मुसीबतें हर एक को मिलती हैं, आप अकेले नहीं हैं जो लड़ रहे हैं, बल्कि हर कोई अपने मन में और अपनी ज़िंदगी में एक लड़ाई लड़ रहा है..इसीलिए कभी हार जाने का डर हो तो ख़ुद से बातें करें, किसी दोस्त से ऐसे ही बात कर लें, चीजों को ठीक करने की कोशिश न सही ज़िंदगी को समझने की कोशिश...

कोरोनिल

मित्रों, मैं कोई डॉक्टर नहीं हूँ.  इस बात पर 100% निश्चित मत रखता हूँ कि भारतीय संस्कृति के काफी हद तक भूले हुये योग -प्राणायाम व आयुर्वेद को पूरे देश की जनता तक पहुंचाने का पुनीत कार्य बाबा रामदेव व उनकी संस्था पतंजलि ने किया है. और यह भी 100% विश्वास है कि लाखों लोगों को प्राणायाम व पतंजलि की दवाओं से बहुत लाभ भी हुआ है. पर इससे भी बड़ी बात यह है कि बाबा ने योग प्राणायाम सिखाने के साथ ही करोड़ों भारतीय को राष्ट्रभक्ति की अपनी बातों से राष्ट्रप्रेम का संदेश भी दिया है. मोदीजी की 2014 की जीत में कहीं न कहीं 2-4-5-10 प्रतिशत योगदान पतंजलि के लाखों उपभोक्ताओं का भी अवश्य रहा है. स्व. राजीव दीक्षित जी के साथ बाबा रामदेव की स्वदेशी की भावना का मैं बहुत सम्मान करता हूँ. वर्तमान में पतंजलि का व्यापार हजारों करोड़ में पहुंच चुका है. छोटी मोटी भूल और कभी कभी बाबा रामदेव के हंसी मजाक के कुछ कमेन्ट को छोड़ दिया जाये तो 2014 तक कांग्रेस शासन में पतंजलि व बाबा रामदेव पर विभिन्न धाराओं में पचासियों केस दर्ज किये गये लेकिन क्या एक भी मामले में बाबा या पतंजलि को दोषी साबित किया जा सका?  याद ...

स्त्री शक्ति

थोड़ा इत्मीनान से पढिये  बच्चा पैदा करने के लिए क्या आवश्यक है..?? पुरुष का वीर्य और औरत का गर्भ !!! लेकिन रुकिए ...सिर्फ गर्भ ??? नहीं... नहीं...!!! एक ऐसा शरीर जो इस क्रिया के लिए तैयार हो।  जबकि वीर्य (spurme)के लिए 13 साल और 70 साल का  वीर्य भी चलेगा। लेकिन गर्भाशय का मजबूत होना अति आवश्यक है,  इसलिए सेहत भी अच्छी होनी चाहिए।  एक ऐसी स्त्री का गर्भाशय  जिसको बाकायदा हर महीने समयानुसार  माहवारी (Period) आती हो।  जी हाँ ! वही माहवारी जिसको सभी स्त्रियाँ हर महीने बर्दाश्त करती हैं।  बर्दाश्त इसलिए क्योंकि  महावारी (Period) उनका Choice नहीं है।  यह कुदरत के द्वारा दिया गया एक नियम है।  वही महावारी जिसमें शरीर पूरा अकड़ जाता है,  कमर लगता है टूट गयी हो,  पैरों की पिण्डलियाँ फटने लगती हैं,  लगता है पेड़ू में किसी ने पत्थर ठूँस दिये हों,  दर्द की हिलोरें सिहरन पैदा करती हैं।  ऊपर से लोगों की घटिया मानसिकता की वजह से  इसको छुपा छुपा के रखना अपने आप में  किसी जँग से कम नहीं। बच्चे को जन्म देते समय...

लोक डाउन

जिसके भाग्य में अब जैसा भी लॉकडाउन है उसे पूरी ईमानदारी और बुद्धिमानी से स्वीकार कर लेना चाहिए। कुल मिलाकर अब हमें कोरोना के साथ जीना सीख लेना है । अब हमें निगाहों से बोलना उसी से समझना, सीखना पड़ेगा क्योंकि मास्क लगने पर आंखें ही बोलेंगी,आंखों से ही समझना पड़ेगा।  जब मास्क लगाकर निकलेंगे तो एक दूसरे को पहचान पाना मुश्किल होगा।  वैसे भी हम मनुष्य के जीवन में दिखता कुछ है और होता कुछ हैं। जहां सत्यमेव जयते लिखा होता है वही असत्य के सौदे हो जाते हैं। जहाँ लिखा है रिश्वत ना ले वही जेब में हाथ जाता है।  कुल मिलाकर जो दिखता नहीं है वह होता है।  अब समझदारी इसी में है कि हम ऐसी निगाहे तैयार कर ले जो देख भी सके, बोल भी सके और समझा भी सके।

रोना

रोने_वालों_को_तो_रोने_का_बहाना_चाहिये!😭😭 ◆आज वे पैदल जाते मज़दूरों पर रो रहे हैं! ◆कल को जिन के विवाह स्थगित होंगे उन पर रोयेंगे! ◆सरकार के कोरोना रोकने के प्रयासों (लॉक डाउन) पर! ◆यदि फैल गया तो लोगों की लाशों पर! ◆यदि लोग न मरे तो अर्थव्यवस्था पर! ◆अर्थव्यवस्था को संभाल लिया तो सेंसेक्स के गिरने पर! ◆सेंसेक्स उठ गया तो जीडीपी पर! ◆GDP growth सही आ गयी तो उस के caculation method पर! ◆उस से सन्तुष्ट कर दिया तो रुपये की गिरती कीमत पर! ◆रुपया चढ़ गया तो महंगाई पर! ◆महंगाई घट गई तो किसानों की दुर्दशा पर! ◆किसानों को सीधा लाभ दे दिया तो उसके बहुत कम होने पर! ◆सेना को हथियार मिले तो ग़रीब की थाली पर! ◆ग़रीबों को फ़ोकस में लिया तो सेना के घट रहे बजट पर! ◆कंधार में प्लेन हाइजेक हुआ तो सिसकते परिवारों पर! ◆आतंकवादी छोड़ दिये तो उनके छोड़े जाने पर! ◆आंतकी हमला हुआ तो हमले पर! ◆हमला होने से पहले ही आतंकवादी पकड़ लिये गये तो पकड़े गए 'निर्दोष' लोगों पर! ◆सब्जी मँहगी हुई तो गृहणियों के बजट पर! ◆सब्जी सस्ती हुई तो किसानों की दुर्दशा पर! ◆प्याज़ 100 रु हुआ तो थाली के ज़ायके पर! ◆प्याज़ 8 रुपये रह गया ...

16 मजदूर

16_ग़रीब_और_बस.. किसी ने लिखा कि पटरी पे सोए ही क्यूँ, कोई लिख रहा था कि पटरी से हटकर भी सो सकते थे, कोई लिखा कि पैदल क्यूँ जा रहे थे घर, और भी न जाने असंवेदनशील पोस्ट्स देखे सुबह से.. 16 ग़रीब मज़दूर, भूख-प्यास से लाचार, लॉकडाउन और सरकारी उपेक्षा के मारे, बस अपने घर ही जा रहे थे..थकान शायद इतनी रही हो कि पटरी पे ही सर टिकाकर सो गए ये सोचकर कि ट्रेन्स तो वैसे भी बंद ही हैं, और नींद, थकान, भूख और मजबूरी हो तो लॉजिक और कॉमन-सेंस तो मर ही चुका होता है.. दुःख होता है, गुस्सा आता है..अव्वल तो इस देश के हर ग़रीब और मजबूर पर कि इस दुनिया में जगह है भी क्या इनकी, सिर्फ़ यही कि बस खटते रहें और अमीरों को और अमीर करते रहें, सरकार का वोट-बैंक बने रहें, इससे ज़्यादा इस दुनिया में और ज़रूरत भी क्या है एक ग़रीब की..जब अर्थव्यवस्था गिरती है तो सबके पहले यही ग़रीब मरता है, जब नोटबंदी होती है तब भी यही पहले मरता है, जब बैंक अपना लोन वसूलता है तो इसी ग़रीब का घर बिकता है, जब कहीं गैस लीक होती है तो यही मरता है, जब लॉकडाउन घोषित होता है तो यही पिटता भी है, और भूखा भी यही मरता है.. वैसे भी मैं ईश्वर या अल्लाह के कंस...

इरफ़ान खान

वे बेहद शानदार कलाकार होने के साथ-साथ एक गहरी शख्यिसत के भी मालिक थे। वे बहुत सोच समझकर ही किसी विषय पर अपनी राय रखते थे। यूं तो वे सामान्यतः फिल्मों से इत्तर विषयों पर बोलते नहीं थे, पर बोलते थे तो उन्हें कायदे से सुना जाता था। इरफान खान बाकी सितारों से अलग थे। दरअसल वे स्टार नहीं कलाकार थे। वे सेकुलर कहलाने की ख्वाहिश रखने वाले नहीं थे। उन्हें भारत में डर भी नहीं लगता था। उन्होंने कभी माई नेम इज़ खान का हौव्वा भी खड़ा नहीं किया। उन्होंने अंडरवर्ल्ड के पैसे पर फलने-फूलने का सपना भी नहीं पाला। उन्होंने जो किरदार निभाए उसमें वे रच बस गए। उनकी पीकू, लंच बॉक्स, मकबूल हिन्दी मीडियम जैसी तमाम फिल्मों को देखकर लगता है कि हर किरदार उनके लिए ही बना था। वे बस जिन्दगी भर एक सच्चे कलाकार भर रहे। इरफान ने अपने स्वार्थ के लिए धर्म का कार्ड कभी नहीं खेला। उन्होंने हर धर्म को उतना ही सम्मान दिया जितना वे अपने इस्लाम धर्म को देते थे। उन्होंने कभी हिंदू देवी देवताओं का अपमान नहीं किया। वे कभी अवार्ड वापसी गैंग के सदस्य भी नहीं बने। वे सदा एक सच्चे कलाकार के रूप में ही रहे। इरफान खान की मौत पर देश में ज...

सावधान

19 फरवरी टोटल केस:-  3 19 मार्च टोटल केस:- 198 19 अप्रैल टोटल केस:-  17 हजार से भी अधिक , और आप हम सोच रहे हैं कि तीन मई के बाद सब कुछ पहले जैसें सामान्य हो जाएगा ? 🤔  घर पर ही रहिए प्रभु🙏🙏 भारत की जनसंख्या = 135 करोड़ यदि प्रतिदिन 1 लाख व्यक्तियों की covid-19 संक्रमण की जाँच की जाए तो 13500 दिन या लगभग 37 साल लगेंगे 135 करोड़ लोगों की जांच करने में और इतने समय मे भारत पूरी तरह कोरोना से खत्म हो चुकेगा।  अब यदि हम इस टेस्टिंग को 10 लाख व्यक्ति प्रतिदिन भी कर दें तो भी 1350 दिन अर्थात लगभग पौने 4 साल लग जाएंगे 135 करोड़ लोगों की टेस्टिंग करने में और इतना समय भी पर्याप्त है देश को खत्म होने में।                    छोटी सी बात समझ नही आ रही तो अमेरिका को देख लो । लॉक डाउन को अंडर एस्टीमेट करके ,टेस्टिंग पर जोर देने का नतीजा , 30 लाख से ज्यादा टेस्टिंग करने के बाद भी40 000 नागरिकों की मौत हो चुकी है और लगभग 7 लाख लोग कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं ।  इसमें लॉक डाउन के साथ ट्रेसिंग ,टेस्टिंग दोनों शामिल है । बिना लॉक डाउन...

कोरोना

शरीर से परे की बात है... ऱाम ,कृष्ण ,बुद्ध ,महावीर, कबीर तुलसी ,ओशो भी अगर होते तो उनके शरीर पर भी ये वायरस असर करता ही.....सुकरात पर भी जहर का असर हूआ.....मीरा को जहर का असर नही हुआ ये मुझे काल्पनिक लगता है पर हल्का गहरे मे जाएं और माने की कृष्ण की कृपा से वो जहर अमृत भी हो गया इसलिए मीरा की मृत्यु का कहीं कोई उल्लेख नही है कहते हैं वो सशरीर ही मूर्ति में समा गई थी...! शरीर मिट्टी है चाहे वह अवतार का ही क्यों न हो...उसे व्याधि, पीड़ा और मृत्यु से गुजरना ही होगा....! जीवित बोलना सुनता चलता शरीर ही वह एकमात्र यंत्र है जिससे आत्मा के अस्तित्व का आभास होता है ....पर मृत शरीर के postmortem मे कभी आत्मा की मौजूदगी नही पाई गई..! शरीर साधन है ..मंदिर है ..और हम आत्मा की खोज मे सफल हो या न हो..आखिर होना हर हाल मे इसे मिट्टी ही है...! महत्व तो उस तथाकथित आत्मा का है...जिसका गीता मे जिक्र हैं ..जो ना कभी कटती हैं ना जलती है ना ही नष्ट होती है.. ! इसलिए अपने सुन्दर बलिष्ठ शरीर पर गुमान न करे घर पर रहें सुरक्षित रहे....अन्यथा हमे कभी आत्मा मिले न मिले..पर चित्रगुप्त हमारी हरेक ही file लिये चौराहे ...

लॉक डाउन का असर

इस संकट के समय में जब  हमारे दिमाग में हर समय Negative thoughts  आ रहे हैं,  तो चलो आज कुछ Positive बाते भी हो जाए... आज आपको इस कोरोना दौर की कुछ पॉजिटिव बाते बताने जा रहा हूं . 1️⃣ पहली बात मृत्यु दर की करें तो करीब 400 मृत्यु रोजाना हमारे देश में रोड एक्सीडेंट से होती है जोकि इस लोक डाउन के चलते नगण्य हो गई है....  2️⃣ दूसरी बात जिस पॉल्यूशन को हमारी सरकार कोशिशों के बावजूद भी कंट्रोल नहीं कर पाई वह अब लोक डाउन के चलते अपने आप ही कंट्रोल हो गया है शायद ओजोन लेयर  भी अपने आप को रिस्टोर कर ले क्योंकि  सबसे ज्यादा प्रदूषण करने वाले  हवाई जहाज  बिल्कुल बंद है.....  3️⃣ तीसरी बात क्राइम पूरी तरह से कंट्रोल हो गया है ..... 4️⃣ चौथी बात पूरे विश्व में सफाई अभियान जोरों शोरों से चल रहा है हर घर हर गली हर रास्ते को साफ किया जा रहा है छिड़काव हो रहे हैं जिससे लगता है की कोरोना के अलावा अन्य बीमारी के कीटाणु भी इस पृथ्वी से खत्म हो जाएंगे .... 5️⃣ पांचवी बात lockdown के चलते जब हम सब घरों में बंद है तो परिवार का महत्व भी हमें समझ में आ रहा है और वर्ष...

एक झटका

कोरोना ने एक झटके में घुटनों पर ला दिया समस्त मानव जाति को।  उड़े जा रहे थे ,कोई चाँद पर कब्जे की तैयारी कर रहा है तो कोई मंगल पर। कोई सूरज को छूने की कोशिश कर रहा है तो कोई अंतरिक्ष में आशियां ढूँढ रहा है ।  पड़ोसी देश एक दूसरे की जमीन को  हड़पने की तैयारी में  लगे है । Nuclear Power की दौड़ में विश्व को ध्वस्त करने की कोशिश में लगे हैं । कहीं धर्म के नाम पर नरसंहार चल रहा है तो कहीं जाति के नाम पर अत्याचार, मानव जाति विनाश की ओर बढ़ रही है । ईश्वर ने मानो एक संदेश दिया है -  "मैंने तो तुम लोगों को रहने के लिए इतनी खूबसूरत धरती दी थी । तुम लोगों ने इसे बर्बाद करके नर्क बना दिया । मेरे लिये तो आज भी सब एक छोटे से प्यारे से परिवार  की तरह हो। मुझे नहीं पता कि कहां किस देश की सीमा शुरू होती है और कहां खतम होती है  । ये सब तुम लोगों ने बनाया है । मुझे नहीं पता कि कौन किस धर्म व जाति का है । मैंने तो सिर्फ़ इन्सान बनाया था । क्यों एक दूसरे को मार रहे हो ? प्यार से नहीं रह सकते क्या ? संभल जाओ और सुधर जाओ । प्रकृति का सम्मान करो ।  वसुधैव कुटुंबकम की तर...

उड़ान

आज ये तस्वीर देखते ही साझा करने की इच्छा कर गई।  बाज पक्षी जिसे हम ईगल या शाहीन भी कहते है। जिस उम्र में बाकी परिंदों के बच्चे चिचियाना सीखते है उस उम्र में एक मादा बाज अपने चूजे को पंजे में दबोच कर सबसे ऊंचा उड़ जाती है। पक्षियों की दुनिया में ऐसी Tough and tight training किसी और की नही होती। मादा बाज अपने चूजे को लेकर लगभग 12 Km ऊपर ले जाती है।  जितने ऊपर अमूमन हवाई जहाज उड़ा करते हैं और वह दूरी तय करने में मादा बाज 7 से 9 मिनट का समय लेती है। यहां से शुरू होती है उस नन्हें चूजे की कठिन परीक्षा। उसे अब यहां बताया जाएगा कि तू किस लिए पैदा हुआ है ? तेरी दुनिया क्या है ? तेरी ऊंचाई क्या है ? तेरा धर्म बहुत ऊंचा है और फिर मादा बाज उसे अपने पंजों से छोड़ देती है। धरती की ओर ऊपर से नीचे आते वक्त लगभग 2 Km उस चूजे को आभास ही नहीं होता कि उसके साथ क्या हो रहा है। 7 Kmt. के अंतराल के आने के बाद उस चूजे के पंख जो कंजाइन से जकड़े होते है, वह खुलने लगते हैं। लगभग 9 Kmt. आने के बाद उनके पंख पूरे खुल जाते है। यह जीवन का पहला दौर होता है जब बाज का बच्चा पंख फड़फड़ाता है। अब धरती से वह लगभग...

स्त्री

मैं स्त्री हूँ...सहती हूँ... तभी तो तुम कर पाते हो गर्व, अपने पुरुष होने पर.... मैं झुकती हूँ.....तभी तो ऊँचा उठ पाता है तुम्हारे अहंकार का आकाश.... मैं सिसकती हूँ...... तभी तो तुम मुझ पर कर पाते हो खुल कर अट्टहास.... व्यवस्थित हूँ मैं...... इसलिए तो तुम रहते हो अस्त व्यस्त....... मैं मर्यादित हूँ......... इसलिए तुम लाँघ जाते हो सारी सीमाएं.... मै स्त्री हूँ ... हो सकती हूँ पुरुष भी... पर नहीं होती... रहती हूँ स्त्री इसलिए... ताकि जीवित रहे तुम्हारा पुरुष... मेरी ही नम्रता से पलता तुम्हारा पौरुष... मैं समर्पित हूँ.... इसलिए हूँ... अपेक्षित, तिरस्कृत... त्यागती हूँ अपना स्वाभिमान, ताकि आहत न हो तुम्हारा अभिमान... सुनो मैं नहीं व्यर्थ... मेरे बिना भी तुम्हारा नहीं कोई अर्थ.....!

कोरोना

।कुदरत ! एक करोना वायरस के आगे 150 करोड़ की आबादी वाला चीन अपने ही घर में बंदी बन गया है,सारे रास्ते वीरान हो गए हैं,चीन के राष्ट्रपति तक भूमिगत हो गए हैं। एक सूक्ष्म सा जंतु और दुनियाँ  को आँखे दिखाने वाला चीन एकदम शांत,भयभीत। केवल चीन ही क्यों? सारे विश्व को एक पल में शांत करने की ताकत कुदरत में है! हम जातपात,धर्म भेद,वर्ण भेद,प्रांत वाद के अहंकार से भरे हुए हैं। यह गर्व,यह घमंड करोना ने मात्र एक झटके में उतार दिया,बिना किसी भी प्रकार का भेद रखे सारे चीन को बंदिस्त करके रख दिया है, इस संसार का कोई भी जीव कुदरत के आगे बेबस है,लाचार है कुदरत ने शायद यही संदेश दिया है; प्यार से रहो,जियो और जीने दो! अन्यथा सुनामी है,करोना है,रीना है,टीना है;लेकिन इसके बावजूद अगर,   जीना है तो प्यार से इंसान को कभी भी अपने वक़्त पर, ताकत पर, हुकुमत पर, डीग्रीओ पर, माल-दौलत पर घमंड अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि वक़्त तो उन नोटों का भी नहीं हुआ,जो कभी पूरा बाजार खरीदने की ताकत रखते थे!  ( ज़िन्दगी है साहब, छोड़कर चली जाएगी मेज़ पर होगी तस्वीर, कुर्सी खाली रह जाएगी )

मातृभाषा

एक लड़के को सेल्समेन के इंटरव्यू में इसलिए बाहर कर दिया गया क्योंकि उसे अंग्रेजी नहीं आती थी। लड़के को अपने आप पर पूरा भरोसा था । उसने मैनेजर से कहा कि आपको अंग्रेजी से क्या मतलब ? यदि मैं अंग्रेजी वालों से ज्यादा बिक्री न करके दिखा दूं तो मुझे तनख्वाह मत दीजिएगा। मैनेजर को उस लड़के बात जम गई। उसे नौकरी पर रख लिया गया। फिर क्या था, अगले दिन से ही दुकान की बिक्री पहले से ज्यादा बढ़ गई। एक ही सप्ताह के अंदर लड़के ने तीन गुना ज्यादा माल बेचकर दिखाया। स्टोर के मालिक को जब पता चला कि एक नए सेल्समेन की वजह से बिक्री इतनी ज्यादा बढ़ गई है तो वह खुद को रोक न सका । फौरन उस लड़के से मिलने के लिए स्टोर पर पहुंचा। लड़का उस वक्त एक ग्राहक को मछली पकड़ने का कांटा बेच रहा था। मालिक थोड़ी दूर पर खड़ा होकर देखने लगा। लड़के ने कांटा बेच दिया। ग्राहक ने कीमत पूछी। लड़के ने कहा – 800 रु. । यह कहकर लड़के ने ग्राहक के जूतों की ओर देखा और बोला – सर, इतने मंहगे जूते पहनकर मछली पकड़ने जाएंगे क्या ? खराब हो जाएंगे। एक काम कीजिए, एक जोड़ी सस्ते जूते और ले लीजिए। ग्राहक ने जूते भी खरीद लिए। अब लड़का बोला – तालाब किनारे धूप में बै...

संकल्प

पूरा साल निकल गया बस यही सोचते-सोचते कि अगले आने वाले साल 2020 के लिए क्या संकल्प लिया जाए.. सोचता रहा कि ऐसा क्या है जो सुधारूँ ख़ुद में, या जोड़ूँ ख़ुद में, या बदलूँ ख़ुद में... बहुत सोचा लेकिन ऐसा कुछ समझ ही नहीं आया जो करने का संकल्प करूँ अगले नए साल में। फ़िर सोचा कि अपनी आदतों और दिनचर्या पर नज़र डालता हूँ, तो शायद कुछ हाथ लगे कुछ..वरना पता लगा पूरी दुनिया न्यू-ईयर रेज़ोल्यूशन में लगी है, और में सिर्फ सोचते ही रह जाऊंगा 😂 लेकिन ये मशक्क़त भी काम न आई, और अंततः कुछ ऐसा न मिला जिसका संकल्प ले सकूँ..ख़ैर, अंत में यह निर्णय लिया इस बंदे ने कि इस नए साल में भी ऐसा ही रहा जायेगा और बिल्कुल भी ख़ुद को बदला नहीं जाएगा। हाँ, इतना ज़रूर है कि अभी जैसा हूँ उन आदतों को और बढ़ाऊँगा और थोड़ा ज़्यादा और वक़्त दूँगा.. ज़्यादा कुछ नहीं, बस 1% ज़्यादा अच्छे ढंग से क़िताबें पढ़ूँगा, अपने काम में 1% और बेहतर इनपुट दूँगा .और भी बहुत कुछ, और हर काम, आदत, शौक, दोस्ती, वगैरह को 1% ज़्यादा क्वालिटी वक़्त दूँगा। इसके अलावा सोचता हूँ कि इस बीते साल में क्या हासिल किया, तो नज़र आए कुछ बेहतरीन लोग, कुछ बेहतरीन क़िताबें, और सबसे ज़...

कुछ तो नया हो

पूरा दिसंबर निकल गया बस यही सोचते-सोचते कि अगले आने वाले साल 2020 के लिए क्या संकल्प लिया जाए.. सोचता रहा कि ऐसा क्या है जो सुधारूँ ख़ुद में या जोड़ूँ ख़ुद में या बदलूँ ख़ुद में...बहुत सोचा लेकिन ऐसा कुछ समझ ही नहीं आया जो करने का संकल्प करूँ अगले नए साल में। फ़िर सोचा कि अपनी आदतों और दिनचर्या पर नज़र डालता हूँ, तो शायद कुछ हाथ लगे कुछ..वरना पता लगा पूरी दुनिया न्यू-ईयर रेज़ोल्यूशन में लगी है, और हम तकिया दबोचे रज़ाई ओढ़े औंधे पड़े हैं 😂 लेकिन ये मशक्क़त भी काम न आई, और अंततः कुछ ऐसा न मिला जिसका संकल्प ले सकूँ..ख़ैर, अंत में यह निर्णय लिया इस बंदे ने कि इस नए साल में भी ऐसा ही रहा जायेगा और बिल्कुल भी ख़ुद को बदला नहीं जाएगा। हाँ, इतना ज़रूर है कि अभी जैसा हूँ उन आदतों को और बढ़ाऊँगा और थोड़ा ज़्यादा और वक़्त दूँगा.. ज़्यादा कुछ नहीं, बस 1% ज़्यादा अच्छे ढंग से क़िताबें पढ़ूँगा, अपने काम में 1% और बेहतर इनपुट दूँगा .और भी बहुत कुछ, और हर काम, आदत, शौक, दोस्ती, वगैरह को 1% ज़्यादा क्वालिटी वक़्त दूँगा। इसके अलावा सोचता हूँ कि इस बीते साल में क्या हासिल किया, तो नज़र आए कुछ बेहतरीन लोग, कुछ बेहतरीन क़िताबें, औ...