तनाव



डिप्रेशन जितनी जटिल समस्या है उतना ही असंवेदनशील हमारा समाज है. कायरता या वीरता की बातचीत से ऊपर उठकर देखिए डिप्रेशन के मामले में हम विश्व गुरु हैं. 

मानसिक अवसाद से जूझ रहे ज़्यादातर लोग किसी के भी संपर्क में नहीं रहना चाहते वे अपने आप को अलग-थलग कर लेते हैं. इसलिए लोगों से बात करते रहने, टच में रहने से समस्या ख़त्म नहीं होगी. क्योंकि हममें से ज़्यादातर लोग मेंटल हेल्थ को समझने या सुलझाने में सक्षम नहीं हैं.

विदेशों में हमने मास शूटिंग की घटनाएं देखी हैं. अकारण ही कोई बंदूक़ लेकर अनजाने लोगो पर फ़ायरिग करने लगता है. ये भी डिप्रेशन का ही एक विकृत रूप है. 2002 दंगे में बाबू बजरंगी, 2020 के दंगे में रामभक्त गोपाल, कपिल गुर्जर, शाहरुख इन लोगों की काउंसलिंग की जाती तो हमें पता चलता कि किन परिस्थितियों में इंसान इतना असंवेदनशील हो जाता है कि वह किसी की जान लेने को उतारू हो जाता है. अगर सरकार देश में बढ़ रहे डिप्रेशन पर कोई ठोस क़दम नहीं उठाती तो हमारे यहां भी मास शूटिंग की घटनाएं आने वाले दिनों में हो सकती हैं. 

मगर अफसोस इस बात का है कि जब भी कोई सिलेब्रिटी डिप्रेशन से आत्महत्या करता है तो पचास तरीके की बातें होती हैं. डिप्रेशन की चर्चा होने लगती है. लेकिन किसान जब आत्महत्या करता है तो वह सिर्फ़ आंकड़ा बनकर रह जाता है. जबकि आत्महत्या का मूल एक ही है- अपनी बात न कह पाना और हर तरफ से मजबूर होकर ख़ुद को मार डालने का फैसला करना. क्योंकि कहीं न कहीं हम अभी भी ये मानकर चलते हैं कि जिसके पास पैसा है उसको कोई समस्या नहीं है. 

भारत जैसे देश में जहां पीरियड्स को समस्या माना जाता हो. वैसे देश में डिप्रेशन की बात करना बेकार है लेकिन फिर भी पढ़ने वालों से गुज़ारिश है कि जो भी आपसे बात करना चाहे उससे बात कीजिए. आप कोई हेल्प नहीं कर सकते हैं तो सिर्फ़ ध्यान लगाकर सुनिए. लोग निगेटिव-पॉज़िटिव नहीं होते, कुछ लोग बस अपनी ज़िंदगी उलझी गांठें सुलझाने में लगे रहते हैं. आप कुछ नहीं कर सकते तो उनका उत्साह तो बढ़ा ही सकते हैं.  

अपने आसपास ही नहीं अपने घर में भी ध्यान दीजिए. बहन के साथ घूमने जाइए. उसके दोस्त बनिए. अपनी मां की बातें सुनिए. बेटी को इतना स्पेस दीजिए कि वो अपने बॉयफ़्रेंड/ब्रेकअप के बारे में सहज होकर आपसे बातचीत कर सके. करियर या पढ़ाई के बारे में क्रूर मत बनिए. दिमाग़ ठीक रहेगा तो इंसान पचास तरह से कमा खा-लेगा.

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