मन की थकान

 देखते है के मज़बूत दिखने वाले लोग भी अचानक जीवन से पलायन कर जाते है... क्यों??

संघर्ष सभी को थकाता है। ऐसे में अगर भावनात्मक स्थिरता साथ छोड़ने लगे तो आत्मविश्वास भी छूटने लगता है। 

“मैं काफ़ी हूँ” ख़ुद पर यह भरोसा अच्छी बात है, 
लेकिन मुझे “कब” सहायता की आवश्यकता है, यह परख आनी भी बहुत ज़रूरी होती है।

कई बार हम अपने आत्मविश्वास को एक ज़िम्मेदारी की तरह “ओढ़” लेते है, एक लम्बे समय तक आत्मविश्वास से परिपूर्ण रहने वाले व्यक्ति के किए औरों के आगे यह स्वीकार करना कठिन होता है के उसका मन भी कमज़ोर पड़ रहा है।

“मन का मज़बूत होना” और “मन को मज़बूत दिखाना” दो अलग बातें है। जीवन की सौ प्रतिशत परिस्थितियों में मन मज़बूत रहेगा — यह ज़रूरी नहीं है!  

कितना भी मज़बूत व्यक्ति हो “थकान” सभी को होती है, पर बहुत से लोग इस थकान को उतारने का प्रबन्ध करने की बजाय अपनी बची खुची ऊर्जा इस थकान को ढकने-छुपाने-cover up करने में खर्च करने लगते है। जब के यह समय सहायता लेने का होता है ! 

नतीजा, ऊपर से स्थिर दिखने वाला मन एक दिन ढह जाता है और लोगों को लगता है — “अचानक हो गया”
कोई मन “अचानक” नहीं ढहता, वह ढहने की एक लम्बी प्रक्रिया से गुजरता है! 

इसलिए आप चाहे कितने भी मज़बूत क्यों न हो, अपने मन की थकान को रिजेक्ट (reject) मत कीजिये। मन की थकान स्वभाविक है। उसे सबके आगे न सही पर “किसी के आगे”ज़रूर स्वीकारिये। यह “किसी” आपके जीवन में शामिल कोई भरोसेमन्द व्यक्ति हो सकता है या फिर प्रफ़ेशनल काउन्सिलर। 

ध्यान पूजा प्रार्थना जैसी चीजें आपको crash होने से बचाती है, पर जीवन की वास्तविक समस्याओं को एक ठोस हल की भी दरकार होती है, अगर प्रतीक्षा के सिवा कोई हल न भी हों, तब भी “प्रतीक्षा कैसे करें” इसे भी एक पूरी strategy की ज़रूरत होती है। इसलिए जब अपनी मनोदृष्टि धुँधलाने लगे तो कुछ देर के किए सहारा ले लेना चाहिये। 


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