ज़िंदगी
कभी-कभी ज़िंदगी ख़्वाब सी लगती है, लेकिन मुश्किल ये है कि ख़्वाब अच्छा या बुरा कुछ भी हो सकता है। हर वक़्त चिंता या बेवजह परेशानी में घिरे रहना किसी भी मुश्किल का हल नहीं होता है, इसलिए ख़ुश रहने और अपने आप में जीने से बड़ी कोई बात नहीं है।
एक मित्र हैं मेरे, वैसे तो ठीक ही हैं लेकिन बड़े परेशान जीव हैं.. बिना किसी कारण के तनाव और परेशानी में कैसे रहा जाता है, ये उनसे कोई भी सीख सकता है..उनकी ज़िंदगी में कुछ ठीक न हो, तो चिंताग्रस्त रहते ही हैं..बल्कि कोई अच्छी बात भी हो तो भी चिंता में रहते हैं कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाए..
दरअसल, ज़िंदगी बड़ी आसान सी है लेकिन पता नहीं क्यूँ हम बेवजह की धारणाओं और शिगूफों में उलझकर अपने चैन को तीली दिखा देते हैं..जो होना है, उसे हम रोक नहीं सकते बल्कि सिर्फ़ कोशिश कर सकते हैं कि सब सही हो, और कोशिश करने के बाद सब कुछ छोड़ दें चाहिए उस सर्वज्ञ पर, कि जो होगा वो अच्छा ही होगा...बेवजह चिंताग्रस्त रहने से तो कुछ नहीं होता न..बस मुश्किलें बढ़ती ही हैं..
वैसे भी, जब से होश संभालो बस मुश्किलें ही दिखती हैं ज़िंदगी में, और हम बेवजह की चिंताओं और ईर्ष्या में घुलकर दुबले हुए जाते हैं..किसी की बड़ी गाडी, बड़ा घर, दूसरे के बच्चे के ज़्यादा मार्क्स, महंगाई, घोटाले और भी पता नहीं क्या क्या..
ज़िंदगी को सुकून और अपने मन के हिसाब से जी लीजिये वरना, मौत भी आपके साथ बेरहमी से पेश आएगी..पियूष मिश्रा जी की कही बात याद आ रही है:
हल्की-फुल्की सी है ज़िंदगी,
बोझ तो बस ख़्वाहिशों का है.
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