आत्महत्या
आत्महत्या करने का फ़ैसला कोई तुरंत नहीं लेता, बल्कि बहुत सोचकर ऐसा करता है.
मैं बिल्कुल इत्तेफ़ाक़ रखता हूँ, कि आत्महत्या के पीछे कई दिनों या महीनों का डिप्रेशन होता है, लेकिन मुझे ऐसा भी लगता है कि बस कोई एक क्षण होता है जब ये फ़ैसला हो जाता है, और अगर उस क्षण कोई आपसे बात कर ले, आप किसी से बात कर लें, कोई आवाज़ आपको भटका दे, तो फ़िर वो वक़्त शायद टाला जा सके..
दुनिया अपने आप में इतनी परेशानियों से भरी है कि हजारों वजहें हैं हार मान लेने की, लेकिन लाखों वजहें हो भी सकती हैं जीने की..बस कभी हारा हुआ महसूस करें, तो सोचें कि जिंदगी ने कितना-कुछ दिया भी तो है, किसी दोस्त से बात कर लें, कुछ और सोच लें, मुश्किल है लेकिन कोशिश करके देखें, और ये समझें कि अगर पूरी दुनिया में कोई एक इंसान भी है जो चाहता है आपको, तो उनका क्या होने वाला है..
मुसीबतें हर एक को मिलती हैं, आप अकेले नहीं हैं जो लड़ रहे हैं, बल्कि हर कोई अपने मन में और अपनी ज़िंदगी में एक लड़ाई लड़ रहा है..इसीलिए कभी हार जाने का डर हो तो ख़ुद से बातें करें, किसी दोस्त से ऐसे ही बात कर लें, चीजों को ठीक करने की कोशिश न सही ज़िंदगी को समझने की कोशिश की जा सकती है..
हर एक ज़िंदगी बहुत मायने रखती है, और अगर आप इतने इमोशनल हैं कि हार से इतना घबरा जाते हैं, तो आपका दिल साफ़ है और ऐसे लोगों की बहुत ज़रूरत है दुनिया को..ज़िंदगी ख़त्म करने से अच्छा किसी अच्छे काम में लगा दीजिए, और इसके कई तरीके मैं बता सकता हूँ आपको...फिर देखिए कितना सुक़ून मिलता है, और आप एक ज़िंदगी में हज़ारों ज़िंदगियाँ जी सकेंगे.
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