तुकाराम ओम्बले

26/11
स्वर्गीय तुकाराम ओम्बले जी!
    कितना बड़ा कलेजा चाहिए AK-47 की नली के सामने अपनी छाती कर के सैकड़ों लोगों को मार चुके राक्षस का गिरेबान पकड़ने के लिए... एक गोली, दो गोली, दस गोली, बीस गोली... चालीस गोली... चालीस गोलियां कलेजे के आरपार हो गईं पर हाथ से उस राक्षस की कॉलर नहीं छूटी। प्राण छूट गया, पर अपराधी नहीं छूटा... कर्तव्य निर्वहन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है यह।
    स्वर्गीय ओम्बले सेना में नायक थे। सेना से रिटायर होने के बाद उन्होंने मुंबई पुलिस ज्वाइन की थी। चाहते तो पेंशन ले कर आराम से घर रह सकते थे। पर नहीं, वे जन्मे थे लड़ने के लिए, जीतने के लिए...  होते हैं कुछ योद्धा, जिनमें लड़ने की जिद्द होती है... वे कभी रिटायर नहीं होते, कभी बृद्ध नहीं होते, मृत्यु के क्षण तक युवा और योद्धा ही रहते हैं।
    एक थे कैप्टन विक्रम बत्रा... कारगिल युद्ध में एक चोटी जीत लिए, तो अधिकारियों से जिद्द कर के दूसरी चोटी के युद्ध में निकल गए, दूसरी जीत के बाद तीसरी, तीसरी के बाद चौथी... अधिकारियों ने छुट्टी दी, तो नकार दिए। कहते थे, "ये दिल मांगे मोर.." जब तक मरे नहीं तब तक लड़ते रहे...
    स्वर्गीय ओम्बले उसी श्रेणी के योद्धा थे। कलेजे के ताव से चट्टान तोड़ने की हिम्मत रखने वाले... कर्तव्यपरायणता की परिभाषा लिखने वाले...
    कभी-कभी हम सामान्य जन कुछ पुलिस कर्मियों की गलत हरकतों के कारण चिढ़ कर उन्हें भला-बुरा कह देते हैं। मुझे लगता है हजार बुरे एक तरफ, और स्वर्गीय तुकाराम जी जैसा कोई एक, एक तरफ रहे तब भी वे बीस पड़ेंगे। राष्ट्र ऋणी रहेगा ऐसे योद्धाओं का...
    आज ही कहीं पढ़ रहे थे कि यह देश संबिधान के कारण चल रहा है। मैं कह रहा हूँ यह देश किसी किताब के बल पर नहीं चल रहा, यह देश चल रहा है स्वर्गीय तुकाराम ओम्बले जैसे लोगों की वज्र छातियों के बल पर, जो चालीस गोलियाँ खा कर भी सूत भर नहीं डिगतीं...
    ऐसे योद्धाओं की कहानियाँ कही-सुनी जानी चाहिए। भगत सिंह, भगत सिंह इसलिए बने क्योंकि उन्होंने बचपन मे करतार सिंह सराबा की कथा सुनी थी। पण्डित चंद्रशेखर तिवारी, चंद्रशेखर आजाद इसलिए बने क्योंकि उन्होंने राणा और शिवा की कहानियाँ सुनी थीं।
    अपने बच्चों को तुकाराम ओम्बले की कहानियाँ सुनाना भारत....!!!! 
तभी तुम्हारे बच्चे योद्धा बनेंगे..!!💐💐
#जय_हिंद🇮🇳🇮🇳🇮🇳#जय_हिंद_की_सेना

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