लोक डाउन
जिसके भाग्य में अब जैसा भी लॉकडाउन है उसे पूरी ईमानदारी और बुद्धिमानी से स्वीकार कर लेना चाहिए। कुल मिलाकर अब हमें कोरोना के साथ जीना सीख लेना है ।
अब हमें निगाहों से बोलना उसी से समझना, सीखना पड़ेगा क्योंकि मास्क लगने पर आंखें ही बोलेंगी,आंखों से ही समझना पड़ेगा।
जब मास्क लगाकर निकलेंगे तो एक दूसरे को पहचान पाना मुश्किल होगा।
वैसे भी हम मनुष्य के जीवन में दिखता कुछ है और होता कुछ हैं।
जहां सत्यमेव जयते लिखा होता है वही असत्य के सौदे हो जाते हैं। जहाँ लिखा है रिश्वत ना ले वही जेब में हाथ जाता है।
कुल मिलाकर जो दिखता नहीं है वह होता है।
अब समझदारी इसी में है कि हम ऐसी निगाहे तैयार कर ले जो देख भी सके, बोल भी सके और समझा भी सके।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें