मन के मते


आप सोचते हैं कि कल जी लेंगे, अभी तो कितनी ही ज़िंदगी पड़ी है आगे,और वो कल कभी आ नहीं पाता.

सबसे पहले आता है बचपन..आप बहुत कुछ मन के मुताबिक़ करते हैं, भागते हैं-दौड़ते हैं-गिरते हैं, दुनियादारी तब भी चलती रहती है, लेकिन उस वक़्त आप अपने मन के हिसाब से थोड़ा-बहुत चलना सीख रहे होते हैं..कितनी ही बार इसलिए कूट दिए जाते हैं कि आप वैसे नहीं हो जैसे कि आपके आस-पड़ोस के टॉपर्स बच्चे हैं.

अरे छोड़िये ऐसे लोगों के बारे में सोचना,
हर बच्चा अलग होता है, और यही समझना जरूरी भी है हर बच्चा आईआईटी या आईआईएम नहीं जाता, बहुत सारे अपनी ज़िंदगी में और कुछ ढंग का करते हैं,बिज़नेसमैन और साइंटिस्ट लोग के अलावा कुछ लोग हमें बाइचुंग भूटिया, दीपा कर्माकर, सचिन, राजकुमार राव, मोहित चौहान, एमएफ हुसैन, जैसे भी तो चाहियें..

फिर आप बड़े हो जाते हैं, और सोचते हैं दुनिया बदल देंगे..थोड़ा-बहुत मन का करते भी हैं लेकिन उनमें से ज़्यादातर ऐसा होता है जो बस संगति के कारण होता है क्यूँकि आप आज़ादी की रौ में बह जाते हैं, घर और स्कूल से बाहर कॉलेज लाइफ को इंजॉय तो करते हैं आप लेकिन बहुत कम होते हैं जो अपने बचपन को इन सबके बीच ज़िंदा रख पाते हैं..

आप भिड़ जाते हैं पढ़ाई, मस्ती वगैरह में, और आपके भीतर का बच्चा सुप्तावस्था में जाने लगता है धीरे-धीरे..आपको आगे के कैरियर की चिंता होती है, आप पढ़ाई और दुनिया के बनाये नियमों में कहीं खोने लगते हैं, क्यूँकि आप आईआईटी, आईआईएम नहीं गए या कोई अच्छे कॉलेज से नहीं पढ़े तो जॉब अच्छी नहीं मिलेगी, अच्छा लड़का/लड़की नहीं मिलेगी शादी को, घर छोटा होगा, गाड़ी छोटी होगी..और बस आप अच्छी नौकरी के लिए जो बन पड़ता है, वो करने में लग जायेंगे..

आप जैसे-तैसे एक नौकरी पा लेते हैं, अगर सरकारी है तो थोड़ा-बहुत वक़्त अपने शौक के लिए भी निकाल लेते हैं, क्यूँकि आपके शायद एक स्थायित्व होता है, थोड़ा छुट्टियाँ होती हैं और सेट वर्किंग-आवर्स होते हैं, लेकिन अगर प्राइवेट नौकरी में गए तो काई को शौक..आपको अपनी पर्सनल ज़िंदगी से वक़्त निकालना पड़ता है अपने शौक पूरे करने के लिए, जो कम ही हो पाता है..

ये कहानी यूँ ही चलती रहती है, और एक नौकरी-परिवार-बच्चों के साथ आप अपनी ज़िंदगी गुज़ार देते हैं..आपको पता भी नहीं चलता कि आप भी ज़िंदगी जीना चाहते थे, और सोचते थे कि कल ऐसा कर सकेंगे, और वो कल कभी नहीं आता..आप दिन-ब-दिन खर्च होते जाते हैं, और आपको मिलता है एक दिन भागदौड़ और अनिश्चितता से भरा हुआ, जो किस तरह बीतेगा आप नहीं जानते.
इतना सब न भी हो तो आपको पता नहीं कि कब किस मोड़ पे आप ज़िंदगी हार दें..पता नहीं कितनी ही बार मौत ज़िंदगी का रास्ता काटकर निकलती होगी, लेकिन थोड़े बहुत टाइमिंग के फ़ासले से आप बच निकलते हों, और आपको पता भी न चलता हो..क्या पता कब कौन सा लम्हा आपके आने वाली ज़िंदगी की डोर को काट दे और आपके कल जीने वाली फिलोसॉफी का क्या हो पता नहीं.

आप तमाम तरह के इंश्योरेंस कराते हैं, पॉलीसीज़ लेते हैं, और जानते हैं कि ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं कि कब कोई अनहोनी हो जाए, इसलिए अपनी फ़ैमिली को सिक्योर करते हैं लेकिन भूल जाते हैं कि अगर ज़िंदगी का सच में भरोसा नहीं तो जितनी भी है ज़िंदगी मौत के पहले तक उसमें जी क्यूँ नहीं लेते? 
क्यूँ इंतज़ार करते हैं कि बाद में जियेंगे, और दरअसल होता यही है कि वो बाद या कल कभी आता नहीं है..

सोचकर देखिए, कि कितनी बार आज तक की ज़िंदगी में मौत आपको छूकर निकली होगी, लेकिन फ़िर भी आपने हर साँस और हर पल की क़ीमत नहीं समझी..आप लगे रहते हैं अपने मालिकों के लिए काम करने में, अपने परिवार के लिए, अपने बड़ों और छोटों की परवाह करने में..और जो होना भी चाहिए, लेकिन आपके अपने वजूद की भी तो कोई अहमियत है, उसका क्या? 

दूसरों के लिए कुछ करने या होने से पहले अपने लिए कुछ होने की कोशिश कीजिए, एक उम्र के बाद नहीं हर रोज़ अपने मन से कुछ कीजिए, थोड़ा मस्ती कीजिये, कुछ शरारतें कीजिए..कल क्या होगा कोई नहीं जानता, लेकिन आज जो है वो आप बना सकते हैं, और कोई भी चीज़ कितनी भी बड़ी क्यूँ न हो आपके अपने आप से बढ़कर नहीं है, ये समझना बहुत ज़रूरी है..

मैं ऐसा लिखता हूँ तो लोग पागल कहते हैं, कमेंट में लिखेंगे कि प्रैक्टिकल पॉसिबल नहीं है वगैरह-वगैरह, लेकिन मैं पर्सनली ऐसे लोगों को जानता हूँ जो न जाने कितने ही तरह की परेशानियों से जूझते हुए अपने मन का कर ही लेते हैं, जो समझते हैं हर साँस की क़ीमत, और जो अपने बच्चों के लिए मिसाल हैं कि दरअसल जीने का असल अर्थ है क्या..

थोड़ी मनमानी कीजिये ज़िंदगी में, थोड़े किस्से बनाइए, थोड़ी कहानियों का हिस्सा बनिये..कुछ तो सीक्रेट होना चाहिए, कुछ तो आपके भी किस्से हों जो सोचकर आप तब हँस लें जब मरने के कगार पर हों..एडवेंचर-स्पोर्ट्स या ऐसा कुछ जो पैसे खर्च करके मिले वो तो आम है, बात ऐसे एडवेंचर्स और किस्सों की है जो आपके अपने हों, और ज़िंदगी से आपने चुराए हों..

मुझे जीने की आदत इस क़दर है सुनो,
मैं हर रोज़ हज़ारों किस्सों में जीता हूँ खुलकर. 


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