थोड़ा जी ले
मेरे पसंदीदा और महान क्रांतिकारी कवि 'पाश' की एक कविता की पंक्तियाँ यूँ हैं.. "घर से निकलना काम पर, और काम से लौटकर घर आना, सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना" ये पंक्तियाँ इसलिए कि अक्सर हम सभी के साथ ऐसा होता है कि हम हर रोज़ के कामों में उलझकर जीना भूल जाते हैं, एक मशीन की मानिंद सुबह से रात कर देते हैं बिना ये सोचे कि गिनती के दिन मिले हैं और हम जीना भूलते जा रहे हैं, बस काट रहे हैं ज़िंदगी, जी नहीं पा रहे. दरअसल समस्या ये नहीं कि हम सक्षम नहीं बदलने के लिए हालात, समस्या ये है कि हमारा ध्यान ही नहीं जाता कभी इस ओर. हम बस रोज़ के कामों में एक प्रोग्राम किए गए रोबोट की तरह लगे रहते हैं, और यूँ ही दिन, महीने, साल बीतते जाते हैं. जब ख़्याल आता है कि एक ज़िंदगी भी है जीने को, तो न वक़्त होता है और न ताक़त. अक्सर अपनी सेल्स-जॉब के चलते तमाम तरह के टारगेट्स, टास्क, और कामों में इतना उलझ जाता हूँ कि ध्यान ही नहीं रहता कि ज़िंदगी भी तो है. हालाँकि हर तरह की जॉब और काम में टारगेट्स होते ही हैं फ़िर चाहे कुछ भी काम हो, लेकिन सेल्स जॉब में टारगेट्स एकदम विज़िबल होते हैं, नंबर्...