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थोड़ा जी ले

मेरे पसंदीदा और महान क्रांतिकारी कवि 'पाश' की एक कविता की पंक्तियाँ यूँ हैं.. "घर से निकलना काम पर, और काम से लौटकर घर आना, सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना" ये पंक्तियाँ इसलिए कि अक्सर हम सभी के साथ ऐसा होता है कि हम हर रोज़ के कामों में उलझकर जीना भूल जाते हैं, एक मशीन की मानिंद सुबह से रात कर देते हैं बिना ये सोचे कि गिनती के दिन मिले हैं और हम जीना भूलते जा रहे हैं, बस काट रहे हैं ज़िंदगी, जी नहीं पा रहे. दरअसल समस्या ये नहीं कि हम सक्षम नहीं बदलने के लिए हालात, समस्या ये है कि हमारा ध्यान ही नहीं जाता कभी इस ओर. हम बस रोज़ के कामों में एक प्रोग्राम किए गए रोबोट की तरह लगे रहते हैं, और यूँ ही दिन, महीने, साल बीतते जाते हैं. जब ख़्याल आता है कि एक ज़िंदगी भी है जीने को, तो न वक़्त होता है और न ताक़त.  अक्सर अपनी सेल्स-जॉब के चलते तमाम तरह के टारगेट्स, टास्क, और कामों में इतना उलझ जाता हूँ कि ध्यान ही नहीं रहता कि ज़िंदगी भी तो है. हालाँकि हर तरह की जॉब और काम में टारगेट्स होते ही हैं फ़िर चाहे कुछ भी काम हो, लेकिन सेल्स जॉब में टारगेट्स एकदम विज़िबल होते हैं, नंबर्...

कल आज ओर कल

【ज़िंदगी, सुक़ून, और सफ़र..】★ ज़िंदगी जैसे तमाम तरह के भ्रमों से घिरी हुई है, और सबसे बड़ा भ्रम है कि इंसान सोचता है जैसे वो हमेशा ज़िंदा रहेगा, जो ज़िंदगी का सबसे बड़ा झूठ है. हम सच जानते हैं लेकिन उसे स्वीकार नहीं करते, हम इस तरह जीते हैं मानो क़यामत तक ज़िंदा रहेंगे. अपने आज की परवाह नहीं करते, और बस कल को सुधारने के लिए अपने आज को जीते नहीं; अंततः आप हमेशा आज में ज़िंदगी ढोते रहते हैं और जिस कल के लिए ये सब करते हैं वो कभी नहीं आता.  हर 'कल' आपका, हर रोज़ 'आज' हो जाता है और आप एक नए कल के लिए इस आज के बीतते लम्हों को भी नज़रंदाज़ किए रहते हैं, और अंततः आप एक अटल सत्य से मिलते हैं, 'मृत्यु', जो अंत में आनी ही थी, बस आप ही बेफ़िक्र हुए बैठे रहे कि जैसे ज़िंदगी अनंत है, लेकिन वैसा कुछ होता नहीं.  ज़िंदगी का अटल सत्य है मौत, लेकिन हम भुला देते हैं इसे. ज़िंदगी और मौत जैसे मोमबत्ती के धागे के सिरों की तरह है, मोमबत्ती के जल उठने के बाद ही से धागा मोम के साथ जलना शुरु हो जाता है, और एक दिन जब मोम और धागा दोनों ख़त्म हो जाते हैं, तो सब ख़त्म हो जाता है.  आप भी जानते हैं कि वो दिन आना ...

विचारणीय

जिसने भी लिखा है शानदार लिखा है। सभी को पढ़ना चाहिए। एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई कि ये फिल्म अभिनेता या अभिनेत्री ऐसा क्या करते हैं कि इनको एक-एक फिल्म के लिए 50 करोड़ या 100 करोड़ रुपये मिलते हैं? जिस देश में शीर्षस्थ वैज्ञानिकों, डाक्टरों, इंजीनियरों, प्राध्यापकों, अधिकारियों इत्यादि को प्रतिवर्ष 10 लाख से 20 लाख रुपये मिलते हों, उस देश में एक फिल्म अभिनेता प्रतिवर्ष 10 करोड़ से 100 करोड़ रुपए तक कमा लेता है। आखिर ऐसा क्या करता है वो? देश के विकास में क्या योगदान है इनका? आखिर वह ऐसा क्या करता है कि वह मात्र एक वर्ष में इतना कमा लेता है जितना देश के शीर्षस्थ वैज्ञानिक को शायद 100 वर्ष लग जाएं! आज जिन तीन क्षेत्रों ने देश की नई पीढ़ी को मोह रखा है, वह है - सिनेमा, क्रिकेट और राजनीति। इन तीनों क्षेत्रों से सम्बन्धित लोगों की कमाई और प्रतिष्ठा सभी सीमाओं के पार है। यही तीनों क्षेत्र आधुनिक युवाओं के आदर्श हैं, जबकि वर्तमान में इनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगे हुए हैं। तो वह देश और समाज के लिए व्यर्थ ही है। बॉलीवुड में ड्रग्स व वेश्यावृत्ति, क्रिकेट में मैच फिक्सिंग, राजनीति में गु...

शुरुआत खुद से हो

✍️….. बहुत चिंता हो रही है, देश का बुरा हाल है, बहुत विकट स्थिति से गुज़र रहा है. गाड़ियों के शोरूम पर जाईये, नए मॉडल्स पे वेटिंग चल रही है , ग्राहकों को 6-6महीने तक गाड़ियों का इंतेजार करना पड़ रहा है ! रेस्टोरेंट में खाली टेबल नहीं मिल रही है , लाइन लग रही है बहुत से रेस्टोरेंटस पर ! शॉपिंग मॉल में पार्किंग की जगह नहीं है इतनी भीड़ है। कई मोबाइल कंपनियों के मॉडल आउट ऑफ स्टॉक हैं , एप्पल लांच होते हुए ही आउट ऑफ स्टॉक हो जा रहा है ! ऑनलाइन शॉपिंग के दौर में भी वर्किंग डे में भी शाम को बाजारों में पैर रखने को जगह नहीं है , रोज जाम जैसे हालात पैदा हो जाते हैं ! ऑनलाइन शॉपिंग इंडस्ट्री अपने बूम पर है !!! मगर लोगो को कह रहे हैं कि पट्रोल के दाम बढ़ने से ऊनके कमर तोड़ दी है। मेरे घर में जब बेमतलब की लाइटें जलती रहती हैं, पंखा चलता रहता है, टीवी चलता रहता है तब मुझे कोई तकलीफ नहीं होती परन्तु बिजली का दाम बढ़ते ही मेरी अंतरात्मा कराह उठती है जब मेरे बच्चे सोलह डिग्री सेंटीग्रेड पर एसी चलाकर कम्बल ओढ़कर सोते हैं तब मैं कुछ नहीं बोल पाता लेकिन बिजली का रेट बढ़ते ही मेरा पारा चढ़ जाता है। जब मे...

मोड

मोबाइल फोन की तरह मन भी अलग-अलग परिस्थिति में अलग-अलग मोड पर सैट होता है। सम्भवतः मनोविज्ञान में इसी को मूड कहा जाता हो।  कभी हम बहुत ख़ुश होते हैं, मतलब हम हैप्पी मोड में हैं। ऐसे ही सैड मोड, कन्फ्यूज़्ड मोड और एंग्री मोड भी हम सबके भीतर ऑन-ऑफ होते रहते हैं। यह सहज मानवीय स्वभाव भी है। लेकिन कुछ लोग पूरा जीवन एक ही मोड में बिता देते हैं। इनके सॉफ्टवेयर में बाक़ी किसी मोड पर जाने की वायरिंग ही नहीं होती। आप किसी भी परिस्थिति का वायर छू दो, वह उनके फिक्स मोड को ही पॉवर सप्लाई करेगा। ऐसा अक्सर भयभीत मोड और चिड़चिड़ा मोड के लोगों के साथ होता है। चिड़चिड़ा मोड के व्यक्ति हमेशा चिड़चिड़ाहट के अलंकार से अपना चेहरा सजाए रखते हैं। जिनका ऊपर का ओंठ कुछ शूकराकार होता हुआ ऊपर उठा रहता है और नासिका के मध्यभाग को सिकोड़ने की कवायद में दोनों नथुने भैंसे के नथुनों से प्रतियोगिता करते रहते हैं। चूँकि भैंसा कभी-कभी थकता भी है, इसलिए वह वर्ष में तीन-चार बार इनसे हार जाता है। इस विजय से इनकी चिड़चिड़ी शिराओं में प्रसन्नता की जो ऊर्जा प्रवाहित होती है, वह भी अंततः चिड़चिड़ाहट में ही परिणत हो जाती है। लगभग यही स्थित...

जीवन

यही जीवन है.  कुछ लोग अपनी पढाई 22 साल की उम्र में पुर्ण कर लेते हैं मगर उनको कई सालों तक कोई अच्छी नौकरी नहीं मिलती,  कुछ लोग 25 साल की उम्र में किसी कंपनी के सीईओ बन जाते हैं और 50 साल की उम्र में हमें पता चलता है वह नहीं रहे,  जबकि कुछ लोग 50 साल की उम्र में सीईओ बनते हैं और ताउम्र आनंदित रहते हैं, बेहतरीन रोज़गार होने के बावजूद कुछ लोग अभी तक ग़ैर शादीशुदा है और कुछ लोग बग़ैर रोज़गार के भी शादी कर चुके हैं और रोज़गार वालों से ज़्यादा खुश हैं, बराक ओबामा 55 साल की उम्र में रिटायर हो गये... जबकि ट्रंप 70 साल की उम्र में शुरुआत करते है,  कुछ लोग परीक्षा में फेल हो जाने पर भी मुस्कुरा देते हैं और कुछ लोग एक नंबर कम आने पर भी रो देते हैं,  किसी को बग़ैर कोशिश के भी बहुत कुछ मिल गया और कुछ सारी ज़िंदगी बस एड़ियां ही रगड़ते रहे, इस दुनिया में हर शख़्स अपने वक़्त और मेहनत की बुनियाद पर काम कर रहा है,  ज़ाहिर तौर पर हमें ऐसा लगता है कुछ लोग हमसे बहुत आगे निकल चुके हैं, और शायद ऐसा भी लगता हो कुछ हमसे अभी तक पीछे हैं,  लेकिन हर व्यक्ति अपनी अपनी जगह ठीक है अपन...

बचपन

हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी ,  पहला चरण   -   कैंची  दूसरा चरण    -   डंडा  तीसरा चरण   -   गद्दी . तब साइकिल चलाना इतना आसान नहीं था क्योंकि तब घर में साइकिल बस पापा या चाचा चलाया करते थे.  *तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था।* *"कैंची" वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे*। और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और *"क्लींङ क्लींङ" करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है* । *आज की पीढ़ी इस "एडवेंचर" से महरूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना "जहाज" उड़ाने जैसा होता था*। हमने ना जाने कितने दफे अपने *घुटने और मुंह तोड़वाए है* और गज़ब की बात ये है कि *तब दर्द भी नही होता था,* गिरने के बाद चारो तरफ दे...

ऑनलाइन

 आप जानते है 10 साल के 40 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे सोशल मीडिया (इंस्टा, फेसबुक, स्नैप चैट, टेलीग्राम और वाट्सऐप) पर एक्टिव है ?  क्या आप जानते है कि 50 प्रतिशत किशोर मोबाइल एडिक्टेड है ?   ये आधिकारिक आंकड़े है जबकि असल संख्या इससे कही  ज्यादा है । कोरोना की वजह से पिछले दो साल से चल रही आन लाइन क्लास ने बच्चे के हाथ में स्मार्ट फोन देने मजबूर कर दिया है । आजकल के माता पिता यहाँ तक की दादा-दादी, नाना-नानी भी जब स्वयं घण्टो मोबाइल पर अनेक मनोरंजक वीडियो देखने में बिताते हैं तो उन्हें बच्चे का मोबाइल में व्यस्त रहना सुविधाजनक लगने लगा है । खुद घण्टों मोबाइल पर रह हम बच्चों को मोबाइल से दूर रहने का उपदेश नही दे सकते । उनकी तो उम्र है टैकोनोलॉजी  की तरफ आकर्षण की । दोस्तों के बीच प्रदर्शन की , कि क्या महंगा खाया , कहाँ घूमे अपडेट करने की  । हमउम्र विपरीत लिंग की प्रोफाइल के आकर्षण में इनबॉक्स पर चैट करने की चाह की । आन लाइन गेम में चरित्रों को माउस आपरेट कर धड़ा धड़ गोली चलाते हुए सामने वाले को जान से मारकर खत्म कर हिंसात्मक प्रसन्नता का अनुभव करते है । इस काल...

फर्क

*ज़रा सा फर्क होता है,* *लोगों के जिंदा रहने में और एक दिन ना रहने में।* *ये इतने सारे लोग जो गए हैं, क्या कभी इनको देखकर ऐसा लगा था ? कि ये यूंही चले जायेंगें.......* @ *बिना कुछ कहे, बिना बताए* @ *उन सब से हमे कुछ लगाव था, कुछ शिकायतें थीं* *कुछ नाराज़गी भी थी, जो कभी ....कही... नहीं हमने* *और कहा तो वो भी नहीं था, जो उन सब इंसानो में बेहद पसंद था हमें।* *फिर अचानक सुबह एक दिन खबर आती है, ये नहीं रहे, वो नहीं रहे* *नहीं रहे मतलब, कैसे नहीं रहे ?* *कैसे एक पल में सब बदल जाता है?* *वही सारे लोग जिनसे हम मिले थे अभी कुछ समय पहले* *वे इतनी जल्दी गायब कैसे हो सकते हैं 😢, कि दोबारा मिलेंगे ही नहीं..ऐसा वे कभी कुछ बोले ही न थे।* *ना जिये* *जैसे कोई बेजान खिलौना,* *जिसकी चाबी खत्म हो गयी हो* *कितना कुछ कहना रह गया था उन सब को* *कहीं घूमने फिरने जाना था उन सब के साथ* *खाना भी खाना था, पार्टियां भी करनी थीं* *कुछ बताना था, कुछ कहना भी था उन सब को* *बहुत सी बातें करनी थी फ़िज़ूल की ही सही* *वो भी कहाँ हो पाया....!!* *सब रह गया* *वो सब चले गए* *न हम सब तैयार थे* *न वो सब तैयार थे* *जाने के लिए. *ऐस...

आईना

तजुर्बा. सच कहूँ तो क़रीब आधी ज़िंदगी लगी मुझे तमाम बातें समझने में, और जब लोग मुझे बदलने को कहते हैं तो लगता है कि कितनी मुश्किल से तो असल दुनिया को समझा हूँ, तो अब काहे बदलना.. बहुत सारी बातों में से कुछ बातें साझा कर रहा हूँ, जो मैंने सीखीं, और समझीं अपनी आज तक की ज़िंदगी में.. ●धर्म अफ़ीम की तरह है (कार्ल मार्क्स) ●धर्म का इस्तेमाल सबसे ज़्यादा राजनीति में होता है ●अक्सर जो दिखता है वो सच नहीं होता, कुछ और होता है ●मीडिया, आज सिर्फ़ आपका ब्रेनवाश करने का काम करता है ●न्यूज़-चैनल्स न्यूज़ बनाते हैं, जिसका फ़ायदा किसे होता है हम जानते हैं, बस मानते नहीं और न ही कहना चाहते हैं ●सरकारें हमें धीरे-धीरे दबाती हैं और हमें आदत हो जाती है सब सहते जाने की, क्यूँकि हम डरते हैं आवाज़ उठाने से ●ज़्यादातर लोग सिर्फ़ इसलिये अन्याय का साथ देते हैं क्यूँकि ऐसा करने वाले ज़्यादा ताक़तवर होते हैं, और या तो लोग उनसे डरते हैं, या उनसे कोई काम करवाना चाहते हैं ●दिमाग़ सबसे बड़ा हथियार है, बस तरीक़ा पता होना चाहिए ●प्यार सिर्फ़ एक बार हो ज़रूरी नहीं, बल्कि ये थोड़ा पेचीदा मामला है ●प्यार सच्चा या झूठा नहीं होता, ये बस होता ...

श्रद्धांजलि

श्रद्धांजलि_उन्हें_जिन्हें_हमने_खो_दिया. एक सहानुभूति हम सभी के लिए जिन्होंने अपने किसी न किसी दोस्त, रिश्तेदार, क़रीबी या पहचान वाले को असमय ही खो दिया COVID के कारण. हम कुछ चीज़ें बदल नहीं सकते, और न ही होने से रोक सकते हैं, बस प्रयास कर सकते हैं कि नुकसान कम से कम हो. प्रकृति कभी-कभी बहुत क्रूर हो जाती है, और शायद इसलिए भी कि इंसान संतुलन को बिगाड़ने लगा है.  दुनिया की कुछेक प्रतिशत लालची उद्यमी, व्यवसायियों, और सरकारों की करनी प्रकृति को मजबूर कर देती है संतुलन बनाए रखने और इंसान को ये एहसास कराने को भी कि वो इस ब्रह्मांड का कण भर भी नहीं है, लेकिन अधिकांशतः ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ता है उस आबादी को जिसका कोई कसूर भी नहीं. वो लोग जो बस अपनी दिनचर्या, दोस्तों और परिवार के साथ ज़िंदगी को जी रहे होते हैं, सरकार और प्रकृति के बनाए नियमों का पालन करते हुए. सबसे पहले यही लोग परेशानी और मुसीबत झेलते हैं, चाहे भूकंप हो, बाढ़ हो, सूखा हो, महामारी हो, या कोई युद्ध. ज़िंदगी भर नियमों और क़ायदों को ढोते रहने का बावजूद भी यही सबसे पहले शिकार बनते हैं.  बस एक श्रद्धांजलि उन सभी को, जिन्हें हमने खो द...

किताब

एक क़िताब के बारे में..... चुंकि मुझे हर तरह की क़िताबें पढ़ने का शौक है, तो 'रिच डैड पुअर डैड' क़िताब पढ़ रहा था थोड़े वक़्त पहले, जो दरअसल वित्तीय-प्रबंधन या फाइनैंशियल-मैनजेमेंट के बारे में है कि कैसे हमें स्कूल्स और कॉलेजेस में सिर्फ़ एक अच्छी नौकरी पाने के लिए पढ़ाया जाता है जबकि पैसे के बारे में कुछ भी नहीं सिखाया जाता.. क़िताब में एक अच्छी बात और मिली कि, "अगर आप पैसे के लिए काम करते रहेंगे तो एक डर के साथ जीते रहेंगे, कि अग़र किसी दिन ये न हुआ तो क्या होगा..और लोग जितनी ज़्यादा तनख्वाह पाते जाते हैं उतने ही अपने खर्चे और लोन्स बढ़ाते जाते हैं, इसके बजाय अपने आप को इस बात के लिए तैयार कीजिए कि आप उन चीज़ों के बिना भी जीने का जज़्बा न खोयें, और तभी आप ज़िंदगी में रिस्क ले सकते हैं और बहुत पैसा न होने के डर के बिना जीना सीख सकते हैं, जो बहुत ज़रूरी भी है."

बँटवारा

दरअसल हम गांव के लोग जितने खुशहाल दिखते हैं उतने हैं नहीं। जमीनों के केस, पानी के केस, खेत-मेढ के केस, रास्ते के केस, मुआवजे के केस, व्याह शादी के झगडे, दीवार के केस,आपसी मनमुटाव, चुनावी रंजिशों ने समाज को खोखला कर दिया है।  अब गांव वो नहीं रहे कि बस में गांव की लडकी को देखते ही सीट खाली कर देते थे बच्चे। दो चार थप्पड गलती पर किसी बुजुर्ग या ताऊ ने टेक दिए तो इश्यू नहीं बनता था तब।  अब हम पूरी तरह बंटे हुए लोग हैं। गांव में अब एक दूसरे के उपलब्धियों का सम्मान करने वाले, प्यार से सिर पर हाथ रखने वाले लोग संभवत अब मिलने मुश्किल हैं।  हालात इस कदर खराब है कि अगर पडोसी फलां व्यक्ति को वोट देगा तो हम नहीं देंगे। इतनी नफरत कहां से आई है लोगों में ये सोचने और चिंतन का विषय है। गांवों में कितने मर्डर होते हैं, कितने झगडे होते हैं और कितने केस अदालतों व संवैधानिक संस्थाओं में लंबित है इसकी कल्पना भी भयावह है।  संयुक्त परिवार अब गांवों में एक आध ही हैं, लस्सी-दूध जगह वहां भी dew कोक  पिलाई जाने लगी है। बंटवारा केवल भारत का नहीं हुआ था, आजादी के बाद हमारा समाज भी बंटा है औ...

आत्महत्या

कोई सेलिब्रिटी अगर खुद्खुशी करना चाहेगा तो वो करोड़ों क्यूँ कमाएगा, और इतना जिंदादिल कैसे होगा.. इसका जवाब हर इंसान खुद जानता है, कि भीतर कितना भी डिप्रेशन भरा पड़ा हो, चेहरे पे तो मुस्कुराहट रखनी ही पड़ती है..और डिप्रेशन कोई ऐसी चीज़ भी नहीं कि चेहरा देखकर आपको समझ आ जाये.. कितने ही लोग अपनी-अपनी तमाम वजहों से स्ट्रेस्ड होते हैं, लेकिन मजाल है कि आप अंदाज़ा भी लगा पायें.. ये तो वही व्यक्ति समझ सकता है जो इससे गुज़र रहा हो.. मैं कोई मनोवैज्ञानिक नहीं हूँ, लेकिन हमेशा पहले भी कई पोस्ट्स में लिख चुका हूँ, कि भले ही कितनी भी ऊँचाई क्यूँ न पा लें, उस ऊँचाई को या उस लाइफ़स्टाइल को अपनी आदत कतई न बनायें.. कब ज़िंदगी नीचे धकेल दे आप समझ भी नहीं सकेंगे.. उम्मीदें रखिये, मेहनत करिए, अपना बेस्ट दीजिये..लेकिन जीतने की शर्त मत रखिये, और जीत जायें तो इतनी समझ ज़रूरी है कि जीत और उसके बाद का नशा बहुत क्षणिक है, और आप जिस दिन उसे शाश्वत समझ लेंगे, बस उसी पल से आप ख़ुद को एक धोखे में रखना शुरू कर देंगे.. मैं देखता हूँ कई लोगों को जो अपनी हाई-प्रोफाइल ज़िंदगी और लाइफ़स्टाइल के इतने अभ्यस्त हो चुके होते हैं कि उसके...

भावशून्य

जीवन ! जीवन नश्वर है। लेकिन यह सदी का वो लम्हा है जब दुनिया जिंदगी की नश्वरता को इतना निकट से देख रही है। जगह जगह ह्रदय विदारक दृश्य है। कही कोई महिला अपने पति के इलाज के लिए हॉस्पिटल दर हॉस्पिटल भटक रही है तो कहीं कोई पिता बेटे के कंधे पर हाथ रखे इलाज की गुहार कर रहा है।  कबीर  कहते है सांसो के भीतर एक सांस ही ईश्वर है  खुदा है। उस सांस की सलामती के लिए मानवता को बड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है  उखड़ती साँसे ,रोते बिलखते चेहरे ,शोकाकुल  परिजन और  इस मंजर को देख कर  भावशून्य होता बचपन हमे बहुत कुछ सोचने को मजबूर करता है।                              अखबारों में शोक संदेश के पन्नो का दायरा बढ़ता जा रहा है। अपने प्रियजन को खोने का दुःख तो हर इंसानी ह्रदय में एक जैसा होता है। लेकिन जिनके पास पैसा है , उनके दुःख की गहनता इन इश्तिहारो के जरिये घनीभूत होकर सामने आती है। वक्त का वो दौर ही अच्छा होता है जब अख़बार के पन्नो पर पसरे जन्म दिन के संदेशो  की संख्या ज्यादा हो और शोक संदेश सिक...

रोचक जानकारी - 2

*👉🏻दूध ना पचे तो ~ सोंफ* , *👉🏻दही ना पचे तो ~ सोंठ*, *👉🏻छाछ ना पचे तो ~जीरा व काली मिर्च* *👉🏻अरबी व मूली ना पचे तो ~ अजवायन* *👉🏻कड़ी ना पचे तो ~ कड़ी पत्ता,* *👉🏻तैल, घी, ना पचे तो ~  कलौंजी.. *👉🏻पनीर ना पचे तो ~ भुना जीरा,* *👉🏻भोजन ना पचे तो ~ गर्म जल* *👉🏻केला ना पचे तो  ~ इलायची*              *👉🏻ख़रबूज़ा ना पचे तो ~ मिश्री का उपयोग करें...* 1.योग,भोग और रोग ये तीन अवस्थाएं है। 2. *लकवा* - सोडियम की कमी के कारण होता है । 3. *हाई वी पी में* -  स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन करें तथा स्नान करते समय थोड़ा सा नमक पानी मे डालकर स्नान करे । 4. *लो बी पी* - सेंधा नमक डालकर पानी पीयें । 5. *कूबड़ निकलना*- फास्फोरस की कमी । 6. *कफ* - फास्फोरस की कमी से कफ बिगड़ता है , फास्फोरस की पूर्ति हेतु आर्सेनिक की उपस्थिति जरुरी है । गुड व शहद खाएं  7. *दमा, अस्थमा* - सल्फर की कमी । 8. *सिजेरियन आपरेशन* - आयरन , कैल्शियम की कमी । 9. *सभी क्षारीय वस्तुएं दिन डूबने के बाद खायें* । 10. *अम्लीय वस्तुएं व फल दिन डूबने से पहले खायें* ...

आयुर्वेद के फायदे

💐💐पहला सुख निरोगी काया💐💐अपने डॉक्टर खुद बने(वैद्यकीय डॉक्टर से सलाह भी ले) ============ 1 =  केवल सेंधा नमक प्रयोग करे!थायराईड बी पी और पेट ठीक होगा! 2 = केवल स्टील का कुकर ही प्रयोग करें!अल्युमिनियम में मिले हुए लेड से होने वाले नुकसानों से बचेंगे! 3 = कोई भी रिफाइंड तेल ना खाकर केवल तिल! मूंगफली सरसों और नारियल का प्रयोग करें!रिफाइंड में बहुत केमिकल होते है!जो शरीर में कई तरह की बीमारियाँ पैदा करते है! 4 = सोयाबीन बड़ी को 2 घण्टे भिगो कर मसल कर ज़हरीली झाग निकल कर ही प्रयोग करे! 5 = रसोई में एग्जास्ट फैन जरूरी है!प्रदूषित हवा बाहर करे! 6 = काम करते समय स्वयं को अच्छा लगने वाला संगीत चलाएं। खाने में भी अच्छा प्रभाव आएगा और थकान कम होगी! 7 = देसी गाय के घी का प्रयोग बढ़ाएं। अनेक रोग दूर होंगे, वजन नहीं बढ़ता! 8 = ज्यादा से ज्यादा मीठा नीम/कढ़ी पत्ता खाने की चीजों में डालें सभी का स्वास्थ्य ठीक करेगा! 9 = ज्यादा से ज्यादा चीजें लोहे की कढ़ाई में ही बनाएं! आयरन की कमी किसी को नहीं होगी! 10 = भोजन का समय निश्चित करे!पेट ठीक रहेगा! भोजन के बीच बात न करें!भोजन ज्यादा पोषण देगा! 11 = नाश्त...

रोचक जानकारी

एक पंडितजी को नदी में तर्पण करते देख एक फकीर अपनी बाल्टी से पानी गिराकर जाप करने लगा कि.. "मेरी प्यासी गाय को पानी मिले।" पंडित जी के पूछने पर उस फकीर ने कहा कि. जब आपके चढ़ाये जल और भोग आपके पुरखों को मिल जाते हैं तो मेरी गाय को भी मिल जाएगा। इस पर पंडितजी बहुत लज्जित हुए।" यह मनगढ़ंत कहानी सुनाकर एक इंजीनियर मित्र जोर से ठठाकर हँसने लगे और मुझसे बोले कि -  "सब पाखण्ड है जी..!" शायद मैं कुछ ज्यादा ही सहिष्णु हूँ...  इसीलिए, लोग मुझसे ऐसी बकवास करने से पहले ज्यादा सोचते नहीं है क्योंकि, पहले मैं सामने वाली की पूरी बात सुन लेता हूँ... उसके बाद उसे जबाब देता हूँ। खैर...  मैने कुछ कहा नहीं .... बस, सामने मेज पर से 'कैलकुलेटर' उठाकर एक नंबर डायल किया...  और, अपने कान से लगा लिया। बात न हो सकी... तो, उस इंजीनियर साहब से शिकायत की। इस पर वे इंजीनियर साहब भड़क गए। और, बोले- " ये क्या मज़ाक है...??? 'कैलकुलेटर' में मोबाइल का फंक्शन भला कैसे काम करेगा..???" तब मैंने कहा.... तुमने सही कहा... वही तो मैं भी कह रहा हूँ कि....  स्थूल शरीर छोड़ चुके लो...

वाह

#बटोरना_और_बाँटना.. ये बात इस बारे में है कि आप कुछ कर सकते हैं कभी-कभी किसी के लिए, लेकिन आप करते नहीं क्यूँकि आप करना नहीं चाहते.  फेमस हॉलीवुड Batman-triology मूवीज़ में से एक मूवी का मशहूर विलेन #JOKER एक सीन में #BATMAN से कहता है.. "If you are good at something, never do that for free", मतलब ये कि 'अग़र आप किसी काम में अच्छे हैं तो आपको वो काम फ्री में नहीं करना चाहिए.' मूवी में ये बात JOKER तब कहता है BATMAN से जब वो अपने शहर GOTHAM को बचाने के लिए लड़ रहा होता है, ताक़ि BATMAN मुफ़्त में लोगों को बचाना बंद कर दे, और वो भी तब जब उसे कोई क्रेडिट नहीं मिलता, क्यूँकि कोई जानता भी नहीं कि BATMAN के मुखौटे के पीछे जो इंसान है वो Bruce Wayne है.  अब एकदम यही बात हम सभी पर भी लागू होती है ज़िंदगी में, कि हम अक्सर चाहते हुए भी प्रोफेशनली या पर्सनली लोगों की मदद नहीं करते क्यूँकि हम ऐसा नहीं करना चाहते, और अक्सर हम JOKER बनना ही चुनते हैं. दरअसल हमें यही सिखाया भी गया कि अपना फ़ायदा देखो, जिसे मरना है मरने दो. हम ये नहीं सोच पाते कि इंसान होना सबसे बड़ी बात है, और उससे भी बड़ी ब...

विष्णु तिवारी

चित्र
इसी देश में एक विष्णु तिवारी नाम के ग़रीब  भी रहतें हैं।  उन पर तेईस साल की उम्र में दुष्कर्म का फ़र्जी आरोप लगता है। एक ट्रॉयल कोर्ट में उन्हें सजा दी जाती है। वो जेल चले जातें हैं। इस बीच माताजी मर जातीं हैं तो पैरोल तक नहीं मिलता।  एक छोटा भाई ब्याह नहीं करता है कि भइया की शादी नहीं हुई तो मैं अपनी शादी कैसे कर लूं , पैरवी में घर की पाँच एकड़ जमीन बिक जाती है। पूरा परिवार सामाजिक बहिष्कार झेलते हुए सड़क पर आ जाता है।  आख़िरकार बीस साल लग जातें हैं,तब हाईकोर्ट को पता चलता है कि विष्णु तिवारी तो निर्दोष हैं। उन पर रेप का लगाया गया केस फ़र्जी है। परसों जब मैं अखबार में ये समाचार पढ़ा तो मन किया कि दीवाल में सर दे मारूँ। सोच रहा था कि आज पाँच साल में पूरी दुनिया बदल जाती है। किसी नें बीस साल जेल में कैसे बिताए होंगे ? आज बड़े-बड़े सुविधाभोगी लोग बीस सेकेंड में टूटकर आत्महत्या कर लेतें हैं। क्या विष्णु जी को मन न किया होगा कि घर गया,जमीन गई,इज्ज़त गई इस जीवन से अच्छा तो मर जाना है ?  लेकिन कितना धैर्य होगा..कितनी उम्मीदें..ख़ुद पर कितना विश्वास.. सत्य की ताकत पर कितना भरोसा....

शब्द

*-शब्दों का संसार-* शब्द रचे जाते हैं, शब्द गढ़े जाते हैं, शब्द मढ़े जाते हैं, शब्द लिखे जाते हैं, शब्द पढ़े जाते हैं, शब्द बोले जाते हैं, शब्द तौले जाते हैं, शब्द टटोले जाते हैं, शब्द खंगाले जाते हैं, *#अंततः* शब्द बनते हैं, शब्द संवरते हैं, शब्द सुधरते हैं, शब्द निखरते हैं, शब्द हंसाते हैं, शब्द मनाते हैं, शब्द रूलाते हैं, शब्द मुस्कुराते हैं, शब्द खिलखिलाते हैं, शब्द गुदगुदाते हैं,  शब्द मुखर हो जाते हैं, शब्द प्रखर हो जाते हैं, शब्द मधुर हो जाते हैं, *#फिर भी-* शब्द चुभते हैं, शब्द बिकते हैं, शब्द रूठते हैं, शब्द घाव देते हैं, शब्द ताव देते हैं, शब्द लड़ते हैं, शब्द झगड़ते हैं, शब्द बिगड़ते हैं, शब्द बिखरते हैं शब्द सिहरते हैं, *#किंतु-* शब्द मरते नहीं, शब्द थकते नहीं, शब्द रुकते नहीं, शब्द चुकते नहीं, *#अतएव-* शब्दों से खेले नहीं, बिन सोचे बोले नहीं, शब्दों को मान दें, शब्दों को सम्मान दें, शब्दों पर ध्यान दें, शब्दों को पहचान दें, ऊँची लंबी उड़ान दे, शब्दों को आत्मसात करें... उनसे उनकी बात करें, शब्दों का अविष्कार करें... गहन सार्थक विचार करें, *#क्योंकि-* शब्द अनमोल हैं... ज...

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