आईना
तजुर्बा.
सच कहूँ तो क़रीब आधी ज़िंदगी लगी मुझे तमाम बातें समझने में, और जब लोग मुझे बदलने को कहते हैं तो लगता है कि कितनी मुश्किल से तो असल दुनिया को समझा हूँ, तो अब काहे बदलना..
बहुत सारी बातों में से कुछ बातें साझा कर रहा हूँ, जो मैंने सीखीं, और समझीं अपनी आज तक की ज़िंदगी में..
●धर्म अफ़ीम की तरह है (कार्ल मार्क्स)
●धर्म का इस्तेमाल सबसे ज़्यादा राजनीति में होता है
●अक्सर जो दिखता है वो सच नहीं होता, कुछ और होता है
●मीडिया, आज सिर्फ़ आपका ब्रेनवाश करने का काम करता है
●न्यूज़-चैनल्स न्यूज़ बनाते हैं, जिसका फ़ायदा किसे होता है हम जानते हैं, बस मानते नहीं और न ही कहना चाहते हैं
●सरकारें हमें धीरे-धीरे दबाती हैं और हमें आदत हो जाती है सब सहते जाने की, क्यूँकि हम डरते हैं आवाज़ उठाने से
●ज़्यादातर लोग सिर्फ़ इसलिये अन्याय का साथ देते हैं क्यूँकि ऐसा करने वाले ज़्यादा ताक़तवर होते हैं, और या तो लोग उनसे डरते हैं, या उनसे कोई काम करवाना चाहते हैं
●दिमाग़ सबसे बड़ा हथियार है, बस तरीक़ा पता होना चाहिए
●प्यार सिर्फ़ एक बार हो ज़रूरी नहीं, बल्कि ये थोड़ा पेचीदा मामला है
●प्यार सच्चा या झूठा नहीं होता, ये बस होता है. सच्चा या नहीं, ये बस फिल्मों का बनाया चोंचला है
●आजकल का आकर्षण वाला प्यार कैफे, कैडबरी, ग़ुलाब और गिफ्ट्स से शुरू होता है और सोडे के बुलबुले की तरह जल्दी ख़त्म भी हो जाता है.
●शादी की व्यवस्था ठीक है, लेकिन ऐसा नहीं कि इसके बिना आप ज़िंदा ही नहीं रह सकते
●ईश्वर, ख़ुदा सच में हैं या नहीं पता नहीं, लेकिन आप हैं! तो अपने आपको भी वक़्त दीजिए.
●हम करना बहुत कुछ चाहते हैं,और कर भी सकते हैं लेकिन अपने रूटीन में इतने रम जाते हैं कि कम्फर्ट-ज़ोन छोड़ना नहीं चाहते
●अंततः हम सब मतलबी हैं. सबसे पहले ख़ुद के बारे में ही सोचते हैं. ये ज़रूरी भी है.
और भी कई बातें हैं. वो फ़िर कभी किसी पोस्ट में.
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