फर्क
*ज़रा सा फर्क होता है,*
*लोगों के जिंदा रहने में और एक दिन ना रहने में।*
*ये इतने सारे लोग जो गए हैं, क्या कभी इनको देखकर ऐसा लगा था ? कि ये यूंही चले जायेंगें.......*
@ *बिना कुछ कहे, बिना बताए* @
*उन सब से हमे कुछ लगाव था, कुछ शिकायतें थीं*
*कुछ नाराज़गी भी थी, जो कभी ....कही... नहीं हमने*
*और कहा तो वो भी नहीं था, जो उन सब इंसानो में बेहद पसंद था हमें।*
*फिर अचानक सुबह एक दिन खबर आती है, ये नहीं रहे, वो नहीं रहे*
*नहीं रहे मतलब, कैसे नहीं रहे ?*
*कैसे एक पल में सब बदल जाता है?*
*वही सारे लोग जिनसे हम मिले थे अभी कुछ समय पहले*
*वे इतनी जल्दी गायब कैसे हो सकते हैं 😢, कि दोबारा मिलेंगे ही नहीं..ऐसा वे कभी कुछ बोले ही न थे।*
*ना जिये*
*जैसे कोई बेजान खिलौना,*
*जिसकी चाबी खत्म हो गयी हो*
*कितना कुछ कहना रह गया था उन सब को*
*कहीं घूमने फिरने जाना था उन सब के साथ*
*खाना भी खाना था, पार्टियां भी करनी थीं*
*कुछ बताना था, कुछ कहना भी था उन सब को*
*बहुत सी बातें करनी थी फ़िज़ूल की ही सही*
*वो भी कहाँ हो पाया....!!*
*सब रह गया*
*वो सब चले गए*
*न हम सब तैयार थे*
*न वो सब तैयार थे*
*जाने के लिए.
*ऐसे ही एक दिन हमारी भी खबर आनी है, एक सुबह*
*कि वो फलाने नहीं रहे*
*लोग, अरे! कह के एक मिनिट खामोश होंगे*
*फिर जीवन बढ़ जाएगा आगे*
*इसलिए आओ तैयारी कर लेते हैं*
*सब नाराज़गी, शिकायतों और तारीफों का हिसाब चुका के रख लेते हैं।*
*ज़िंदगी हल्की हो जाएगी, तो आखरी सांस पर मलाल का वज़न नहीं रहेगा,*
*क्योंकि*
*ज़रा सा फर्क होता है,*
*लोगों के जिंदा रहने में और एक दिन ना रहने में।*
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