कल आज ओर कल

【ज़िंदगी, सुक़ून, और सफ़र..】★

ज़िंदगी जैसे तमाम तरह के भ्रमों से घिरी हुई है, और सबसे बड़ा भ्रम है कि इंसान सोचता है जैसे वो हमेशा ज़िंदा रहेगा, जो ज़िंदगी का सबसे बड़ा झूठ है.

हम सच जानते हैं लेकिन उसे स्वीकार नहीं करते, हम इस तरह जीते हैं मानो क़यामत तक ज़िंदा रहेंगे. अपने आज की परवाह नहीं करते, और बस कल को सुधारने के लिए अपने आज को जीते नहीं; अंततः आप हमेशा आज में ज़िंदगी ढोते रहते हैं और जिस कल के लिए ये सब करते हैं वो कभी नहीं आता. 

हर 'कल' आपका, हर रोज़ 'आज' हो जाता है और आप एक नए कल के लिए इस आज के बीतते लम्हों को भी नज़रंदाज़ किए रहते हैं, और अंततः आप एक अटल सत्य से मिलते हैं, 'मृत्यु', जो अंत में आनी ही थी, बस आप ही बेफ़िक्र हुए बैठे रहे कि जैसे ज़िंदगी अनंत है, लेकिन वैसा कुछ होता नहीं. 

ज़िंदगी का अटल सत्य है मौत, लेकिन हम भुला देते हैं इसे. ज़िंदगी और मौत जैसे मोमबत्ती के धागे के सिरों की तरह है, मोमबत्ती के जल उठने के बाद ही से धागा मोम के साथ जलना शुरु हो जाता है, और एक दिन जब मोम और धागा दोनों ख़त्म हो जाते हैं, तो सब ख़त्म हो जाता है. 

आप भी जानते हैं कि वो दिन आना ही है, जब ये धागा अपने अंत तक पहुँचेगा, लेकिन इसे सोचते नहीं, बल्कि बस धागा धीरे-धीरे जलता रहता है और एक दिन सब ख़त्म हो जाता है ख़ामोशी से; न कोई आवाज़ और न ही रौशनी.

दरअसल, धागे के दोनों सिरों के बीच जो है वही #ज़िंदगी है, और हमें इस बात को सोचना ही चाहिए कि किस तरह इस बीच के सफ़र को यादगार बना सकते हैं और खुलकर इसे जी सकते हैं, क्यूँकि अंत तो एक दिन आना ही है, मायने बस इस बात के हैं कि कितनी ख़ूबसूरती से इस जलते हुए धागे को आपने एंजॉय किया.

किस तरह आप इस बीच के सफ़र को जी सके, किस तरह इस बीच के वक़्त को आपने वैसे जिया जैसा कि आप असल में चाहते थे, किस तरह आपने कुछ ख़ूबसूरत लम्हे जुटाए जो अंत के वक़्त आपको एहसास दिला सकें कि आपने अंततः जन्म और मृत्यु के बीच के वक़्त को मन के मुताबिक़ जिया, और यक़ीन मानिए कि जब अस्पताल के बिस्तर पर पड़े होंगे तो बस यही सुक़ून की बात होगी.

हर ख़ुशी, सुक़ून, एहसास और इच्छा को कल जीने के लिए छोड़ देते हैं आप, और वो कल कभी नहीं आता; बल्कि धीरे-धीरे वक़्त आपको अपने साथ खर्च किए रहता है, और एक वक़्त वो आता है कि आप वो कर नहीं पाते जो हमेशा चाहते थे, और बस एक रिग्रेट रह जाता है पास कि, काश वक़्त रहते जी लिए होते तो अंत बेहतर हो सकता था.

हर पल मौत की तरफ़ बढ़ते ज़िंदगी के सफ़र को मन के मुताबिक़ समय रहते जीना सीख लेंगे तो समझेंगे कि सुक़ून क्या होता है. बात ये भी है कि कोई आपको बताएगा नहीं बल्कि आपको ख़ुद ही समझना पड़ेगा, और क़दम बढ़ाना पड़ेगा, ताक़ि आप अपने अंत के वक़्त के लिए 'यादें' जोड़ सकें 'काश' नहीं. 

बस इतना ही कि जब तक है ज़िंदगी, तब तक जितना हो सके मन की सुनिए, क्यूँकि ज़िंदगी कितनी है पता नहीं और वक़्त रेत की तरह हर लम्हा फिसल रहा है. इससे पहले कि मुट्ठी ख़ाली हो जाए इसे जी लीजिए.

आज वक़्त है, कल नहीं होगा. आपने कैसे इसे जिया अंत में आपके लिए इसी के मायने अहम होंगे. ❤️
(बिखराव की लिखी हुई पोस्ट)

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