भावशून्य
जीवन !
जीवन नश्वर है। लेकिन यह सदी का वो लम्हा है जब दुनिया जिंदगी की नश्वरता को इतना निकट से देख रही है। जगह जगह ह्रदय विदारक दृश्य है। कही कोई महिला अपने पति के इलाज के लिए हॉस्पिटल दर हॉस्पिटल भटक रही है तो कहीं कोई पिता बेटे के कंधे पर हाथ रखे इलाज की गुहार कर रहा है।
कबीर कहते है सांसो के भीतर एक सांस ही ईश्वर है खुदा है। उस सांस की सलामती के लिए मानवता को बड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है उखड़ती साँसे ,रोते बिलखते चेहरे ,शोकाकुल परिजन और इस मंजर को देख कर भावशून्य होता बचपन हमे बहुत कुछ सोचने को मजबूर करता है।
अखबारों में शोक संदेश के पन्नो का दायरा बढ़ता जा रहा है। अपने प्रियजन को खोने का दुःख तो हर इंसानी ह्रदय में एक जैसा होता है। लेकिन जिनके पास पैसा है , उनके दुःख की गहनता इन इश्तिहारो के जरिये घनीभूत होकर सामने आती है। वक्त का वो दौर ही अच्छा होता है जब अख़बार के पन्नो पर पसरे जन्म दिन के संदेशो की संख्या ज्यादा हो और शोक संदेश सिकुड़ते नजर आए /
संकट की इस घड़ी में मदद को हजारो हाथ उठ रहे है। लोग अपनी जान की परवाह किये बगैर कोरोना से पीड़ित लोगो की मदद कर रहे है। कुछ ऐसे डॉक्टर भी है जो संक्रमित लोगो का इलाज करते करते खुद जिंदगी की जंग हार गए / पर कुछ ऐसे भी है जिनका ह्रदय धड़कता जरूर है। लेकिन मानवीय पीड़ा की मर्मस्पर्शी कहानिया उन्हें विचलित नहीं करती है। उनके लिए यह दौर महज एक कारोबार है। दुनिया के बाकि हिस्सों में कहते है प्यार और जंग में सब कुछ जायज है। पर भारत तो वो देश है जिसने जीवन के हर क्षेत्र के लिए नियम बना कर मानवता को निर्देशित किया है। इसमें युद्ध भी शामिल है तो व्यापार भी /
वक्त ने जब इम्तिहान लिया तो कही एम्बुलेंस ,कहीं दवा विक्रेता ,कही डॉक्टर ,कही हॉस्पिटल और कोई सांसो का कारोबारी जिंदगी के लिए लड़ती उखड़ती सांसो से मोल भाव करता मिला। मरघट और शमशान तो वैराग्य का भाव पैदा करते रहे है। ये वो मकाम है जो जीवन की क्षण भुंगरता का पाठ पढ़ाता है। पर लोग मोल भाव हिसाब किताब करते मिले। क्या करोगे उस पैसे का ? किसी ग़मज़दा जिंदगी की गुल्ल्क लूट कर गुलाब जामुन खाओगे ? क्या श्मशान में रुदन विलाप तुम्हे विचलित नहीं करता है ?
मृत्यु एक सत्य है। मगर उसका भी वक्त मुकर्रर है। कोई असमय चला जाये तो बहुत दुःख होता है। पिछले कुछ दिनों में कुछ परिचित ,कुछ दोस्त ,कुछ करीबी लोगो को जाते हुए देखा है। कुछ से मुलाकत उस तरह नहीं थी। मगर जानते जरूर थे। उनको बे वक्त जाते देख कर मन विचलित है।
किसी शायर और लेखक ने कहा था - मौत जिंदगी की सबसे बड़ी क्षति नहीं है। जीवन की सबसे बड़ी क्षति तो तब होती है जब हम जिन्दा हो और भीतर बहुत कुछ मर जाये।
यह बहुत कठिन समय है। यह घड़ी निंदा मलानत की नहीं है। अगर हम सब मिलकर इस विपत्ति का मुकाबला नहीं करेंगे तो मानवता का बड़ा नुकसान होगा। भारतीय समाज में अद्भुत शक्ति और सामूहिकता भाव है। और हम इस आपदा को जरूर शिकस्त देंगे।
दिया मंदिर का हो मजार का हो
बेवक्त बुझता अच्छा नहीं लगता
अभी लम्बा सफर तय करना था
यूँ किसी का बीच चले जाना अच्छा नहीं लगता।
सादर
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