ऑनलाइन
आप जानते है 10 साल के 40 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे सोशल मीडिया (इंस्टा, फेसबुक, स्नैप चैट, टेलीग्राम और वाट्सऐप) पर एक्टिव है ?
क्या आप जानते है कि 50 प्रतिशत किशोर मोबाइल एडिक्टेड है ?
ये आधिकारिक आंकड़े है जबकि असल संख्या इससे कही ज्यादा है । कोरोना की वजह से पिछले दो साल से चल रही आन लाइन क्लास ने बच्चे के हाथ में स्मार्ट फोन देने मजबूर कर दिया है ।
आजकल के माता पिता यहाँ तक की दादा-दादी, नाना-नानी भी जब स्वयं घण्टो मोबाइल पर अनेक मनोरंजक वीडियो देखने में बिताते हैं तो उन्हें बच्चे का मोबाइल में व्यस्त रहना सुविधाजनक लगने लगा है । खुद घण्टों मोबाइल पर रह हम बच्चों को मोबाइल से दूर रहने का उपदेश नही दे सकते । उनकी तो उम्र है टैकोनोलॉजी की तरफ आकर्षण की । दोस्तों के बीच प्रदर्शन की , कि क्या महंगा खाया , कहाँ घूमे अपडेट करने की । हमउम्र विपरीत लिंग की प्रोफाइल के आकर्षण में इनबॉक्स पर चैट करने की चाह की । आन लाइन गेम में चरित्रों को माउस आपरेट कर धड़ा धड़ गोली चलाते हुए सामने वाले को जान से मारकर खत्म कर हिंसात्मक प्रसन्नता का अनुभव करते है । इस काल्पनिक सनसनी और उन्माद के साथ अब तो गेम की जीत हार में सट्टे या जुए की तर्ज पर बच्चे पैसा भी लगा रहे है । अपने ही घर में चोरी तक कर रहे है । मोबाइल रिचार्च ना करने पर मरने मारने पर उतारू हो जाते है । क्या आप जानते है कि आज के 12 साल तक के 80 प्रतिशत बच्चे कभी ना कभी एडल्ट कंटेंट वीडियो देख चुके होते है और माता पिता इस बात से बेखबर होते है कि कब उन्ही के मोबाइल गैलरी खंगालते बच्चे का कोमल मन असमय इस मानसिक मादकता की चपेट में आया है ।
बीते कुछ सालों में यौन अपराधों में कम उम्र लड़कों का बढ़ता ग्राफ देख मनोवैज्ञानिक सकते में है । आप पाठकों में जो किशोर बच्चों के माता पिता है वे कभी अपने बच्चों की टीचर से चर्चा करने देखिए कि उनकी आन लाइन क्लास में जूम मीटिंग पर किसी अन्य नई आई डी से बच्चे को एंट्री क्यो नही मिलती ? आप अनुमान लगाएंगे कि टीचर का व्यवसायिक जवाब होगा कि किसी अन्य स्कूल का छात्र हमारे स्कूल की क्लास से लाभ ना उठा ले ..।यदि आप ऐसा सोचते है तो आप गलत है । क्लास 7 से लेकर क्लास 10 के बीच के सभी टीचर्स के पास लगभग एक से जवाब मिलेंगे। कुछ बच्चों ने अनजान आई. डी. से प्रवेश लेकर चलती क्लास में एडल्ट कंटेंट का वीडियो चला दिया या अश्लील भाषा में क्लास में लगातार कमेंट या गालियाँ टाइप करने लगे और हमें फौरन उस आई डी को क्लास से बाहर करना पड़ा । ये अनजान आई .डी . कभी भी किसी आउटसाइडर वयस्क की ना होकर उसी क्लास के किसी बच्चे की होती है जिसने टीचर द्वारा 5 मिनिट पहले जूम लिंक शेयर होते ही एंट्री करता है । कच्ची उम्र का वर्चुअल मानसिक प्रदूषण अपने चरम पर है और अभिभावक इससे अनभिज्ञ है , बेखबर है।
आन लाइन गेम की लत ने बच्चों के मानसिक और शारीरिक सेहत का कबाड़ा कर रखा है। एडिक्टेड बच्चे लंच टाइम से लेकर डिनर तक टॉयलेट से लेकर सड़क तक , पूरी पूरी रात जागकर गेम खेलते है । सामाजिकता , सृजनात्मकता और खेल के मैदान से दूर इस किशोर मानसिक विकार पर बात करने की किसी को फुर्सत नही जबकि अब वक्त आ चुका है कि इस पर खुली चर्चा पेरेंटिंग का एक हिस्सा होना चाहिए । हमारे देश को अच्छे नागरिक देना किसका कर्तव्य है ?? शिक्षकों, अभिभावकों , सरकार और मनोवैज्ञानिकों के सहयोग से इस उम्र के सभी बच्चों के लिए अनवरत साझा काउंसलिंग अनिवार्य है ।
मैंने इससे पहले भी आन लाइन क्लासेस की जरूरत के बावजूद दुष्परिणामों पर लिखा था ।बच्चे "बिहाइंड द स्क्रीन" क्या कर रहे है उस पर सतत निगरानी जरूरी है । सिर्फ "निषेध" ही एक मात्र उपाय नही है । बच्चा प्रतिबंध लगाने पर माता पिता से नफरत करने लगेगा इसलिए उसके साथ मित्रवत समय गुजार कर, घर के बाहर खेलने प्रेरित करके , उसके साथ उसकी पसंदीदा फिल्मे देखकर, यौन आकर्षण पर बेझिझक चर्चा करके , उसके शौक पर काम करने प्रेरित करके , उसकी खूबियों पर उत्साहवर्धन करके , कच्ची उम्र की गलतियों के भयावह परिणामों के उदाहरण से ही आप अपना बच्चा सुरक्षित रख सकते है । यकीन मानिए वो अपराधी नही है । सिर्फ लापरवाह परवरिश से गर्त की तरफ बढ़ता राही है जिन्हें सिर्फ प्रेम भरे हाथों से थामा जा सकता है ।
(मधु चतुर्वेदी जी द्वारा लिखा गया )
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें