एनजीओ की पड़ताल



एनजीओ का उद्देश्य राजनीतिक विकल्प तैयार करना कतई नहीं होता है. उसकी गतिविधियां राजनैतिक विकल्प वाले आंदोलनों को कमजोर करती हैं. एनजीओ की अवधारणा पूंजीवादी देशों की तैयार की गई है. राजनीतिक विकल्प की जब हम बात करते हैं तो उसमें यह निहित होता है कि जिन लोगों द्वारा अपने हितों में व्यवस्था चलाई जा रही हैसत्ता के उस आधार को बदला जाए. जिनका शोषण हो रहा है अपनी व्यवस्था का निर्माण करें.

एनजीओ का बड़ा हिस्सा इसी वर्ग को विभिन्न तरह के वैसे कार्यक्रमों में सक्रिय करता हैजिनसे उनके जीवन का कोई हिस्सा प्रभावित होता है. अपने देश में बड़े एनजीओ विदेशों की मदद से चलते हैं. विदेशी मदद को यहां राष्ट्रवाद के चश्मे से नहीं देखें बल्कि विदेशी सहयोग के अर्थों को पहले समझने की कोशिश करें. कई स्तरों पर एक देश दूसरे देश की मदद करते हैं और उन सबको विदेशी मदद कहा जा सकता है. लेकिन विदेशी मदद शब्द के इस्तेमाल से उसके साथ जो ध्वनि निकलती हैवह तय करती है कि उसका उस संदर्भ में क्या मायने हैंक्या ये आरोप की शक्ल में हैंअपने देश में राजनीतिक स्तर पर जब विदेशी मदद का आरोप लगाया जाता है तो वह राष्ट्र की सार्वभौमिकता और स्वतंत्रता में हस्तपेक्ष की कोशिश का विरोध होता हैविदेशी मदद की राजनीति ने भारतीय समाज को बहुत नुकसान पहुंचाया है.
 वास्तव में हमें एनजीओ की पड़ताल आत्मनिर्भरता, स्वावलंबन की राजनीति के विकास के संदर्भ में करनी होगी. किसी भी परिवर्तनगामी आंदोलन की कसौटी यह होती है कि उसके विकास और विस्तार को निर्देशित करने वाली ताकत किसके हाथों में है. जनता विदेशीवित्तीय मदद वाले आंदोलन में भी हो सकती है और अपने संसाधनों के बूते भी वह आंदोलन खड़ी कर सकती है लेकिन दोनों तरह के आंदोलनों की अपनी-अपनी फसल तैयार होती है. एनजीओ की राजनीति पर एक मुक्कमल बहस की जरूरत है लेकिन बहस को कई स्तरों पर घालमेल कर भटकाया जाता रहा हैएनजीओ के पंजीकरण की प्रक्रिया इतनी सरल और सुगम है कि कोई भी व्यक्ति चंद कागजों की खानापूर्ति करके अपनी एनजीओ बना लेता है। सबसे पहले इन सामाजिक संस्थाओं के पंजीकरण प्रक्रिया को बदलने की आवश्यकता है।  संस्थाओं का पंजीकरण करते समय ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों और जिला परिषद के जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ स्थानीय विधायक और सांसद की अनुमति भी अनिवार्य कर देनी चाहिए। इसके साथ ही इलाके की किसी प्रमुखशख्सियत को जमानती के तौरपर भी शामिल करने का प्रावधान बनाया जाना चाहिए। जो भी संस्था पंजीकृत हो, उसके कार्यालय,लक्ष्य, सदस्य आदि का पूरा खुलासा सार्वजनिक स्तर पर होना चाहिए। हर संस्था का कार्यक्षेत्र तय कर दिया जाना चाहिए। इससे एक ही स्थान पर एक ही कार्य के लिए दर्जनों एनजीओ के पंजीकरण का कोई औचित्य नहीं है। एक ही छत के नीचे रहने वालेपरिवार के एक से अधिक सदस्यों के नाम संस्था पंजीकृत करवाना गैर-कानूनी होना चाहिए। एक एनजीओ को एक समय पर एक ही प्रोजेक्ट देने का प्रावधान करना चाहिए। जब तक एक प्रोजेक्ट पूरा न हो, दूसरे प्रोजेक्ट के लिए अनुदान जारी नहीं किया जानाचाहिए, ताकि एनजीओ संचालकों में अधिक से अधिक पैसा हड़पने की प्रवृति पर अंकुश लग सके। संस्थाओं का पंजीकरण सीमित अवधि पाँच या दस साल के लिए होना चाहिए। संतोषजनक कार्य निष्पादन के आधार पर उन्हें आगामी निश्चित अवधि के लिए नवीनीकृत करने का प्रावधान किया जाना चाहिए

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