धर्म के नाम पर

तो परसों शाम से पहलगाम का न्यूज देख रहा हूं मैं, दुःख 26 से ज्यादा लोगों की मृत्यु का है, और दिल के किसी कोने में एक कसक भी, सोचा कुछ लिंखू पर फिर सोचा की लिखना सही भी होगा क्योंकि हालात बदत्तर है देश का, जनता की, लिखने को तो लिख दो पर वही तुम सत्ता के गुलाम हो, तुम विपक्ष के गुलाम हो।
फिर भी लिख रहा पता न किसपे क्या असर होगा वो तो पोस्ट के रिएक्शन से पता चलेगा
तो सच ये है की हम बंट रहे है, मजहब के नाम पे, कास्ट के नाम पे, स्टेट के आधार पे, भाषा के आधार पे, क्षेत्र के आधार पे, कही कही शक्ल के आधार पे(ख़ासकर के पूर्वोत्तर राज्यों के लोगो के साथ ऐसा भेद भाव देखा जाता है)
ये बंटवारा हम खुद के लिए नही करते है, यही एक कटु सत्य है इसे चाहे कोई कितना भी झुठला ले पर सत्य यही है की हम खुद के लिए नही बंटे है हमें बांट दिया गया है और इसी बंटवारे से चल रही है राजनीति, धर्म के नाम पे हिंदुत्व का झंडा लिए कुछ पार्टी वाले, कुछ इस्लाम के सपोर्ट करने वाले इन्होंने देश बांटा है, कास्ट के हिसाब से राज्यों के जनता को बांट दिया गया है, इसमें मलाई सभी राजनीतिक पार्टी वाले खाते है
इससे फायदा किसको है अगर देखा जाए तो इससे फायदा चंद कुछ पार्टी वालो को और घाटा जनता को आवाम को।
हमारा ध्यान खींचा गया तमिलनाडु में रुपया के सिंबल को हटा के, हमारा ध्यान खींचा जाता है हिंदी भाषा का विरोध कर के, हमारा ध्यान खींचा जाता है संसद के खिलाफ फैसले के खिलाफ़ बंगाल राज्य को जला के, हमारा ध्यान खींचा जाता है बिहारी, झारखंडी और यूपी के प्रवासी मजदूरों को राज्यों से भगा के, हमारा ध्यान आंतरिक कलह पे रह गया और परसो की शाम बाहर वाले हमारे मस्तक पे दाग लगा गए।
केंद्र में बैठी सरकार एक्शन लेने के बजाए बस तमाशा देख रही है, उसका ध्यान उन बोंटियो पे भी है जिसपे उसका कब्जा नही है, उसे फर्क नही पड़ता की देश की संप्रभुता पे कोई राज्य अंगुली उठा रहा है और आंखे दिखा रहा है, उसे चाहिए वो भी राज्य जिसपे उसका कब्जा नही है, चाहे उसके एवज में राज्य जल जाएं या फिर कुछ भी हो जाए।

जब की हमारा ध्यान रहना चाहिए शिक्षा पे, विदेशी खतरो पे, देश की गरिमा पे, उसके उत्थान पे, संप्रभुता और अखंडता पे, 
हमारे सामाजिक धर्म ही देश होना चाहिए, और व्यक्तिगत धर्म खुद का मजहब

हमें चाहिए पूरा काश्मीर, हमे चाहिए अक्साई चीन, हमे चाहिए अखंड भारत पर उस क्षेत्र के लोगो को अपनाने में हमे हिचक होती है।

जम्मू और काश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है और इसकी ज़िम्मेदारी तो किसी को लेनी होगी न और वर्तमान सरकार इसकी जिम्मेदार है, बस कहना यहीं है की जब तक बदला नहीं लिया जाता हमारे 26 से ज्यादा भाईयो और बहनों का तब तक माफी के काबिल भी नही है केंद्र सरकार हमे चाहिए बदला, चाहे जैसे जिस तरह से लेकिन चाहिए बदला।

सावन

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