सड़क निर्माण प्रक्रिया
यह चिंता का विषय है कि जिस देश में हर साल लगभग एक लाख
लोग सड़क हादसों में मारे जा रहे हों, वहां सुपरफास्ट एक्सप्रेस-वे बनाना कहां तक न्यायोचित व प्रासंगिक है? व्यस्ततम समय में टोल
नाकों पर वाहनों की लंबी लाइन और वहां पहले निकलने की जुगाड़ में एक दूसरे को
धकियाते वाहन और उनको नियंत्रित करने वाली किसी व्यवस्था का न होना दर्शाता है कि
यहां लोग ऐसी सड़कों पर चलने के लायक नहीं हैं और व्यवस्थाएं भी इतनी चाक चौबंद
नहीं हैं सड़कों पर दुर्घटनाओं को रोक सकें. सुपरफास्ट ट्रैफिक के लिए बनी सड़कों
के फ्लाइओवरों पर साइकिल, रिक्शा
या रेहड़ी का बीच में ही अटक जाना व उसके पीछे वाहनों का रेंगना सड़क के साथ-साथ
र्इंधन की भी बर्बादी करता है, लेकिन इसकी देखभाल के
लिए कोई नहीं है. सचाई यह है कि हमारे देश में एक भी सड़क ऐसी नहीं है, जिस पर कानून का राज
हो.
सड़कों पर इतना खर्च हो
रहा है, इसके
बावजूद सड़कों पर चलना यानी अपने को, सरकार को व उस पर चल
रहे वाहनों को कोसने का नाम हो गया है. सवाल है कि सड़क की दुर्गति कैसे होती है.
दरअसल, सड़क
निर्माण प्रक्रिया में नौसिखियों ठेकेदारों व ताकतवर नेताओें की मौजूदगी कमजोर
सड़क की नींव रख देती है. कुछ विरले मामलों को छोड़ दिया जाए तो सड़क बनाते समय
डाले जाने वाले बोल्डर, रोड़ी, मोरम की सही मात्रा कभी
नहीं डाली जाती है. इसी तरह सड़क बनाने से पहले पक्की सड़क के दोनों ओर कच्चे में
खडंजा लगाना जरूरी होता है. यह तारकोल को फैलने से रोकता है लेकिन आमतौर पर ऐसे
खड़ंजे कागजों में ही सिमटे होते हैं.
सही सुपरविजन न होने के
कारण सड़क का ढलाव ठीक न होना भी सड़क कटने का बड़ा कारण है. सड़क बीच में से उठी
हुई व सिरों पर दबी होना चाहिए, ताकि उस पर पानी पड़ते
ही किनारों की ओर बह जाए लेकिन शहरी सड़कों का तो कोई लेबल ही नहीं होता है. बारिश
का पानी इन पर यहां-वहां बेतरतीब जमा होता है और यह पानी सड़क का सबसे बड़ा दुश्मन
है. सड़क किनारे नालियों की ठीक व्यवस्था न होना भी सड़क के लिए नुकसानदेह है.
नालियों का पानी सड़क के किनारों को काटता रहता है.
सड़कों की दुर्गति में
हमारे देश का उत्सव-धर्मी चरित्र भी कम दोषी नहीं है. महानगरों से ले कर सुदूर
गांवों तक घर में शादी हो या भगवान की पूजा, किसी राजनैतिक दल का
जलसा हो या लंगर; सड़क
के बीचों-बीच टैंट लगाने में किसी को कोई संकोच नहीं होता है. इसके लिए सड़कों पर
कई छेद कर दिये जाते हैं. उत्सव समाप्त होने पर इन छेदों में पानी भरता है और सड़क
गहरे तक कटती चली जाती है. कुछ दिनों बाद कटी-फटी सड़क के लिए सरकार को कोसने
वालों में वे भी शामिल होते हैं, जो इसके लिए कहीं न
कहीं खुद भी जिम्मेदार होते हैं. नल, टेलीफोन, सीवर, पाईप गैस जैसे कामों के
लिए सरकारी महकमे भी सड़क को तोड़ने-फोड़ने में कतई दया नहीं दिखाते हैं. मकान बनाने
या मरम्मत करवाने के लिए सड़क पर ईंटें, रेत व लोहे का भंडार
करना भी सड़क की आयु घटाता है.
सड़क पर घ्टिया वाहनों
का संचालन भी उसका बड़ा दुश्मन है. ओवरलोड वाहन, खराब टायर, दोयम दर्जे का ईंधन ये
सभी बातें भी सरकार के चिकनी रोड के सपने को साकार होने में बाधाएं हैं. सवाल है
कि सड़क-संस्कार सिखाएगा कौन? ये संस्कार सड़क
निर्माण में लगे महकमों को भी सीखने होंगे. संस्कार से सज्जित होने की जरूरत सड़क
पर चलने वालों को भी है और यातायात संचालन के लिए जिम्मेदार लोगों को भी. सड़क के
संस्कार कायम रहें, यह
सुनिश्चित करने का जिम्मा उन एजेंसियों का भी है जो सड़क से टोल टैक्स उगाह रही
हैं तो उन लोगों पर भी जो अपने रुतबे या भदेसपन का नाजायज फायदा उठा कर सड़क के
कानूनों को तोड़ते हैं. यह समाज व सरकार दोनों की साझा जिम्मेदारी है कि सड़क को
साफ, सुंदर
और सपाट रखा जाए. लेकिन हालात देख कर लगता है कि कड़े कानूनों के बगैर यह संस्कार
आने से रहे.

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