बालासाहेब ठाकरे



बालठाकरे चल बसे. पंचतंत्र में विलीन हो गये. उनके चले जाने से जो स्थान रिक्त हुआ है, वह  रिक्त ही रहेगा. 20वीं सदी के भारत का महानायक , महाराष्ट्र का शिवा, जन नायक, लोक नायक, भारत का गौरव, हिन्दुओं का सिरमौर आज हमारे बीच नहीं रहा.
 ये कहना  अतिशियोक्ति  नहीं होगी कि जेसे एक परिवार अपने मुखिया के  देहावसान के बाद ठगा सा महसूस  करता है, ऐसे ही आज भारत बॉल ठाकरे की विदाई के बाद ठगा सा रह  गया है.

भारत रहेगा, सांस भी लेगा, चलता रहेगा लेकिन निष्प्राण... . वक्त लगेगा महाराष्ट्र को बिना बालासाहेब के जीने में. और भारत जिसकी रक्षा के लिये तमाम सुरक्षा तंत्र मौजूद हें , लेकिन बिना  बालासाहेब  ठाकरे के उनेह भावुकीय असुरक्षा की  मानसिकता से निकलने में समय लगेगा. यह एक जन उद्दगार है.


बालासाहब की अंत्येष्टि पर मुंबई की सड़को पर उमडा जनसागर गवाह था एक करिश्माई व्यक्तिमत्व का अनंत में विलीन होने का, जिसने मुंबई पर कई दशको तक एकछत्र राज किया!! ....उनके पार्थिव के साथ तेज धूप में रोते बिलखते, साथ साथ चलते ये आम लोग सिर्फ और सिर्फ अपने नेता को भावभीनी अंतिम विदाई देने आये थे ...आखिर ऐसा क्या जादू था इस शक्शियत का जो उसके एक इशारे पर पूरी मुंबई खामोश हो जाती थी या आग उगलती थी? क्या वजह थी जो समाज के अन्तिम छोर पर खड़ा आदमी भी उन्हें भगवान का रूप मानने लगा ? क्यों एक व्यंग चित्रकार, दुबल पतला व्यक्ति आज करोडो का चहेता बन गया?



बालासाहेब की अंतिम यात्रा में ऐसा जन सेलाब उमडा  जिसे केवल मुम्बई ने नहीं देखा, प़ूरे महाराष्ट्र ने देखा, समूचे भारत ने देखा, संसार ने देखा. यह एक असाधारण अवसर था, अंतहीन हुजूम जिसमें लाखों लाखों लोगों ने शिरकत की और करोड़ों लोगों ने टी वी के माध्यम से बालासाहेब को अंतिम विदाई दी.

इस महानायक के प्रति समर्पित यह हुज़ूम , राजनीत के दिग्गजों को बौना साबित कर गया. ये प्यार, ये सदमा ,ये आंसू, ये रंज, ये विदाई, ये शिरकत, कभी किसी को नसीब ना हुआ और ना होगा. बाला साहेब आप अमर हें, हमारे दिल दिमांक पर आप छाये  रहेंगे.
 बालासाहेब दूसरे वीर शिवाजी  थे. जेसे वीर शिवाजी का स्थान नहीं भरा जा सकता  ऐसे ही बालठाकरे की जगह कोई नहीं ले सकता.
  बालासाहेब के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी जब भारत का हिन्दू समाज  सभी बन्धनों को तोड कर एक हो  और----
1-  जांत पांत की दुकानों को और दुकानदारों को मटियामेट कर दे , फूंक दे.
2- भ़ारतियता (हिन्दू हित) पर चोट करने वालों के हाथ काट दे.
3- अलगाववादी मानसिकता को सबक सिखाये.
4- ढोंगी धर्मनिरपेक्ष चालाक भ्रष्टाचारी सफेदपोश नेताओं पर मुकद्दमे चला कर उमर्केद की   सज़ा दिलाये.
5- बरसों से भोली भली और गरीब जनता को भावुकीय तंत्र में फंसा ठगते रहे उनेह   सबक सिखाये.
6--जिन्होने लोकतंत्र की मज़बूती के लिये चुनावों में सुधार नहीं किये, जनलोकपाल बिल  की उपेक्षा की,दोषपूर्ण और साधकीय   व्यवस्थाओं में कोई सुधार नहीं किये. ऐसे लोगों   को जेल भिजवाये.

जय बालासाहेब : हमें आपके अतीत व भूतकाल में जाने की जरूरत नहीं. वर्तमान बता रहा है कि आपकी क्या हस्ती है. 



मुखौटो के बीच यहीं एक नेता था जो अपने प्रखर और बेबाक विचार, बेख़ौफ़ प्रस्तुति और अटल इरादे के साथ 'मराठी मानुस' के हितो के लिए जीवनभर लडता रहा .बालासाहब 'वन मन आर्मी' थी जिसने चोटी के दिग्गज नेताओंको भी सोचने को मजबूर किया ..जब वो शिवाजी पार्क से दहाड़ भरते थे तो सारा जनसागर चीत्कार उठता था...अपनी विनोदी और तीक्ष्ण वक्तृत्व शैली से वे विरोधियोंके छक्के छुड़ा देते थे ....उनकी सभा में पुरुषो के साथ महिलाएं भी बड़ी संख्या उपस्थित रहती थी ....अपार भीड़ में भी मजाल है कि  कोई किसी महिला को छेड दे ...एक दबदबा, धाक था बालासाहेब का ...उनकी भाषा आम आदमी की थी ..कभी कभी उसमे शालीनता कम, गुस्सा ज्यादा नजर आता था ...भाषणों में अन्याय के विरुद्ध बगावत नजर आती थी ..शब्द शब्द अंगार मानो पिघलता,धधकता ज्वालमुखी मगर सच्चा  ..न लाग लपेट,  चिकनी चुपड़ी बाते ..न घुमा फिराकर बोलना न तीर से निकले शब्दों के बाणों से किसी के घायल होने की परवाह! बेलगाम विचार,तल्ख़ अंदाज-ये-बयां और अमल करने की इमानदार कोशिश ... आम आदमी की तकलीफों से वाकिब, दर्द को समझने वाला, और उनके हितो की रक्षा के लिए किसी भी स्तर तक जाकर लड़ने वाला जांबाज योद्धा ! 
उनका लक्ष्य था मराठी मानुस का हित! इसके लिए उन्होंने संविधान की धाराओंको भी दरकिनार किया ...परप्रान्तियोंको भगाने से ले कर कट्टर हिन्दुवाद का भी सहारा लिया ...नफ़रत की दीवारे खड़ी कर सिर्फ और सिर्फ 'मराठी मानुस' से हमदर्दी जताई ....बिना किसी पद का मोह किये वे राजनीती के शीर्ष पर खड़े दिग्गजों को दबंगई दिखाते रहे, टोकते रहे, उनका मजाक उड़ाते रहे ..'जय महाराष्ट्र' के नारे ने 'मराठी मानुस' की चेतना को जगाया और वे मराठी अस्मिता का प्रतीक बन गए ...उनका आम आदमी के प्रति झूकाव ही उनकी पूंजी बन गया ..उन्होंने अपने विचारो को बेबाकी से रक्खा और वो उससे कभी मुकरे नहीं ...दोस्ती और दुश्मनी भी दिलोजान से निभाई और नफ़रत की आग में भी वो अडिग खड़े रहे अपने विश्वासों के साथ ..उनके विचारोंसे आप सहमत या असहमत हो सकते है, उनके तौरतरीके से आप नफरत कर सकते है मगर उनके देशप्रेम पर आप उंगली नहीं उठा सकते ...उनकी ईमानदारी,जिन्दादिली और बेख़ौफ़ अदा पर आप कुर्बान हो जाते थे ...एक ऐसा शक्श जो शेर सा दहाड़ना ही नहीं जीना भी जानता था ...महाराष्ट्र का शेर, मराठी मानुस का हमदर्द ...


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