परफेक्शन

परफेक्शन अच्छा होता है, लेकिन एक हद तक ही..बहुत ज़्यादा होना भी बहुत सही नहीं है..

कितना सही है न, बहुत ज़्यादा परफेक्शन भी ग़लत ही है, क्यूँकि उस लेवल के परफेक्शन के लिए ज़िंदगी के बहुत सारे अनमोल पलों को छोड़ना पड़ता है, जीना कम करना पड़ता है, ज़्यादा मरना पड़ता है..किसी रेस का हिस्सा सिर्फ़ इसलिए मत बनिए कि सभी दौड़ रहे हैं..

ज़िंदगी को जीना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है, परफेक्शन से ज़्यादा ज़रूरी है महसूस करना उन पलों को जो आपके अपने हों, आपके अपनों के लिए हों, जिनमें थोड़ा प्रेम हो, थोड़ी मस्ती हो, थोड़ा विद्रोह हो, थोड़ी ग़लतियाँ हों, थोड़ी मनमर्ज़ियाँ हों..

अक्सर हद से ज़्यादा परफ़ेक्ट होने के लिए हम उन चीज़ों को नज़रअंदाज़ करना शुरू कर देते हैं, जो बहुत ज़रूरी हैं..दिन भर के काम के बाद थोड़ा वक़्त अपने शौक, प्यार और जुनून को देना भी ज़रूरी है..हो सकता है आप अपने मन की शांति को क़ुर्बान कर थोड़ा सा परफेक्ट हो भी जायें अपने काम में, अपने बॉस को ख़ुश भी कर लें, थोड़े ज़्यादा पैसे कमा लें, लेकिन उससे क्या ज़िंदगी जो गंवा रहे हैं, उसकी भरपाई होगी ??

हर चीज़ में ख़ुशी को देखिए, कार चाहे बीएमडब्लयू हो या मारूति, कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ना सिवाय स्टेटस सिंबल के..मोबाइल चाहे एप्पल का हो, या xiaomi का, बहुत ज़्यादा फर्क़ नहीं है..मतलब बस इस बात से होना चाहिये कि अपनी ज़िंदगी और मन की शांति के साथ आप कितना अफोर्ड कर सकते हैं..

बस अपने आपको सबसे पहले रखिए..किसी एक चीज़ में परफ़ेक्ट होने के बजाय मैं बहुत सारी चीज़ों में ठीक-ठाक होना पसंद करता हूँ.. थोड़ा वर्कआउट, थोड़ा लिखना, थोड़ा पढ़ना, थोड़ा म्यूज़िक, थोड़ी चैट, और रोज़ी के लिए काम के वक़्त काम..।
इससे ज़्यादा न कुछ चाहा है, और न ज़रूरी है..हालाँकि लोग कह सकते हैं कि मैं महत्वकांक्षी नहीं हूँ, और ये बात  सही भी है क्यूँकि मैं ज़िंदगी को आज में जीने में ख़ुशी महसूस करता हूँ, कल के लिए अपने आज को ख़त्म करने का लॉजिक नहीं समझ आता मुझे..

इसके अलावा हो सके तो अपनी आने वाली पीढ़ियों को पैसे का नहीं साँसों का मोल समझाइए, उन्हें इस तरह से बड़ा किजीये कि वो भौतिक चीज़ों के बजाय सहानुभूति, दया, इंसानियत और प्यार को इम्पोर्टेंस दें..उन्हें इस तरह की शिक्षा दीजिये कि एक स्त्री को सम्मान दें, इंसान का दर्द समझें, भूखे को भोजन दे सकें, और प्रेम को उचित मान दे सकें..

अंततः बस इतना ही कि परफ़ेक्ट होने के बजाय, ज़िन्दगी में वो करने की कोशिश किजीये, जो आप असल में करना चाहते हैं..हर काम का एक वक़्त होता है और उसे उसी समय करें..काम के वक़्त काम करिए और अपने दिमाग़, रूह और दिल का भी ख़्याल रखिए..अक्सर हम ज़िंदगी उन चीज़ों के लिए जीना भूल जाते हैं, जो असल में बस ज़िंदगी का एक हिस्सा होती हैं और बाकी हिस्सों को भी जीना ख़ुद के लिए ज़रूरी है.

( मने जिया ठिक लाग्यो म बतादियो बाकी थारी मर्जी )

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता है,

धर्म के नाम पर