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नवंबर, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सड़क निर्माण प्रक्रिया

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यह चिंता का विषय है कि जिस देश में हर साल लगभग एक लाख लोग सड़क हादसों में मारे जा रहे हों , वहां सुपरफास्ट एक्सप्रेस-वे बनाना कहां तक न्यायोचित व प्रासंगिक है ?   व्यस्ततम समय में टोल नाकों पर वाहनों की लंबी लाइन और वहां पहले निकलने की जुगाड़ में एक दूसरे को धकियाते वाहन और उनको नियंत्रित करने वाली किसी व्यवस्था का न होना दर्शाता है कि यहां लोग ऐसी सड़कों पर चलने के लायक नहीं हैं और व्यवस्थाएं भी इतनी चाक चौबंद नहीं हैं सड़कों पर दुर्घटनाओं को रोक सकें. सुपरफास्ट ट्रैफिक के लिए बनी सड़कों के फ्लाइओवरों पर साइकिल , रिक्शा या रेहड़ी का बीच में ही अटक जाना व उसके पीछे वाहनों का रेंगना सड़क के साथ-साथ र्इंधन की भी बर्बादी करता है , लेकिन इसकी देखभाल के लिए कोई नहीं है. सचाई यह है कि हमारे देश में एक भी सड़क ऐसी नहीं है , जिस पर कानून का राज हो.   सड़कों पर इतना खर्च हो रहा है , इसके बावजूद सड़कों पर चलना यानी अपने को , सरकार को व उस पर चल रहे वाहनों को कोसने का नाम हो गया है. सवाल है कि सड़क की दुर्गति कैसे होती है. दरअसल , सड़क निर्माण प्रक्रिया में नौसिखियों ठेकेदारों व त...

सही गलत

एक होटल वाला अपने यहां दो नौकर रखता है। दोनों के ही काम करीब एक जैसे ही हैं। पहला नौकर मालिक की कही गई बात को हर हाल में करके ही लौटता है , जबकि दूसरा नौकर उस बात को जैसा का तैसा करने की बजाए या तो और अच्छा करता है , या फिर कई बार दूसरे नजरिए से ठीक लेकिन मालिक के नजिरए से कम ठीक करता है। ऐसे में मालिक के पास दोनों के बीच सही गलत और कौन किस काम का है , फैसला करने में दिक्कत होती है। होटल में ग्राहक आए , पहले नौकर को मालिक ने आदेश दिया , साहब के लिए गिलास में पानी लाओ। दोनों ही आदेश के पालन के लिए लपकते हैं। पहला जाता है और गिलास खोजने लगता है। गिलास मंझे नहीं हैं , तो मांझने लगता है। चूंकि मालिक के प्रति उसकी पूरी निष्ठा है , इसलिए वह गिलास को वहीं पर धोता है जहां से धोने में गिरने वाला पानी कीचड़ का कारण न बने। इस पूरी प्रक्रिया में करीब 7 से 8 मिनिट लगते हैं। जबकि दूसरा नौकर जाता है , और सबसे पहले ग्राहकों की ...

महंगाई

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15.10.12  डीजल के दाम बढ़ने और रसोई गैस के सिलेंडरों पर कोटा लागू होने के साथ ही आम आदमी के सामने एक नया संकट खड़ा हो गया है। महंगाई का पहले से ही कोई ठिकाना नहीं है। कई बार तो एक ही दिन में चीजों के दाम बढ़ जा रहे हैं। आम जनता में यह धारणा सी बन चली है कि बाजार पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। बल्कि अब तो लोगों को ऐसा लगने लगा है जैसे सरकार बाजार पर कोई नियंत्रण रखना भी नहीं चाहती है। पेट्रोल के मूल्यों में पिछले एक साल में ही कई बार बढ़ोतरी की जा चुकी है। डीजल के दाम बढ़ाने से अकसर सरकार बचती रही है , लेकिन इस बार डीजल के दाम ही बढ़ाए गए हैं। इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि पेट्रोल के मामले में सरकार किसी प्रकार की कोई राहत देने जा रही है। देर-सबेर पेट्रोल के दाम भी फिर बढ़ेंगे ही। राहत यहां किसी भी कीमत पर आम आदमी को मिलने वाली नहीं है। रसोई गैस पर कोटा थोपे जाने से तो लोग परेशान हैं ही , उससे अधिक रोष उनका गैस एजेंसियों की कार्यप्रणाली और उपभोक्ताओं के प्रति उनके रवैये से है। इससे भी अधिक हताशा जनता को न केवल पेट्रोलियम पदार्थो , बल्कि समग्रता में मह...