नवरात्रि का पर्व

नवरात्रि का पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। एक मार्च -अप्रैल के महीने में तो दूसरा सितम्बर – अक्टूबर के महीने में। अक्टूबर महीने में होने वाले नवरात्रि पर्व को हिन्दू लोग नवरात्रि कह कर मनाते है और बंगाली दुर्गा पूजा कह कर इस पर्व को मनाते  है।  नवरात्रि  का पर्व नौ दिन तक चलता है। नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में माता रानी के नौ रूपों की पूजा की जाती। वो नौ नाम इस प्रकार है : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री। प्राय: लोग आठ या नौ दिन तक उपवास रखकर माँ का आसीस लेते है  और अष्टमी या नवमी को कंजक बिठा  कर इस पर्व को  पूर्ण करते है और माँ का धन्यवाद करते है।  दसवे दिन दशहरा मनाया जाता है जोकि असत्य पर सत्य  की विजय का प्रतीक है  और दुर्गा पूजा का  पर्व दस दिन तक  मनाया जाता है किन्तु खास पूजा षष्ठी से शुरू हो कर दसवें दिन तक चलती है और दसवे दिन सिन्दूर खेला के पश्चात माँ की प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है और उनसे प्रार्थना  की जाती है की हम सभी पर अपना मंगल आसीस  बरसाए और हमारी विपदाओं को हर ले और साथ ही साथ अगले वर्ष फिर से हमको अपनी सेवा का शुभ मौका दे कर हमे भाग्यवान  बनाये।
जैसाकि नवरात्रि का पर्व आज से शुरू हो गया है और इस समय बाज़ारों की रौनक देखते ही बनती है।   बाज़ार में  कई  तरह के  नवरात्रि  सामान मिलते है जिसको  लोग  खाना पसंद करते है क्योंकि इन दिनों में एक खास तरह का भोजन किया जाता है जिसमे की कुट्टू की रोटी, साबूतदाने  की खीर या खिचड़ी , आलू – टिक्की या स्वांग के चावल की खीर इत्यादि खाई जाती है और अपनी नवरात्रि  की विधि को विधिवत चालू रखने के लिए बाजारी खान-पान की वस्तुओं का भी आनंद लिया जाता है पर घर पर बने फलाहार की बात ही कुछ और होती है।  लेकिन  आजकल  ज्यादातर  लोग ऑफिस जाते है और घर पर बार-बार कुछ  बनाने   का समय नहीं होता है तो बाज़ार के खाने से भी काम चला लेते है।
अब बात आती है विधिवत पूजा – अर्चना की। वैसे पूजा करने के लिए जरूरी नहीं की आप देवी की मूर्ति को पूजे और पुरे पूजन सामग्री के साथ माँ का आवाहन  करे। पूजा करने के लिए मन में  श्रद्धा  और विश्वास होना चाहिए। यह भी  जरुरी नहीं की आप घंटों मंदिर की घंटियाँ बजाये या मंदिर में  बैठकर चिंतन-मनन करती रहे और अन्दर से मन तरह-तरह के  काम-धंधों को सोच रहे हो की अभी यह  करना है, फिर वो करना है, फलां – फलां काम रह गया इत्यादि। बल्कि मन में श्रद्धा और विश्वास रख  के इस पर्व को करो उसके लिए आप अपने मन में  ही माँ का चिंतन- भजन कर सकते है मन्त्रों द्वारा अपने मुख के साथ -साथ अपने घर – द्वार को शुभ और स्वच्छ  कर सकते है क्योंकि माँ ने नहीं कहा की दिन-रात मेरे मंदिरों की आवाजाही में ही लगा रह इंसान। माँ के नाम का जाप करते हुए यदि हम काम भी निपटाते रहेगे तो दोनों चीज़े सुचारू रूप से चलेगी “काम भी और नाम भी ”
वैसे आज का दौर  दिखावे का दौर हो चला है। दिखावे के लिए हम इंसान हजारों का खर्च कर देते है ताकि आस-पड़ोस के लोग यह न कहे की आपने नवरात्रि  के  पर्व को सही ढंग से मनाया नहीं और मन  में श्रद्धा  के नाम पर शुन्य होता है। तो किसको धोखा दे रहे है हम।  पूजा का मतलब होना चाहिए मन की शान्ति और जरुरतमंदों की सेवा नाकि दिखावा और ढोंग। इससे इंसान मशहूर तो हो जायेगा पर माँ के आसीस और सच्ची सेवा से दूर हो जायेगा।

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