जगजीत सिंह


एक समय था जब देश में लोग गजलों को सिर्फ पढ़ने का ही शौक रखते थे, वजह इसे सुनाने वालों की आवाज में वह जादू ना था जो गजलों के लिए होना चाहिए. इसके बाद आए मेहंदी हसन जैसे कलाकार लेकिन वह भी भारत में गजलों की शमां को सिर्फ जलाकर ही पाकिस्तान लौट गए. इसके बाद आया दौर एक ऐसी आंधी का जिसने हिन्दुस्तान में गजलों का समुद्र खड़ा कर दिया. और यह आंधी थी जगजीत सिंह की. जगजीत सिंह गजल गायकी का वह अध्याय हैं जिन्हें भारत का हर गजल प्रेमी बड़ी चाहत से याद करता है और सुनता है. आज वह हमारे बीच तो नहीं हैं लेकिन उनकी यादें हमेशा हमारे साथ चलती रहेंगी.

Jagjit Singhजगजीत सिंह ने जिस प्रकार भारतीय संगीत की दुनिया में अपनी पहचान बनाई है, वह खुद में एक इतिहास है. जगजीत सिंह ने 150 से ज्यादा एलबम बनाई हैं. लगातार 41 वर्षों से जगजीत सिंह लोगों को अपनी आवाज सुनाते आ रहे हैं. गजल को लेकर जगजीत सिंह सबसे अधिक लोकप्रिय हैं. प्रख्यात गजल गायक जगजीत सिंह ने अपनी मखमली आवाज के जरिए गजलों को नया जीवन दिया. वह अपने जीवन के 70वें साल का जश्न अनोखे ढंग से मनाना चाहते थे. उनकी इस साल 70 संगीत समारोहों में शिरकत करने की हसरत थी लेकिन सोमवार को अपने निधन से पहले तक वह केवल 46 संगीत समारोहों में ही शामिल हो सके थे.

जगजीत सिंह का जन्म 8 फरवरी, 1941 को राजस्थान के श्रीगंगानगर में हुआ था. जगजीत सिंह के पिता अमर सिंह धीमान और माता का नाम बचन कौर था. परिवार के लोग उन्हें जीत के नाम से बुलाते थे.

JAGJIT SINGHजगजीत सिंह  के मशहूर गाने (BEST OF JAGJIT SINGH)
जगजीत सिंह ने अर्थ, साथ-साथ और प्रेमगीत जैसी फिल्मों में गीत गाए. होठों से छू लो तुम (प्रेमगीत), तुमको देखा तो ये ख्याल आया (साथ साथ), झुकी झुकी सी नजर (अर्थ), होश वालों को खबर क्या (सरफरोश) और बड़ी नाजुक है (जॉगर्स पार्क) जैसी फिल्मी गजलों ने उनकी मौजूदगी को और भी मजबूत बनाया. अपने जीवन के अंतिम दिनों में वह निर्माताओं के द्वारा पैसे को ज्यादा तवज्जो देने के चलते फिल्मी गायकी से दूर हो गए थे.

आखिर कहां से आया इतना दर्द
जगजीत सिंह के परिवार में उनकी पत्नी चित्रा सिंह हैं. जगजीत सिंह-चित्रा सिंह की शादी वर्ष 1970 में हुई थी. जगजीत सिंह-चित्रा सिंह के इकलौते बेटे विवेक का वर्ष 1990 में एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया था.

जगजीत सिंह के दर्द भरे नगमें सुनकर कई बार लगता है कि आखिर इस आवाज में इतना दर्द आया कहां से ! तो यह दर्द आया है उनकी अपनी जिन्दगी से. 1990 में जगजीत सिंह और चित्रा के बेटे विवेक की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. इसके बाद जगजीत सिंह कई महीनों तक नहीं गाए थे और उनकी पत्नी चित्रा ने तो गाना ही बंद कर दिया. चित्रा दो साल पहले अपनी बेटी को भी खो चुकी हैं. उनकी पहली शादी से जन्‍मी मोनिका ने बांद्रा के अपने फ्लैट में खुदकुशी कर ली थी. बेटी की मौत की वजह से जगजीत सिंह भी अवसाद में चले गए थे.

गजल सम्राट जगजीत सिंह को घुड़सवारी का भी शौक था. जब भी उन्हें समय होता तो वह महालक्ष्मी इलाके के रेसकोर्स में जाते और अपने घोड़ों के साथ समय बिताते.

कहते हैं आवाज में दर्द और शब्दों में जज्बात तब तक नहीं आते जब तक आपके दिल में भावनाओं का शैलाब ना हो. इस बात से शायद गजल की दुनिया के जादूगर जगजीत सिंह अच्छी तरह वाकिफ थे. अपनी आवाज से करोड़ो दिलों को नई जवानी प्रदान करने वाले जगजीत सिंह की खुद की जिंदगी भी बेहद अजीबो गरीब थी जिसमें दर्द, प्यार और कड़वाहट सभी का मेल था. आज 8 फरवरी को स्वर्गीय जगजीत सिंह की जयंती पर चलिए जानें आखिर कैसे इस महान शायर की आवाज में कसक पैदा हुई ?


First Love in Jagjit Singh Life पहला प्यार
जगजीत सिंह के गीतों में अकसर पहले प्यार का चित्रण संजीदगी के साथ होता था. ऐसा इसलिए क्यूंकि खुद जगजीत सिंह की जिंदगी का पहला प्यार बहुत खूबसूरत था. जगजीत सिंह जब कॉलेज के दिनों में पढ़ते थे तब उनकी एक प्रेमिका हुआ करती थीं. वह अपनी प्रेमिका को देखने के लिए जालंधर में उसके घर के सामने अपनी साइकिल से गुजरा करते थे. बहुतों की तरह जगजीत जी का पहला प्यार भी परवान नहीं चढ़ सका. वह लड़की के घर के सामने साइकिल की चेन टूटने या हवा निकलने का बहाना कर बैठ जाते और उसे देखा करते थे. बाद में यही सिलसिला बाइक के साथ जारी रहा.

Jagjit Singh Profile in hindi Pain in Jagjit Singh Life दर्द भी बड़ा था शायर की जिंदगी में
प्यार के अलावा जगजीत सिंह को जिंदगी ने जो दिया वह था दर्द. उनके कई करीबी मानते हैं कि उनके नगमों में जो दर्द था वह असल में उनकी जिंदगी का ही गम था. जगजीत सिंह-चित्रा सिंह की शादी वर्ष 1970 में हुई थी. जगजीत सिंह-चित्रा सिंह के इकलौते बेटे विवेक का वर्ष 1990 में एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया था. इसके बाद जगजीत सिंह कई महीनों तक नहीं गाए थे और उनकी पत्नी चित्रा ने तो गाना ही बंद कर दिया. चित्रा दो साल पहले अपनी बेटी को भी खो चुकी हैं. उनकी पहली शादी से जन्‍मी मोनिका ने बांद्रा के अपने फ्लैट में खुदकुशी कर ली थी. बेटी की मौत की वजह से जगजीत सिंह भी अवसाद में चले गए थे

कड़वाहट से भी हुआ सामना
बेहद शांत और शालीन दिखने वाले जगजीत साहब को लोगों ने बहुत कम किसी आलोचना या विवाद का सामना होते देखा था. जगजीत साहब को मोहम्मद रफी का आलोचक माना जाता था. रफी साहब की आलोचना के साथ एक समय जगजीत सिंह को पाकिस्तानी गायकों का भी आलोचक माना जाता था. भारत-पाक कारगिल लड़ाई (Indo-Pak Warके दौरान उन्होंने पाकिस्तान से आ रही गायकों की भीड़ पर एतराज किया. तब जगजीत सिंह जी का कहना था कि उनके आने पर बैन लगा देना चाहिए. दरअसल, जगजीत जी को पाकिस्तान ने वीज़ा देने से इंकार कर दिया था. लेकिन जब पाकिस्तान से बुलावा आया तब जगजीत सिंह जी की नाराज़गी दूर हो गई. यह भी कोई नहीं भूल सकता कि जगजीत सिंह ने मेहदी हसन के इलाज के लिए तीन लाख रुपए की मदद की. यह उन दिनों की बात थी जब मेहदी हसन साहब को पाकिस्तान की सरकार तक ने नजरअंदाज़ कर रखा था.

Jagjit Singh Songs जगजीत सिंह के गीत
गजलों के माध्यम से लोगों के दिलों के तार छेड़ने वाले जगजीत सिंह के अमूमन हर गीत के लोग दीवाने हो जाते थे लेकिन फिर भी कुछ गीत लोगों को बरसों तक याद रहेंगे. उनकी होठों से छू लो तुम (प्रेमगीत), तुमको देखा तो ये ख्याल आया (साथ साथ), झुकी झुकी सी नजर (अर्थ), होश वालों को खबर क्या (सरफरोश) और बड़ी नाजुक है (जॉगर्स पार्क) जैसी फिल्मी गजलों ने उनकी मौजूदगी को और भी मजबूत बनाया.

फिल्मी गानों में फिल्म ‘प्रेमगीत’ का ‘होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो’, फिल्म ‘खलनायक’ का ‘ओ मां तुझे सलाम’, संजय दत्त और काजोल अभिनीत फिल्म  ‘दुश्मन’ का ‘चिट्ठी ना कोई संदेश’ और ‘सरफ़रोश’ का ‘होशवालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है’ जैसे कई गीतों को उन्होंने अपनी आवाज दी. फिल्म “तेरे बिन” में भी अधिकतर गानों को अपनी आवाज देकर उन्होंने संगीतप्रेमियों को नया खजाना दिया.

लाखों-करोड़ों श्रोताओं को अपनी आवाज से सुकून देने वाले जगजीत सिंह की मस्तिष्काघात (ब्रेन हैमरेज) के बाद 23 सितंबर, 2011 की शाम को शल्य चिकित्सा हुई थी और उसी समय से वह गहन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) में थे. लोगों को उम्मीद थी कि वह जल्द ठीक हो कर एक बार फिर अपनी आवाज का जादू बिखेरेंगे लेकिन ऐसा हो ना सका. 
अपनी मखमली सुरीली आवाज से दशकों तक गजल के नूर बने रहे जगजीत सिंह की जिंदगी का चिराग १०
अक्टूबर को बुझ गया। अब बिन जगजीत अंधेरा है। वे नहीं है। लेकिन क्या सचमुच? जब भी मन उदास होगा ़ ़ ़तनहाइयों में अपनी ही सांसे अजनबी लगेंगी ़ ़ ़ दिल की धड़कने हमसे है हमारा पता
 पूछेंगी ़ ़ ़ प्यार में दिल द्घायल होकर मरहम की तलाश में रोने के वास्ते कोई कोना ढूंढेगा ़ ़ ़ जिंदगी के चौराहे पर खड़ा हमारे दर्द को किसी फलसफे की जरूरत होगी ़ ़ ़और गमगीन शाम में जब कभी भी हमारी आपकी आंखें नम होंगी, तब हमें जरूरी तौर पर जगजीत सिंह की याद आएगी, उनकी गाई गजलों की दरकार रहेगी।
क्या ही अच्छा होता अगर उनकी गाई गजलों के जरिए ही जगजीत सिंह को जाना और समझा जाता। कोशिश कर के देखें। इसमें कोई बुराई नहीं। वैसे भी उन्होंने गजल गायिकी में कई प्रयोग किए, जोखिम उठाए-आलोचना सुनी। मगर शोहरत और लोकप्रियता भी बटोरी।
जगजीत सिंह ने बहुत पहले एक गजल गाई भी- 'कैसे-कैसे हादसे सहते रहे ़ ़ ़हम जीते रहे और मरते रहे ़ ़।' यह एक दर्दनाक हकीकत है कि उनका जीवन फूलों की सेज नहीं था। अलबत्ता वे उन पगडंडियों से गुजरे जहां आगे- निकलने की गुंजाइश तो थी मगर कांटे भी बिछे थे। पांव में चुभे भी। और वह लहुलुहान भी हुए। लेकिन जग को जीतने का मजबूत हौसला रखने वाले जगजीत रफ्ता-रफ्ता आगे बढ़ते गए। श्रीगंगानगर से मुंबई, वहां जिंगल गाना, कठिन संद्घर्ष, चित्रा से मुलाकात, प्रेम की राहों पर सफर, शादी, शोहरत, जवान पुत्र विवेक को खोना पत्नी चित्रा की द्घायल कर देने वाली दशकों से जारी खामोशी।
शमशेर ने लिखा है, काल तुझसे होड़ है मेरी। लगता है जगजीत सिंह की भी काल यानी वक्त से एक चुपचाप-सी लड़ाई रही। वक्त उन पर सितम ढाता रहा और वो दर्द में भी मुस्कुराते-गाते रहे। लेकिन वक्त तो ठहरा महाबली। दिखा दी उसने अपनी ताकत। पिछले १० अक्टूबर को उसने ऐसा गीत गाया जिसे कोई नहीं गुनगुना पाया- 'हम जिसे गुनगुना नहीं सकते, वक्त ने ऐसा गीत क्यों गाया-?'
शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचने से पहले जगजीत ने चित्रा सिंह के साथ प्यार किया। यह विलासिता की
चकाचौंध में किया गया प्यार नहीं था। अंधेरे में खड़े दो लोगों का, रोशनी की चाहत में छटपटाते युगल का प्यार था। साथ में जिंगल गाते-गाते जिंदगी के पथ पर चलते रहे और जीवनसाथी बन गए। साथ में गजलें गाईं-इस आत्मीयता के साथ-साथ जिंदगी धूप में, तुम द्घना साया।
जगजीत सिंह ने गजल गायकी परंपरा में एक नई क्रांति की। अलग लीक बनाई। उसे शुद्धतावाद की सुरंग से निकालकर सरल-सहज बनाया और आम लोगों से जोड़ा। ऐसी गजलों का चुनाव किया-जिनमें गहराई तो हो, मगर दुरुहता न हों। यही वजह है कि उनकी गजलें आम लोगों के दुखों-तकलीफों का फलसफा बन गईं। जो अकेलेपन में सुकुन के साथ संद्घर्ष की राह पर चलने का मजबूत हौसला देती हैं। उनकी गजलें लोगों की जुबान पर चढ़कर बोलने लगीं। मसलन 'कल चौंदहवी की रात थी'- 'वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी'-'होठों से छू लो तुम', 'तुम इतना जो मुस्करा रहे हो-', शाम से आंख में नमी सी है,' 'हर ख्वाहिश ऐसी', 'दुनिया जिसे कहती है', 'ये तेरा द्घर, ये मेरा द्घर,'।
प्यार के गीत गाना और प्यार को जीना दो बातें होती हैं। लेकिन जगजीत ने दोनों को ही बखूबी निभाया। यह कहना ज्यादा बेहतर होगा कि प्यार की सबसे सूक्ष्म संवेदना और अहसास को भी उन्होंने जीया हेै। अपनी ही गायी गई इस नज्म की तरह-'तेरे खुशबू से भरे खत मैं जलाता कैसे- उन्हें गंगा में बहा आया हूं-' आग पानी में लगा आया हूं- जगजीत ने अपने निजी जीवन में भी प्यार को ताउम्र निभाया। सुख में भी। दुख में भी।
अज्ञेय लिखते हैं- वेदना शक्ति देती है ़ ़ ़ दुख मांजता है। दुख ने जगजीत को भी कम नहीं मांजा। वर्ष १९९० में इकलौते जवान बेटे की मौत जिंदगी का सबसे बड़ा हादसा था। चित्रा की तो उस हादसे ने आवाज ही छीन ली। वह दर्द की खामोश बुत में तब्दील हो गईं। जिंदा थी-जिंदगी थी ़ ़ ़
मगर उसमें कोई जुम्बिश नहीं- कोई रवानी नहीं। कई बार लगता है खुदा ने उनकी वो मुराद तो नहीं पूरी कर दी जो उन्होंने कतिल शिफाई को लफ्जों को
गुनगुनाते हुए अर्ज किया था-
दर्द से मेरा दामन भर दे अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह
पुत्र ने साथ छोड़ा उसके वियोग में पत्नी एक तरह से जिंदा लाश में तब्दील हो गई। लेकिन जिंदगी तो अपने ढंग से चलती है। वक्त का पहिया भी द्घूमता रहता है। सीने में बेथाह गम को जब्त कर जगजीत ने वक्त से हार नहीं मानी। वो गाते रहे। कुछ इस अंदाज में ़ ़ ़
गम का खजाना तेरा भी है मेरा भी
ये नजराना तेरा भी है, मेरा भी
अपने गमों को गीत बनाकर गा लेना
राग पुराना तेरा भी है, मेरा भी।
जो गम जगजीत ने झेला था। या उसे हर लम्हा झेल रहे थे। वो बड़ा था। मगर वह उसे सहने में इसलिए भी कामयाब रहे क्योंकि वो आस-पास की दुनिया देख रहे थे। उस दुनिया में आदमी को परेशान देख रहे थे। उन्हीं के शब्दों में।
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी,
फिर भी तनहाईयों का शिकार आदमी।
सुबह से शाम तक बोझ देता हुआ,
अपनी ही लाश पर खुद मजार आदमी।
दर्द रचनात्मक बना देता है। कभी कभी वो अध्यात्मिकता की तरफ भी ले जाता है। हारे के हरिनाम। जगजीत हारे तो नहीं थे-मगर ईश्वर की शरण में जिंदगी का मतलब जरूर समझना चाहते थे- बहुत हद तक सुकून की भी चाह रही होगी। वे जीवन के अंतिम दशक में भजन गायिकी की ओर मुखातिब हुए। यहां भी उनके भजन रूहानी अहसास लिए थे। लेकिन वह कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गए-
महासुकून (मृत्यु) की चादर ओढ़ ली। जब मुंबई के चंदनबाड़ी श्मशान द्घाट में उनकी चिता धू-धू कर जल रही थी, तब अपने चाहने वालों से मानो कह रहे हों-
भूल जाना मुझे आसान नहीं है इतना
जब मुझे भूलना चाहोगे तो याद आऊंगा
याद आऊंगा उदासी की रुत में
जब कोई जश्न मनाओगे तो याद आऊंगा।

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