गुरू मंत्र बिन गूगल भी बेकार

( शिक्षक दिवस 05/09/2013 ) गुरू मंत्र बिन गूगल भी बेकार
आज ई-बुक्स, डिस्टेंस लर्निग, स्मार्ट क्लासेस, स्मार्ट बोड्र्स और ऑनलाइन परीक्षा का जमाना आ गया है, शिक्षक परोक्ष रूप से सामने नहीं रहते हैं। गूगल और विकीपीडिया हमारे नए शिक्षक बन गए हैं। इंटरनेट की मदद से हमें चुटकियों में दुनियाभर का ज्ञान मिल जाता है, पर व्यावहारिक जीवन और नैतिक शिक्षा देने वाले शिक्षकों के बिना जीवन का विकास संभव नहीं है। इंटरनेट से हमारी बुद्धि भले ही विकसित हो जाए, पर जो जीवन मंत्र गुरू देता है, उसकी कमी खलती है। बचपन से लेकर जवानी तक शिक्षक हमें राह दिखाते हैं। इस शिक्षक दिवस पर हमें चिंतन करना होगा कि वर्चुअल और टेक्नोलॉजी की दुनिया से निकलकर किस तरह से अपने शिक्षकों का सम्मान किया जाए।

थोड़ी सी सफलता पाकर ही हम सफलता पर प्रवचन देने लगते हैं, पर क्या कभी सोचा है कि मन-मस्तिष्क में रचे-बसे सफलता के इन सूत्रों का सूत्रधार कौन है? किसने हमें स्वतंत्र सोच रखना सिखाया? मन गलत काम करने से डरता है, ये डर किसने बैठाया मन में? किसने बताया कि ईमानदारी और मेहनत के रास्ते पर चलकर ही सुख पाया जा सकता है? मन को कुरेदेंगे, तो पता लगेगा कि इन सब सवालों के जवाब में किसी न किसी शिक्षक का नाम छिपा हुआ है।

शायद उनमें से कुछ के नाम तो हम भूल भी गए होंगे, पर उनकी दी गई शिक्षा हमें हमेशा याद रहती है। जब भी उनके बताए गुरूमंत्रों से सफलता मिलती है, तो मन बरबस ही उन्हें धन्यवाद देने लगता है। हम उन्हें याद करते हैं, खुश होते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। शिक्षक भी यही चाहते हैं कि उनके शिष्य लगातार प्रगति करते जाएं। आप दुनिया की भीड़ में अगर अपने किसी पुराने टीचर से टकराएं और उन्हें अपना परिचय देकर बताएं कि गुरूजी आज आपकी वजह से मैं यहां तक पहुंचा हूं, तो उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा।

गुरू असली जीपीएस
इंटरनेट पर जीपीएस हमें बता सकता है कि फलां जगह पहुंचने का रास्ता क्या है, पर इस रास्ते के गड्ढों से बचने की कला तो शिक्षक ही बता सकता है। जीपीएस मंजिल तक पहुंचा देता है, लेकिन गुरू इस "मंजिल" की अहमियत बताता है। बिना शिक्षक, हमें हमारी मानसिक खुराक ही नहीं मिल पाती। यह ठीक है कि आज की नई टेक्नोलॉजी के पास शिक्षकों जैसी अथाह जानकारी हो सकती है या यूं कहें कि है, पर इसमें भावनाओं की कमी है। बिना भावनाओं के किसी भी तरह का विकास संभव नहीं है।

भावनाओं के पोषण से ही बुद्धि का विकास हो सकता है। टेक्नोलॉजी आपको दुनिया से जोड़ती है, जानकारी देती है, मनोरंजन करती है, पर यह दिमाग पर जोर डालने के लिए विवश नहीं करती, नैतिकता नहीं सिखलाती, हिम्मत नहीं देती, जबकि शिक्षक यह सब करता है। नए शोध बताते हैं कि गूगल और विकीपीडिया पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता के कारण आज की युवा पीढ़ी की सोचने-समझने और निर्णय लेने की क्षमता पर विपरीत असर पड़ रहा है। निर्णय लेने की क्षमता तभी विकसित हो पाती है, जब गुरू से मिला अनुभव हमारे पास हो। जब तक शिक्षकों का महत्व हमें समझ नहीं आएगा, हम इस अनुभव से वंचित ही रहेंगे।


गैजेट्स में नहीं गुरूजी वाली ऊर्जा
आज की पीढ़ी के पास हाइटेक गैजेट्स, स्मार्टफोन और एप्स हैं, लेकिन उन्हें किसी ने सिखाया ही नहीं कि सच्चा और अच्छा ज्ञान तो शिक्षकों से ही मिलता है, न कि गैजेट्स से। आज के बच्चे ई-बुक्स से पढ़ाई कर रहे हैं। अगर उन्हें कोई बात समझ में नहीं आती तो वे इंटरनेट पर अपना सवाल डाल देते हैं और कुछ पलों बाद उन्हें जवाब मिल जाता है, पर उन्हें मिले जवाबों में शिक्षक वाली ऊर्जा गायब है। वो जवाब कितना सही है और उसके असल जिंदगी में मायने क्या हैं, यह ज्ञान भी गूगल आपको देने वाला नहीं है।

यह ठीक है कि इंटरनेट ज्ञान का भंडार है, लेकिन शिक्षकों की तुलना में उस पर बढ़ती निर्भरता भी ठीक नहीं। आपको याद होगा बचपन का स्कूल और मास्साब। मास्साब की छड़ी से सब डरते थे। स्कूल की घंटी बजने के बाद दो मिनट की भी देरी हो जाती थी, तो थर-थर कांपने लगते थे। शिक्षक सबसे ज्यादा अनुशासन पर जोर देते थे। इसीलिए पूरा मन पढ़ाई में लगा रहता था। ऎसा नहीं है कि शिक्षक सिर्फ डराते थे। मुश्किल आने पर पूरा साथ देते थे। किताबी ज्ञान के अलावा बाहरी दुनिया की सच्चाइयों से रूबरू करवाते थे। आज बच्चे कई बार कक्षा में सवाल ही नहीं पूछते। उन्हें लगता है कि उनके हर सवाल का जवाब तो इंटरनेट पर आसानी से मिल जाएगा और इस तरह वे अपने आप को वंचित कर डालते है दुनियादारी के उस ज्ञान से, जो कोई गुरू ही दे सकता है।

स्मार्ट बोर्ड पर नहीं उकेरी जा सकतीं ज्ञान की लकीरें
समय चाहे कितना भी बदल जाए, पर शिक्षक का महत्व कभी कम नहीं हो सकता। कक्षा से दूर होते बच्चे चाहे जितना आगे बढ़ जाएं, पर शिक्षक के ज्ञान की भरपाई होना मुश्किल है। अध्यापक बिना किसी स्वार्थ के लगातार अपनी कक्षा के बच्चों को ऎसी दुनिया में लेकर जाता है, जहां उनके कोरे कागज रूपी मन पर कई चीजें अंकित होती जाती हैं। बच्चा घर के माहौल से काफी चीजें सीखता है, पर सबसे ज्यादा स्कूल में शिक्षक के क्रिया-कलापों और हाव-भावों से सीखता है।

याद रखें, चेहरे पर शांत भावों के साथ जब शिक्षक ब्लैकबोर्ड पर ज्ञान की लकीरें उकेरता है, तो कक्षा के सब बच्चे एकटक उसकी तरफ देखते हैं। बच्चे शिक्षक की तरह बनने की कोशिश करते हैं। बच्चों के मन में हमेशा जिज्ञासा रहती है कि आखिर मास्साब को इतनी सारी जानकारी मिलती कहां से है? उन्हें गुरूजी बताते हैं कि पढ़ने से बुद्धि आती है और बच्चे मन लगाकर पढ़ाई करते रहते हैं। ऎसे ढेरों किस्से हैं, जहां शिक्षक के बताए कॅरियर को चुनकर बच्चे सफलता की इबारत लिखते चले गए, लेकिन स्मार्टबोर्ड में बच्चों को लगता है कि शिक्षक भी तो उन्हें कहीं और से मिला ज्ञान दे रहे हैं। टेक्नोलॉजी को एक तरफ रखकर शिक्षक को सम्मान मिले, उनके महत्व को समझा जाए, शिक्षक दिवस मनाने का औचित्य तभी है।
Jitendra Singh Shekhawat और 44 अन्य के साथ।

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