कुछ देर एकांत में बैठ कर देखें !!!!
यह पंक्तियाँ पढ़कर निश्चय ही आप सोच रहे होंगें कि आज के सुपरफास्ट युग
में जब कि मल्टीटास्किंग का दौर है भला एकांत में खामोश बैठना किसे
मयस्सर है ?
वैसे आप की बात है भी सोलह आने सच .पर सिर्फ एक बार यदि आप अपनी व्यस्त दिन चर्या से कुछ पल चुरा कर खामोश हो कर बैठ पायें तो जो शांति और सुकून आप महसूस करेंगे वो एक अनमोल अहसास होगा ।
वास्तव में मुझे भी यह अनमोल अहसास ,अपनी उम्र का एक बड़ा हिस्सा गुजारने के बाद ही हुअा।.हरदम यूँ ही भागते रहना ।न जाने कितना समय मोबाइल/फ़ोन पर गुजारना .या फिर टीवी पर कुछ भी देखने रहना यह सब कितना थका देता है और साथ ही हमें खुद से ही कितना दूर कर देता है।.हर पल चौथे गियर में गाडी चलाने वाले को जैसे सडक पर आने जाने वालों की कोई खबर नही होती और आसपास गुजर रहे नजारों से बेखबर ड्राईवर की तरह हम भी तो ऐसे ही जीते है अपना जीवन ।थोडा रुक कर जब देखा तो पाया कि कितना बेढंगा तरीका यह जीने का ?कहाँ भागे जा रहें हम यूँ बेतहाशा ?
खमोश हो खुद से एक मुलाकात की तो देखा कि जिन्दगी तो बिखरी हुई एक किताब की तरह चारों ओर फैली हुई है ।हाथ बढ़ा कर पन्नों को बटोरने की कोशिश की तो हाथ में कुछ कोरे और कुछ धुंधली सी इबारतों वाले पन्ने आये ।यह क्या ?सारे जीवन की बस यह जमा बस यही जमा पूंजी ?
जी हाँ यही तो है जग की देंन ।भावनाओं से दूर .दिखावट की दुनिया में हम हैं ही कहाँ ? हमारा अस्तित्व ही क्या रह गया है .
प्रकृति से दूर .भगवान से दूर, खुद से दूर विज्ञानं की नित नई मशीनों के जंगल में मानों हम कहीं गुम ही हो गये है ।
और नई पीढ़ी ने तो अपनी कभी मोबाइल कभी कंप्यूटर कभी प्ले स्टेशन या फिर आईपॉड के बटन से खेलते रहने को ही अपना जीवन समझ लिया है ।
रास्तों पर मोबाइल कान में लगाये भावहीन मशीनी चेहरे आखिर किधर भागे जा रहे हैं ?खुद से जुदा होते पल पल में जोड़ते /तोड़ते रिश्तो वाली
यह पीढ़ी जहाँ जा रही है इस का उसका पता तो शयद इन के खुद के पास भी हो .आये दिन तलाक , माँ बाप से दुर्व्यवहार ,जीसी खबरे विचलित कर जाती हैं रिश्तो में ठहराव मानो बीते जमाने की बातें हो गई हैं ।
नई नई खोजें ,नित नये यंत्र प्रगति के बड़े दावे इस मशीनी युग में शायद उस शाश्वत सत्य .सर्वोच्च सत्य से भटक गये हैं जो इस ब्रह्मांड का आधार है ,जो अपार है असीम है .जिसका अंत और आरम्भ भी नहीं जो तब भी था जब हम नहीं थे और तब भी होगा जब हम कहीं नही होंगे .आज भी हमारा अस्तित्व इस ब्रह्मांड के एक कण के अति सूक्ष्म हिस्से जितना है तो फिर इतना गर्व किस बात का ?बड़े बदे दावे समय के ही एक झटके मेँ बिखर कर रह जाते है और हम ठगे से खड़े देखते रह जाते है बेबस निसहाय से ।.जब हमें भूकम्प ,सुनामी या बाढ़ ऐसी स्थिति में ला पटकते हैं तब एक बार फिर हम कहीं नहीं होते ,कुछ नहीं होते और उस असीम अपार शक्ति की शरण के इलावा कोई सहारा भी नहीं दिखता .
इसलिए उस शक्ति से नाता जोड़े रखे ,अपने आप पर कभी भी गर्व न करें .मशीनी मानव बन एक अंधी दौड़ का हिस्सा न बन जाये .
हर दिन थोडा सा समय खामोश हो कर कुछ पल उस महान शक्ति के सानिध्य में अवश्य बिताएं जो शाश्वत सत्य है और इस सारे संसार का आधार है
वैसे आप की बात है भी सोलह आने सच .पर सिर्फ एक बार यदि आप अपनी व्यस्त दिन चर्या से कुछ पल चुरा कर खामोश हो कर बैठ पायें तो जो शांति और सुकून आप महसूस करेंगे वो एक अनमोल अहसास होगा ।
वास्तव में मुझे भी यह अनमोल अहसास ,अपनी उम्र का एक बड़ा हिस्सा गुजारने के बाद ही हुअा।.हरदम यूँ ही भागते रहना ।न जाने कितना समय मोबाइल/फ़ोन पर गुजारना .या फिर टीवी पर कुछ भी देखने रहना यह सब कितना थका देता है और साथ ही हमें खुद से ही कितना दूर कर देता है।.हर पल चौथे गियर में गाडी चलाने वाले को जैसे सडक पर आने जाने वालों की कोई खबर नही होती और आसपास गुजर रहे नजारों से बेखबर ड्राईवर की तरह हम भी तो ऐसे ही जीते है अपना जीवन ।थोडा रुक कर जब देखा तो पाया कि कितना बेढंगा तरीका यह जीने का ?कहाँ भागे जा रहें हम यूँ बेतहाशा ?
खमोश हो खुद से एक मुलाकात की तो देखा कि जिन्दगी तो बिखरी हुई एक किताब की तरह चारों ओर फैली हुई है ।हाथ बढ़ा कर पन्नों को बटोरने की कोशिश की तो हाथ में कुछ कोरे और कुछ धुंधली सी इबारतों वाले पन्ने आये ।यह क्या ?सारे जीवन की बस यह जमा बस यही जमा पूंजी ?
जी हाँ यही तो है जग की देंन ।भावनाओं से दूर .दिखावट की दुनिया में हम हैं ही कहाँ ? हमारा अस्तित्व ही क्या रह गया है .
प्रकृति से दूर .भगवान से दूर, खुद से दूर विज्ञानं की नित नई मशीनों के जंगल में मानों हम कहीं गुम ही हो गये है ।
और नई पीढ़ी ने तो अपनी कभी मोबाइल कभी कंप्यूटर कभी प्ले स्टेशन या फिर आईपॉड के बटन से खेलते रहने को ही अपना जीवन समझ लिया है ।
रास्तों पर मोबाइल कान में लगाये भावहीन मशीनी चेहरे आखिर किधर भागे जा रहे हैं ?खुद से जुदा होते पल पल में जोड़ते /तोड़ते रिश्तो वाली
यह पीढ़ी जहाँ जा रही है इस का उसका पता तो शयद इन के खुद के पास भी हो .आये दिन तलाक , माँ बाप से दुर्व्यवहार ,जीसी खबरे विचलित कर जाती हैं रिश्तो में ठहराव मानो बीते जमाने की बातें हो गई हैं ।
नई नई खोजें ,नित नये यंत्र प्रगति के बड़े दावे इस मशीनी युग में शायद उस शाश्वत सत्य .सर्वोच्च सत्य से भटक गये हैं जो इस ब्रह्मांड का आधार है ,जो अपार है असीम है .जिसका अंत और आरम्भ भी नहीं जो तब भी था जब हम नहीं थे और तब भी होगा जब हम कहीं नही होंगे .आज भी हमारा अस्तित्व इस ब्रह्मांड के एक कण के अति सूक्ष्म हिस्से जितना है तो फिर इतना गर्व किस बात का ?बड़े बदे दावे समय के ही एक झटके मेँ बिखर कर रह जाते है और हम ठगे से खड़े देखते रह जाते है बेबस निसहाय से ।.जब हमें भूकम्प ,सुनामी या बाढ़ ऐसी स्थिति में ला पटकते हैं तब एक बार फिर हम कहीं नहीं होते ,कुछ नहीं होते और उस असीम अपार शक्ति की शरण के इलावा कोई सहारा भी नहीं दिखता .
इसलिए उस शक्ति से नाता जोड़े रखे ,अपने आप पर कभी भी गर्व न करें .मशीनी मानव बन एक अंधी दौड़ का हिस्सा न बन जाये .
हर दिन थोडा सा समय खामोश हो कर कुछ पल उस महान शक्ति के सानिध्य में अवश्य बिताएं जो शाश्वत सत्य है और इस सारे संसार का आधार है
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