आरक्षण

सर्वप्रथम तो मैं एक बात स्पष्ट कर
देना चाहता हूँ की मैं आरक्षण विरोधी नहीं हूँ,
मुझे भी लगता है की पिछड़ो के लिए आरक्षण
होना चाहिए, पर सिर्फ़ जाति के हिसाब से
नहीं बल्कि आर्थिक रूप से पिछड़ो के लिए भी.
आरक्षण हमेशा से विवादित विषय रहा है और
अगर आप इस पर कुछ कहते है तो उस पर
विवाद होना स्वाभाविक है, पर जहाँ तक मुझे
लगता है इसे जान बुझ कर विवादित
बनाया गया है ताकि कुछ राजनेताओ
की राजनीति धूमिल ना पड़े. इसमे कोई शक
नहीं कि जब हमारे देश मे आरक्षण
व्यवस्था लागू की गयी थी तब कुछ
जातियों की हालत बदतर थी, उँची जाति के लोग
उन्हे छूना भी पाप समझते थे, ऐसी हालत मे उन
जातियों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए
आरक्षण ज़रूरी था. परंतु आज जब हमारे समाज
का आधा से ज़्यादा हिस्सा इन सब बातों से
काफ़ी उपर उठ चुका है तो फिर आरक्षण
की राजनीति क्यों? उस समय जाति धर्म
को ना मानने वाले अपवाद की श्रेणी मे आते थे
परंतु आज जाति के नाम पर छुआछूत को मानने
वाले अपवाद की श्रेणी मे आते हैं ऐसे मे
क्या आरक्षण का स्वरूप बदलना उचित
नहीं होगा?
इसका कोई विरोध नहीं कर सकता की जब
बाबा भीम राव अंबेडकर जी ने इस देश
का क़ानून लिखने का गौरव हासिल
किया था तो उन्होने आरक्षण के बल पर
नहीं बल्कि शिक्षा और योग्यता के बल पर
किया था. उस समय जब उँची जाति वाले
पिछड़ी जाती वालो पर ज़ुल्म करते थे
तो उसकी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं था पर
आज इस देश मे क़ानून है,
मीडिया का इतना विस्तार है, लोगो के पास
अपनी बात कहने का ज़रिया है फिर ये आरक्षण
ज़रूरी क्यों है? मैं ये भी मानता हूँ की बहुत
सी पिछड़ी जाति के लोग अभी भी मुख्य धारा मे
शामिल होने से वंचित रह गये हैं और
उनको आरक्षण की ज़रूरत है पर इतने साल
आरक्षण होने के वावजूद भी वो वंचित क्यों रह
गये है इसकी वजह जानने की कोशिश
की किसी ने? नहीं? इसका कारण है
जागरूकता का अभाव जो की सही शिक्षा से
संभव है और ग़रीबी जिसकी वजह से
वो शिक्षित नहीं हो पा रहे. और ऐसे लोग
सिर्फ़ निचली जातियों मे
नहीं बल्कि उँची जाति मे भी हैं.
अगर आरक्षण को आधार बनाया जाता है
पिछड़े हुए लोगो को मुख्य धारा मे जोड़ने के लिए
तो इसमे सभी तरह के पिछड़ो को शामिल
क्यों नहीं किया जाता? क्यूँ ये माना जाता है
की अगर कोई सवर्ण जाति का है तो वो सर्व
साधन संपन्न होगा? और अगर ये माना जाता है
की सवर्ण भी पिछड़े हो सकते हैं
तो उनको आरक्षण क्यों नहीं? यहाँ पर गौर
करने वाली बात ये भी है की जब आर्थिक
आधार पर आरक्षण दिए जाएँगे तो उनमे सिर्फ़
सवर्ण ही नहीं होंगे बल्कि पिछड़ी जाति के
ग़रीब भी शामिल होंगे. आज कुछ
पिछड़ी जाति के लोग, जो सर्व साधन संपन्न हैं
पर आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं, वो सही है?
जातिगत आरक्षण के समर्थक ये क्यूँ भूल जाते
है की आज जातिगत आरक्षण का सारा लाभ
तो वैसे लोग ले लेते हैं जिनके पास सबकुछ है
और जिन्हे आरक्षण की ज़रूरत ही नहीं है.
साधारण भाषा मे समझा जाए तो किसी मेडिकल
कालेज की फीस दो लाख रुपये है तो उसमे
आरक्षण का फायदा किसे होगा, उस मजदूर
को जो खुद को भूखा रख कर अपने बच्चे
को जैसे तैसे पढ़ाता है या पिछड़ी जाति के उन
विकसित लोगो को जो आसानी से दो लाख रुपये
का इंतज़ाम कर सकते है?
आज अगर आरक्षण का सही लाभ मिलता है
तो सिर्फ़ उन पिछड़ी जातियों के
लोगो को जो सर्व साधन संपन्न हैं, उसमे से
अगर कुछ बच गया तो वो उन लोगो तक
पहुँचता है जो सही मे आरक्षण हकदार हैं पर ये
भी सच्चाई है की उन लोगो तक नहीं पहुँच
पाता जिसको इसकी ज़रूरत तो है पर
उँची जाति मे जन्म लेने की वजह से इससे वंचित
हैं. एक और बात, कल जो छुआछूत
की बीमारी इस देश मे जाति की वजह से
थी वो आज अमीरी और ग़रीबी ने ले ली है. आज
एक रिक्शा चलाने वाला सवर्ण
अपनी ही जाति मे अछूत समझा जाता है
वहीं करोड़ो की संपति रखने वाले
पिछड़ी जाति के इंसान से कोई
उसकी जाति नहीं पूछता.
एक और बात जिसपर ध्यान देने की ज़रूरत है
की पिछड़ी जाति के वो लोग जो आरक्षण
का लाभ ले कर विकसित हो चुके हैं, अगर अपने
बच्चो के लिए आरक्षण का लाभ लेते हैं
तो क्या वो अपनी ही जाति के अविकसित
लोगो पर जो की आरक्षण का लाभ ना ले पाने
की वजह से अविकसित हैं, ज़ुल्म नहीं कर रहे?
अगर जातिगत आरक्षण रहा तो इसमे से उन
लोगो के नाम जो पिछड़ी जाति के विकसित लोग
हैं, को हटा पाना मुश्किल ही नहीं असंभव है.
वैसे सवर्णो के लिए आरक्षण की बात
करना शायद ग़लत है क्योंकि इसमे कोई शक
नहीं की उनमे से अधिकतर
अपनी ग़लतियों की वजह से ग़रीब हुए. वैसे इस
देश मे ऐसे भी सवर्ण हैं जो विस्थापित होने
की वजह से या किसी अन्य वजह से जिसमे
उनका कोई दोष नहीं पर ग़रीब हैं. पर यहाँ पर
मुद्दा भटकने की वजह से या यूँ कह लीजिए
की कुछ बुद्धजीवी पाठको के आपति पर मैं
सांसोधन कर रहा हूँ.
आरक्षण पिछड़े जातियों को ही मिले पर उस
क़ानून मे अगर ये भी लिखा हो की आरक्षण
का लाभ सिर्फ़ वही व्यक्ति ले सकता है जिसके
परिवार (माता, पिता और वो खुद) मे से
किसी ने आरक्षण का लाभ ना लिया हो और
आज के हिसाब से जिसकी परिवारिक इनकम
सालाना 5 लाख से कम हो. अगर ऐसा हुआ तब
जा कर किसी सही हकदार को आरक्षण
का सही लाभ मिल पाएगा.
आर्थिक आधार पर सिर्फ़ पिछड़े
जाति को आरक्षण मिले........... भारतीय संविधान ने जो आरक्षण
की व्यव्यस्था उत्पत्ति काल में
दी थी उसका एक मात्र उद्देश्य कमजोर और
दबे कुचले लोगों के जीवन स्तर की ऊपर
उठाना था और स्पष्ट रूप से
इसकी सीमा रेखा २५ वर्षों के लिए थी| लेकिन
धर्म के आधार पर एक विभाजन करवा चुके इन
राजनेताओं की सोच अंग्रेजों की सोच से
भी ज्यादा गन्दी निकली| आरक्षण का समय
समाप्त होने के बाद अपनी व्यक्तिगत
कुंठा को तृप्त करने के लिए वी.पी. सिंह ने मंडल
आयोग की सिफारिशें न सिर्फ अपनी मर्जी से
करवाई बल्कि उन्हें लागू भी किया| उस समय
मैं जूनियर कक्षा में पढ़ता था लेकिन
अच्छी तरह से याद है कि तमाम सारे सवर्ण
छात्रों ने विधान-सभा और संसद के सामने
आत्मदाह किये थे| नैनी जेल में न जाने कितने
ही छात्रों को कैद करके यातनाएं दी गई
थी इसका कोई अता-पता ही नहीं चला| याद
नहीं आता कि किसी भी परिवेश में उन्नति के
नाम पर भी अंग्रेजों ने इस प्रकार
भारतीयों का दमन किया हो| तब से लेकर आज
तक एक ऐसी व्यवस्था कायम कर दी गई
कि ऊंची जातियों के कमजोर
हों या मेधावी सभी विद्यार्थी और नवयुवक इसे
ढोने के लिए विवश हैं| अगर आरक्षण
की वास्तविक स्थिति को देखा जाय
तो जो पात्र हैं उन्हें भी इसका फायदा नहीं मिल
रहा है| दीगर बात ये है कि जिस देश
का संविधान अपने आपको धर्म-निरपेक्ष, पंथ-
निरपेक्ष और जाति-निरपेक्ष होने
का दावा करता है उस देश में जातिगत और धर्म
पर आधारित आरक्षण क्या संविधान
की आत्मा पर ही कुठाराघात नहीं है| एक धर्म-
निरपेक्ष राष्ट्र में आरक्षण का सिर्फ एक
आधार हो सकता है वो है आर्थिक आधार
लेकिन दुर्भाग्य वश ऐसा नहीं है| यहाँ तो एक
भेंड-चाल है कि जो बहुसंख्यक (हिन्दू) के
विरुद्ध सांप्रदायिक आग उगले उसे धर्म-
निरपेक्ष कहा जाता है, जो जाति और वर्ग के
आधार पर आरक्षण की व्यवस्था देता है उसे
जाती-निरपेक्ष कहा जाता है|
अब सवाल ये उठता है कि
१. क्या तथाकथित ऊंची जातियों में गरीब और
शोषित लोग नहीं है?
२. आरक्षण का आधार आर्थिक
स्थिति हो तो क्या हानि होगी?
३. शिक्षा में आरक्षण पाकर जब सामान
शिक्षा हासिल कर ली फिर नौकरियों और
प्रोन्नति में आरक्षण क्या औचित्य क्या है?
४. वर्ण-व्यवस्था से तथाकथित
नीची जातियां भी विरत नहीं फिर भी कुछ
को सवर्ण कहकर समाज को टुकड़ों में बांटने के
पीछे कौन सी मंशा काम कर रही है?
५. अंग्रेजो के दमन को मुट्ठी भर युवाओं ने
नाकों चने चबवा दिए फिर आज
का युवा इतना अकर्मण्य क्यों है?
६. क्या हम गन्दी राजनीति के आगे घुटने टेक
चुके हैं?
७. क्या आज सत्य को सत्य और झूठ को झूठ
कहने वाले लोगों का चरित्र दोगला हो चला है
कि आप से एक हुंकार भी नहीं भरी ज़ाती?
जागो ! विचार करो ! सत्य को जिस संसाधन
से व्यक्त कर सकते हो करो वर्ना आने
वाली नस्लें तुमसे भी ज्यादा कायर पैदा हुईं
तो इन काले अंग्रेजों के रहमो-करम पर जियेंगी !
भारतीय संविधान ने जब खुद ही आरक्षण
देकर जातिवाद को बढ़ावा दिया है. तो आम
आदमी(सवर्णों) में कुंठा बढ़ेगी ही. नौकरी के
लिए परीक्षा में आरक्षण, पद में आरक्षण,
प्रोमोशन में आरक्षण. योग्य
लोगों को दरकिनार कर, कबतक इस
आरक्षण के सहारे गैर योग्य लोगों को हर
आम व खास पदों पर बिठाया जाता रहेगा.
और सबसे बड़ी बात यह कि सरकार खुद
लोगों को टुकड़े-टुकड़े में बात जातिवाद
को बढ़ावा दे रही है. कहीं दलित,
महादलित, पिछड़ा,
अति पिछड़ा तो कहीं अनुसूचित जाति व
जनजाति.
महज नाम बदले हैं पर सरकार की नीयत
नहीं. दूसरी तरफ आशा की जाती है और
आलोचना भी कि किसी को जाति विशेष से
संबोधन कर नहीं पुकारा जाए. अब समाज के
इस दोयम मानसिकता से कैसे उबरेंगे गैर
आरक्षण वाले. सो, किसी ना किसी रूप में
उनकी भड़ास निकलेगी ही.
कोई भी इंसान जन्म से पहले भगवान के
यहाँ आवेदन नहीं दिए रहता. कि मुझे फलाने
घर में जन्म लेने दीजिए. और महज जन्म के
आधार पर मनुष्यों के साथ जातिगत भेद-भाव
बरतना कहाँ तक उचित है. सरकार
की मंशा आजादी के बाद से ही दोयम
रही है. आरक्षण से
किसी को नौकरी या पदोन्नति मिल
सकती है. लेकिन कार्यकुशलता व पद
की गरिमा बनाए रखने के लिए
वो प्रतिभा कहाँ से लायेंगे.
क्योंकि योग्यता किसी बाजार में
नहीं बिकती. बिहार में सबसे निचले स्तर पर
प्रशासनिक महकमे को ही उदहारण स्वरुप
ले लीजिए. ब्लॉक के जितने भी महत्वपूर्ण
पद हैं. मसलन बीडीओ, बीएओ या सीओ. इन
पदों पर ऐसे-ऐसे लोग विराजमान हैं, जिन्हें
दो पंक्ति विभागीय नोटिस भी लिखने
नहीं आता. तभी तो, बिहार का कोई
भी अख़बार उठाकर देख लीजिए. कोई
ऐसा दिन नहीं जब
कहीं ना कहीं जनता द्वारा किसी ना किसी
बीडीओ या सीओ को बंधक बनान या मुंह में
कालिख पोतने की खबर नहीं रहती हो.
कहीं-कहीं तो इनको दौड़ा- दौड़ाके पिटाई
की खबर भी मिल रही है.  यह मूल्यों में
गिरावट नहीं तो और क्या है.
आरक्षण की वजह से बेहतरीन प्रतिभाएं
दबाई जा रही है. जबकि सरकारी महकमे में
अयोग्य कर्मियों की एक फ़ौज
खड़ी हो गई है. इनकी वजह से फाइलें
लटकी रहती हैं. और आम जनता काम
चाहती है. यानी की आरक्षण की वजह से
काबिल कर्मियों की कमी, काबिल
कर्मियों की कमी से फाइलों के निष्पादन में
लेटलतीफी ,लेटलतीफी से जनता में असंतोष
और इसका नतीजा..!

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