इंसानियत

इंसान चाहे किसी भी मजहब का हो लेकिन इंसानियत से बड़ा कोई मजहब नहीं होता। प्रत्येक व्यक्ति के खून का रंग एक होता है। धर्म या जाति से कोई व्यक्ति छोटा बड़ा नहीं होता, छोटा-बड़ा अपने कर्म से होता है।  आज हर ओर धर्म को लेकर बहस छिड़ी हुई है. जिदंगी के झंझावतों से दूर कुछ पल शांति से बिताने के लिए हमारे पूर्वजों ने अपने सुझावों को आम लोगों के साथ साझा किया था. उनमें सबसे बड़ी बात थी कि इंसान को जानो, इंसानियत को हमेशा अपने में जिंदा रखो. इंसानियत का अर्थ यही है कि अगर दूसरे का दुःख दूर न कर पाओ तो उसके दुःख को आपस में इतना बांट लो, कि दुःख का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए. दुःखों से त्रस्त जनता ने इन सुझावों को ही सर्वोपरि माना, इसी बीच कुछ मौकापरस्त लोगों ने इसका अलग ही अर्थ निकाल लिया और फिर शुरू हुई वह जंग, जिसमें सबसे पहले इंसानियत की बलि दी गई और जब इंसानियत ही जिंदा नहीं रही, तो इंसानों का क्या मोल. धर्म की इस लड़ाई में आज तक अनगिनत जाने चली गई और न जाने कितनी और जाती रहेगी. हालात इतने खराब हो चुके है कि पूर्वजों द्वारा स्थापित शांति स्थल मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा या फिर चर्च सभी युद्घ स्थल बन चुके है. वहां पर मौकापरस्तों ने बारूद का ढेर लगा दिया है और यही बारूद आज हमारी जिंदगी का सबसे बड़ा खतरा है. विश्व को मानवता का संदेश देने वाले राष्ट्र में वर्तमान में एक भी ऐसा नाम नहीं है, जो अपने पूर्वजों की अनमोल धरोहर को संभालते हुए बिखरते जा रहे माहौल को संभाल लें. जिस ओर देखो वहां अंधेरा ही नजर आता है. हम मानवता की बात तो करते है, पर क्या कभी ईमानदारी से इंसानियत के बारे में अपनी को सोच को मूर्त रूप दे पाते है, क्योंकि हम अपने आसपास के माहौल में ही जीते है, और उसके अनुरूप ही विचारों का आदानप्रदान करते है. क्योंकि परम्पराओं को तोडक़र उनसे आगे की सोचना हमारे आचरण में नहीं है. इसलिए सब कुछ जानते समझते हुए इंसानियत के खिलाफ आचरण करने को मजबूर हो जाते है और यही कारण है कि हम असली धर्म को भूल गए है.

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