खर्चीले शादी समारोह



जयसिँह शेखावत ,
गाँव-पोस्ट बबाई
तहसिल खेतङी
जिला-झुंझुंनू राजस्थान  3.12.12


भव्य शादी अधिकांश व्यक्तियों का सपना होती हैलेकिन भारत में वास्तविकता यह है कि खर्चीले शादी समारोह तथा दहेज़ की भारी मांगें बहुओं के जीवन को तकलीफदेह बना देती हैं और उनके परिवार को बर्बाद कर देती हैंशादी की अवधारणा अबसौदे में तब्दील हो गयी हैजहाँ व्यक्ति और रिश्तों की कोई कीमत नहीं रही, संसार में विवाहों के रस्म-रिवाज तो अलग-अलग तरह के हैं पर वे  सामान्य स्तर के और सादगी भरे हो ताकि गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले आसानी से उसकृत्य को बिना कोई अतिरिक्त कठिनाई उठाये सम्पन्न कर सकें  अमीरों में भी फिजुलखर्ची को एक प्रकार की उद्दण्डता माना जाता है  ओछे लोग ही उपलब्ध पैसे की होली जलाते और तमाशा बनाते हैं। समझदार पैसे का महत्त्व समझते हैं  उसका उपयोग ऐसे कामों में करते हैं जिनसे अपनीअपनों की तथा सर्वसाधारण की भलाई हो सके  इन प्रयोजनों से रहित धमाल स्तर के कृत्यों में पैसा उड़ाना पुराने समय में भी बुरा समझा जाता था  अब जबकि समझदारी की कसौटी हर काम पर लगाई जा रही है अपव्यय को और भी अधिक निन्दनीय ठहराया जाने लगा है  

अपव्ययों में नशेबाजीफैशनपरस्तीआवारागर्दीअतिवादी विलासिता को गिना जाता है  इस प्रकार के प्रसंगों में जिन्हें पैसा उड़ाते देखा जाता है उनकी निन्दा होती है  कहा जाता है कि हराम की कमाई ही बेदर्दी से खर्च की जाती है  इन मान्यता के अनुरूप पैसे की अतिशबाजी जलाने वालों को अनीति उपार्जनकर्त्ता माना जाता है  इनके प्रति लोगों में ईष्र्या भी भड़कती है और निन्दा भी सहज ही होने लगती है  साम्यवादी प्रवाह का प्रभाव दूर-दूर तक पहुँचा है  सभी जानते हैं कि इस घोर महँगाई के जमाने में किसी भलेमानस का खर्च मुश्किल से चलता है  भोजनवस्त्र और मकान खर्च ही इतना हो जाता है कि बच्चों की शिक्षादीक्षास्वास्थ्यस्वावलम्बन आदि के लिए जिन खर्चों की नितान्त आवश्यकता है उनमें भी कटौती करनी पड़ती है फिर अतिथि सत्कार से लेकर आकस्मिक खर्चे,तीज-त्यौहारों के खर्च इतने अधिक लगे रहते हैं कि कोई सद्गृहस्थ अपनी गाड़ी मुश्किल से खींच पाता है 

औसत गृहस्थ को अपनी समर्थता के समय में साधारण पाँच लड़की-लड़कों के विवाह करने पड़ते हैं  वे सभी बढ़ती महँगाई के साथ अधिक खर्चीले होते जाते हैं  जिनके पास फालतू कमाई के स्रोत हैं उन्हें सूझता नहीं कि उस चोरी की आय का करें क्याबैंक में डाल नहीं सकते  घर बनानेव्यवसाय बढ़ाने में भी सरकारी जाँच-पड़ताल पीछे लगती है  इस प्रकार का जमा पैसा निकल भागने के लिएआतुर रहता है  विलासी अपव्ययों में शादियों की धूमधाम ही सरल पड़ती है  उसमें लोगों पर चौंकाने वाले बड़प्पन की छाप ढालने का अवसर भी मिलता है और चाटुकारों द्वारा प्रस्तुत की कई वाहवाहीमें भी मन प्रसन्न होता है  ऐसा कुछ तो उन्होंने सुना-समझा नहीं होता कि अपने आवश्यक खर्च से बचा हुआ पैसा किन्हीं ऐसे सत्कर्मों में भी लगाया जा सकता है जिसमें पिछड़ों को राहत मिले और सत्प्रवृत्तियों के बढ़ाने में उपयोगी बन पड़े  कृपणता और अवांछनीयता की संयुक्त कमाई सत्प्रयोजनों में लगने के लिए सहज तैयार नहीं होती  उसे दुर्व्यसनों के लेकर अहंकारी प्रदर्शन करने वाले ठाट-बाट ही रास आते हैं  इसके लिए शादियों में दरियादिली दिखाते हुए दोनों हाथ पैसा उलीचना सबसे सरल उपाय जान पड़ता है  वही होता भी है  विवाह-शादियों में भी ऐसा ही होता देखा गया है ।फालतू पैसे वालों के ठाट-बाट के प्रदर्शन को देखकर गरीब लोग भी उनकी नकल बनाते हैं  कुटुम्बरिश्तेदारसंबंधीपड़ोसी समुदाय में भरें हुए मसखरे तो दूसरों का छप्पर जलने हर हाथ सेंकने की फिकरमें रहते हैं  वे भी उकसाने में कमी नहीं रहने देते  औकात के भीतर रहने की बात करने पर व्यंग्य बचन बोलतेउपहास उड़ाते हैं  इस दबाव में असमर्थों को भी समर्थों के समतुल्य बनाने के लिए वैसा ही ठाट रोपना पड़ता है  कहना  होगा कि पहली ही शादी में घर की जमा पूँजी चुक जाती है और अगली शेष शादियों के समय साधन कहाँ से जुटायें इसका उत्तर देने से अकल जवाब दे जाती है  बर्तन बेचने से लेकर कर्ज लेने तक के साधन जब समाप्त हो जाते हैं तो बेईमानीचोरीचालाकी का यदि अवसर बन पड़ता है तो उसे अपनाते हैं अन्यथा दरिद्रता के बीच पलने वाले बच्चे अविवाहित ही रह जाते हैं  
 

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