दुषकर्म कि सजा
जयसिँह शेखावत ,
गाँव-पोस्ट बबाई
तहसिल खेतङी
जिला-झुंझुंनू राजस्थान
आज भारत मे जब भी कभी दुषकर्म के मामले सामने आते है ओर उनकी वीभत्सता
देखते है तो मन मे यही सवाल उठता है कि इस देश मे ऐसा कठोर कानून क्यों नही
बनता कि अपराधी अपराध करते हुये घबराये, दरअसल दुषकर्म करने कि घिनोनी
मानसिकता रखने वाले अपराधी यह मान कर चलते है कि कानून कि कमजोरियो का
लाभ उठाते हुये वे बच निकलेंगे ओर पिङिता के साथ न्याय नही हो पायेगा।
उनकि ऐसी सोच के पिछे प्रमुख कारण यह है कि सामाजिक प्रतिषठा के कारण
महिला कोई शिकायत नही करेगी, ओर अगर वह शिकायत करती भी है तो पुलिस व
अदालत कि कार्यवाही के दोरान होने वाली पुछताछ से घबराकर अपने पेर वापस
पिछे कर लेती है। कानून व समाज कि ऐसी कमजोरियो का लाभ परोक्ष रुप से
दुषकर्म करने वाले को मिल ही जाता है ओर महिलाओ के लिये असुरक्षा का घेरा
ओर बड जाता है । यही कारण है कि दिन-ब-दिन योन उतपीङन के मामलो मे बढत हो
रही है । आज महिलाये कही भी सुरक्षित नही है जब जब ऐसी घटनाये प्रकाश मे
आती है तो महिला आयोगो की सक्रियता बढ जाती है ओर फिर थोङे दिनो तक मामले
पर चर्चा चलती है, उसके बाद पिङिता के साथ क्या हुया उसे मानसिक संबल किस
तरह से मिल रहा है, उसके प्रति समाज का कया बर्ताव है ईसकी फिक्र कोई
नही करता । दुषकर्म को रोकने का एक ही उपाय हो सकता है कि अपराधी को
फाँसी से भी बढकर ऐसी सजा मिले जिसे सोचकर ही अपराधी कि रुह कांप उठे .
देखते है तो मन मे यही सवाल उठता है कि इस देश मे ऐसा कठोर कानून क्यों नही
बनता कि अपराधी अपराध करते हुये घबराये, दरअसल दुषकर्म करने कि घिनोनी
मानसिकता रखने वाले अपराधी यह मान कर चलते है कि कानून कि कमजोरियो का
लाभ उठाते हुये वे बच निकलेंगे ओर पिङिता के साथ न्याय नही हो पायेगा।
उनकि ऐसी सोच के पिछे प्रमुख कारण यह है कि सामाजिक प्रतिषठा के कारण
महिला कोई शिकायत नही करेगी, ओर अगर वह शिकायत करती भी है तो पुलिस व
अदालत कि कार्यवाही के दोरान होने वाली पुछताछ से घबराकर अपने पेर वापस
पिछे कर लेती है। कानून व समाज कि ऐसी कमजोरियो का लाभ परोक्ष रुप से
दुषकर्म करने वाले को मिल ही जाता है ओर महिलाओ के लिये असुरक्षा का घेरा
ओर बड जाता है । यही कारण है कि दिन-ब-दिन योन उतपीङन के मामलो मे बढत हो
रही है । आज महिलाये कही भी सुरक्षित नही है जब जब ऐसी घटनाये प्रकाश मे
आती है तो महिला आयोगो की सक्रियता बढ जाती है ओर फिर थोङे दिनो तक मामले
पर चर्चा चलती है, उसके बाद पिङिता के साथ क्या हुया उसे मानसिक संबल किस
तरह से मिल रहा है, उसके प्रति समाज का कया बर्ताव है ईसकी फिक्र कोई
नही करता । दुषकर्म को रोकने का एक ही उपाय हो सकता है कि अपराधी को
फाँसी से भी बढकर ऐसी सजा मिले जिसे सोचकर ही अपराधी कि रुह कांप उठे .

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