मानविय मुल्यो सॆ विहीन shiksha

शिक्षा वह साधन हॆ जो समाज को केवल शिक्षित ही नहीं करती वरन व्यक्ति के आत्मीय विकास में भी अहम योगदान निभाती हॆ ऒर जो व्यक्ति आत्मीक रुप से शिक्षित होता हे वो समाज ओर राष्ट्र को उन्नति के पथ पर लेकर जाता हे. शिक्षा किसी भी राष्ट्र के विकास में अहम योगदान निभाती हे, परन्तु आज शिक्षा का मतलबबदल गया हे आज शिक्षा का अर्थ केवल साक्षरता से लिया जाता हे, राज्य ओर राष्ट्र के विकास को साक्षरता की कसोटी पर नापा जाता हे. शिक्षा का अर्थ केवलसाक्षरता नहीं हे, किताबी अक्षरों का ज्ञान विद्वान तो बना सकता हे परन्तु जब तक व्यक्ति में नॆतिक मुल्यों का हास हे तब तक वो समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह पुर्ण ईमानदारी के साथ नहीं कर सकता हे.आज समाज शिक्षित तो हो रहा हे परन्तु कहीं न कहीं वो मानवीय मुल्यों का परिहास उडा रहा हॆ व्यक्तिगत तोर पर तो मनुष्य शिक्षित हो रहा हे, मजबुत हो रहा हे परतु सामाजिक तोर पर उतना ही अशिक्षित होता जा रहा हे, आत्मिक रुप से पतन के पथ पर अग्रसर होने के कारण समाज को भी कमजोर बना रहा हे ओर एक कमजोर समाज एक कमजोर राष्ट्र का निर्माण करता हे. आज के जमाने में कम्प्युटर ओर अँग्रेजी पढाने वाले शिक्षकतो आपको बहुत मिल जायेंगे परन्तु जो नॆतिक शिक्षा दे सके, कला ओर संस्कृति से पहचा्न करा सके, विधार्थी को दिमागी रुप से विकसित करने के साथ साथ उसे आत्मिकविकास का मतलब समझा सके ऎसा शिक्षक हमें कहाँ मिलेगा शिक्षक मानवीय मुल्यों किपरिभाषा तो तब समझायेगा ना जब वो स्वयं आत्मीक रुप से उन्न्त होगा परन्तु शिक्षक तो स्वयं व्यक्तिगत तरक्की के लिये विधार्थीयों को शिक्षित करता हे जब शिक्षा देने वाला गुरु स्वयं ही आत्मिक रुप से कमजोर हे तो वो कॆसे समाज को सही दिशा दिखायेगा जिसका स्वयं ही ज्ञान केवल किताबी अक्षरों तक सीमीत हे भला वो किस प्रकार अपने विधार्थीयों का सही मार्गदर्शन करेगा. एसी शिक्षा जो मानवीय मुल्यों से रिक्त हो, जिसमें नॆतिक मुल्यों कि कमी हो एसी शिक्षा समाज के लिये खतरनाक साबित हो सकती हे. आज समाज जितना ज्यादा शिक्षित होता जा रहा हॆ उतनी ही ज्यादा अपराधिक वॄतियाँ देश में बढ रही हॆं विज्ञान ने इस शिक्षित समाज के हाथों में ऎसे ऎसे खिलॊने दे दिये हें जो मानवता के साथ खिलवाड कर रहेहें.आज के दोर में सबसे ज्यादा अश्लिलता ओर अपराधिक घटनायें शिक्षित समाज में ही फ़ेली हुई हॆं. आये दिन समाचारों में ऎसी खबरें सुनने में आ जाती हें जिन्हे देख मानवता शर्मसार हो जाये. इन पढे लिखे लोगों दारा किये गये कॄत्य इतने भयंकर हॆं जिसकी कल्पना कर लेने भर से ही दिल काँप उठे किसी डरावनी कल्पना से भी डरावनी हे इनकी हकीकत सही मायनों में तो शिक्षा का प्रयोजन सामाजिक विकास के लिया किया जाना चाहिये ताकि एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण हो सके परन्तु आज शिक्षा का इस्तेमाल केवल व्यक्तिगत तरक्की के लिये किया जाता हे.व्यक्तिगत तोर पर विकसीत होना बुरी बात नहीं हे, जिंदगी जीने के लिये धन ओर घर दोनों की आवश्यक्ता होती हे, व्यक्ति जब तक स्वयं व्यक्तिगत तोर पर मजबुत नहीं होगा तब तक वो समाज को मजबुती प्रदान नहीं कर सकता हे परन्तु व्यक्तिगत उत्थान का अभिप्राय ये तो नहीं कि व्यक्ति मानवीय मुल्यों को इतना नीचे गिरा दे कि मनुष्य मनुष्य से ही घृणा करने लगे, लालच अपने पाँव इस कदर पसार ले कि मनुष्य सही ओर गलत का भेद ही भुल जाये. शिक्षा उन्नति के पथ पर अग्रसर करने का साधन हे इसका उपयोग व्यक्तिगत, सामाजिक ओर राष्ट्रिय हितों के लिये किया जाना चाहिये. मानवीय मुल्यों से विहीन शिक्षा समाज को सही राह नही दिखा सकती ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता है,

परफेक्शन

धर्म के नाम पर