'आप' और अरविँद,

प्रिय 'आप' और अरविँद,

दिल्ली से बाहर भी देश की जनता आपसे बडी उम्मीद लगाए बैठी है..॥ आपकी हर कदम देश की जनता की गहन निगरानी मेँ है...इसलिए अपनी हर कदम काफी फूंक-फूंककर और सोच-समझकर रखिए..॥ जिस जनता ने दिग्गजोँ को धूल चटाते हुए आपको सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाया, वही जनता आपकी एक गलती पर आपको भी धूल चटा सकती है...क्यूंकि मानव स्वभाव रहा है..जिनसे उम्मीदेँ काफी ज्यादा होती, उनकी छोटी गलती भी हमेँ सुहाती नहीँ है॥
आपकी सादगी ने भारत की परंपरागत राजनीति मेँ ऐसी खलबली मचाई कि आनन-फानन मेँ वसुंधरा राजे को अपनी स्कयूरिटी आधी करनी पडी, निशंक ने अपने गाडी के उपर से लालबत्ती हटा ली, कई खुद को मेट्रो का रेगुलगर सवारी बताने लगे तो कईयोँ के दिमाग मेँ अपने काफिले और ताम-झाम को छोटा और कम करने के ख्याल पनपने लगे...लेकिन यह सब एक बडा आकार ले पाता..राजनीति मेँ सादगी का साम्राज्य फिर स्थापित हो पाता, उससे पहले ही सरकारी बंगला और गाडी लेने के आपके फैसले ने इन हांफते नेताओँ को ऑक्सीजन प्रदान करने का काम किया है और सादगी के इस अभियान और उसके दूरगामी परिणाम को आईसीयू की तरफ ढकेलने का..॥ बेहतर होता आपके नेता सरकारी गाडी लेने के बजाए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते, इससे जनता मेँ आपके प्रति विश्वास तो बढता ही जाता, साथ ही इन राजनीतिक पार्टीयोँ पर भी हमेशा यह दबाव बना रहता कि अगर यहां राजनीति मेँ बने रहा है तो सादगी को अपनाना ही पडेगा..॥
देश की एक बडी आबादी आपको परपंरागत पार्टीयोँ से जुदा समझती है..और ऐसा समझने के लिए आपने अबतक उन्हेँ वाजिब कारण भी दिए है, इसलिए आपकी कार्यशैली और आपका व्यवहार परपंरागत पार्टीयोँ और उनके नेताओँ से सदैव जुदा रहे, यह सुनिश्चित करना आपकी जिम्मेदारी है..॥ दूसरे दलोँ के नेताओँ को अपने दल मेँ शामिल करने मेँ आपको आपाधापी से बचना चाहिए...दल-बदल की राजनीति (बेहतर अवसर की ताक मेँ) परपंरागत राजनीति का एक अभिन्न अंग रहा है...आप यह सुनिश्चित करे कि आपकी पार्टी मेँ यह संस्कृति न फले-फूले..॥ आपको अपनी पार्टी मेँ एक ऐसी फिल्टर व्यवस्था तैयार करनी चाहिए जिससे कि दूसरे दल के केवल काबिल और ईमानदार नेता ही छन कर आ सके...बाकी गंदगी बाहर ही रह जाए॥

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