नया साल मुबारक, पुराने का


कहने की जरूरत नहीं। नया साल मुबारक, पुराने का मुँह काला। यही दुनिया का कायदा है। और कैसे न हो। जरा मिलाकर देखो दोनों को। यह देखो नया साल, गुलाबी-गुलाबी, और वह रहा तुम्हारा पुराना साल, चीकट, मटमैला।
नया साल झबरे-झबरे बालों वाला ऊँची नसल का नन्हा-मुन्ना प्यारा-सा पपी है जिसे बरबस, गोद में उठा लेने को जी चाहता है, ऊन के गोले जैसा गरम, गुदगुदा। और वह पुराना साल खुजली का मारा, लीबर बहाता, मरियल, बूढ़ा, लावारिस कुत्ता जो हर घर से दुरदुराया जाता है। नया साल हरी-भरी दूब की वीथी है जिस पर अगल-बगल, रंग-बिरंगे सुगंधित फूलों की लताओं ने मंडप-सा तान रखा है, और पुराना साल कीचड़ और काई से ढँका हुआ वह ऊबड़-खाबड़ कंकरीला रास्ता जिसे अब पीछे मुड़कर ताकते डर लगता है। नया साल एक अनजाने सुख की सिहरन है, पुराना साल भो
गे हुए कष्टों की एक कड़ी। कितना बुरा था पुराना साल। ढंग का खाना न ढंग का कपड़ा। कीमतें आसमान से बात करती हुई। रहने को मकान नहीं, दस-दस कुनबे बेशर्मी की चादर ओढ़कर एक जरा-सी कोठरी में जिंदगी के दिन गुजार रहे हैं। क्या था पुराने साल में जिसे चाव से कोई याद करे। अच्छा हुआ, बहुत अच्छा हुआ, उसकी अरथी निकल गई। कोई उसके लिए दो आँसू गिरानेवाला नहीं है।
आज नये साल की शाम है। अब तो हम नये साल की पौ फटते देखेंगे - बड़े हुलास से आगे बढ़कर उसका स्वागत करेंगे और किसी बहुत मनभाते मेहमान की तरह आँखों में आँखें डालकर, प्यार से हाथ पकड़कर उसे कमरे के भीतर ले आएँगे जहाँ इतने सारे लोग उसकी अगवानी में आँखें बिछाए बैठे हैं। और आँखें ही नहीं, दस्तरखान भी, जिस पर, साथ बैठकर पीने के लिए एक से एक नायाब शराबें चुनीं हुई हैं और एक से एक सुस्वादु मेवों से भरपूर केक और पेस्ट्रियाँ।
कमरा रंग-बिरंगे कागज की बंदनवारों और नये साल की हमारी रंग-बिरंगी आकांक्षाओं और संकल्पों के जैसे रंग-बिरंगी गुब्बारों से सजाया गया है। रेडियो पर बहुत अच्छा पाश्चात्य संगीत आ रहा है। हम गलबहियाँ डाले नाचेंगे-गाएँगे, धूम मचाएँगे - कुछ होश में और बहुत कुछ मदहोश, अलमस्त। नये साल का जनम हो रहा है।
नया साल वह फीनिक्स पक्षी है जो हर साल पुराने की खाक पर नया जनम लेता है। उसके माँ-बाप की फैमिली प्लैनिंग इतनी पक्की है कि हमें ठीक-ठीक पता रहता है कि कब, किस रोज और किस घड़ी में उसका जनम होगा। जभी तो दुनिया भर के करोड़ों लोग उत्सव के सब साज-सामान से लैस उसको हाथों-हाथ लेने के लिए बैठते हैं। सोना गुनाह है उस वक्त। सोते में जो कभी नया साल आ गया तो समझो तुम्हारी तकदीर भी सो गई पूरे एक साल के लिए, किस तरह फिर इस दलिद्दर से तुम्हारा छुटकारा नहीं।
इसलिए तो कोई सोता नहीं। देखिए कुछ को कैसे नींद के झोंके आ रहे हैं, आँखें डूबी जा रही हैं, मुँह फाड़-फाड़कर जम्हाइयाँ ले रहे हैं, लेकिन मजाल है कि सो जाएँ। सिगरेट और कॉफी से, व्हिस्की की चुस्की से, ब्रिज और रमी से, इसके-उसके स्कैंडल की मनमोहक चर्चा से और घिसे-पिटे चुटकुलों पर चौगुने जोर से हँस-हँसकर नींद को भगाया जा रहा है। ज्यों-ज्यों घड़ी का काँटा आधी रात यानी ग्यारह बजकर साठ मिनट की तरफ बढ़ रहा है। त्यों-त्यों नाच और गाने की लय तेजतर होती जा रही है।
और लो, यहाँ-वहाँ सब तरफ बारह के घंटे बजने लगे। नये साल का जनम हो गया। देखो-देखो कैसा प्यारा-सा बच्चा है, मक्खन जैसे हाथ-पाँव, गुलाब की पंखुरियों जैसे होंठ, कैसी अजनबी-सी भोली-भाली आँखें, किसी मीठे नश्तर की तरह उतरा जाता है दिल में। दुनिया की सर्दी-गर्मी का अभी उसे कुछ पता नहीं, अभी तो उसकी आँखों में वही हरम का बाग झूल रहा है, नंदनकानन, जहाँ आम की बौर से लदी हुई बेसुध अमराइयों में बारहोमास कोयल बोलती है। देखने वाले की आँखें जुड़ाती है।
पर मैं अपनी उल्टी तबीयत को क्या करूँ, मैं तो उस गरीब भिखमंगे की बात सोच रहा हूँ जिसे हमने अभी-अभी बगैर कफन के दफनाया है, जो अभी-अभी बुझे हुए कोयले की तरह, चूसी हुई गंडेरी की तरह, दूर उस कोने में फेंक दिया गया है, उस तह-पर-तह राख की ढेरी पर जिसका नाम समय है।
घूमने दो समय का पहिया, तुम्हारा, आज का यह नया चहेता भी वहीं पहुँचेगा, मुर्दा बरसों के उसी कब्रिस्तान में। सोचो तो कितने कृतघ्न हैं हम - एक दिन जिसको सिर माथे पर लिए फिरे, काम निकल जाने पर उसी को गर्दनियाकर बाहर कर दिया। मिल तो गया जो कुछ मिलता था, अब काहे की ठकुरसुहाती! ठकुरसुहाती हमेशा उगते सूरज की होती है, ढलता सूरज तो ढलता सूरज है।
रूप-रस-गंध का कितना कुछ दिया उसने। उसी सेतु पर होकर तुम यहाँ तक आए, अपने को तिरोहित करके उसने इस नये वर्ष को तुम्हारे लिए संभव बनाया, पकाया, तुम्हें प्रौढ़ता दो एक वर्ष के जीवन-अनुभव से, उसकी इतनी अवमानना क्यों इस अंत समय? कल जो मेहमान आ रहा है उसके स्वागत-सत्कार के लिए क्या यह जरूरी है कि घर के बड़े-बूढ़े को धकियाकर कहीं से सबसे अलग एक भूसे की कोठरी में बंद कर दिया जाए। एक अजनबी के वास्ते (भले ही वह जरी और कमखाब पहनकर आया हो) एक पुराने दोस्त की तरफ से यह बेरुखी (सिर्फ इसलिए कि उसके कपड़े मैले हैं) - यह कहाँ का इन्साफ या कहाँ की समझदारी है? अभी तो सामान भी नहीं खुला तुम्हारे इस नये दोस्त का, क्या पता उसके अंदर क्या है तब फिर काहे को उसे इतना सिर चढ़ाते हो? जो कहीं धोखा दिया उसने, तब? थोड़ा शंकित रहना ही अच्छा है ऐसे अजनबी से। बहुत-बहुत जरूरी है यह हाथ भर की दूरी। हमारे घर आए हो, अच्छी बात है। हम तुम्हारे साथ भलमंसी से पेश आएँगे, अपने बराबर में कुर्सी पर बिठाएँगे, नाम-गाम पूछेंगे, पूछेंगे कौन ठाकुर हो, किधर गाँव में तुम्हारे घर है, ओले-पाले सूखे बूढ़े की बातें करेंगे, तश्तरी में रखकर पान-सुपारी भी पेश करेंगे, मगर बस पान-सुपारी, दिल नहीं अपना। इतना संयम जरूरी है। समझदारी इसी में है।
होगी जहाँ होगी। आदमी में तो नहीं है। वहीं पर तो असल पेंच है। किसी घोंघाबसंत ने कहीं पर लिखा है कि आदमी सबसे समझदार जानवर है। बिल्कुल गलत बात है। पढ़ा-लिखा होगा, ज्ञानी होगा, समझदार नहीं है। दूसरे तमाम जानवर, यानी कि कीड़े-मकोड़े तक, उससे ज्यादा समझदार होते हैं। कभी अपने किसी शिकारी दोस्त से पूछिएगा, शेर कब और क्यों आदमखोर हो जाता है। इसलिए कि आदमी सबसे आसान चारा है। इसलिए कि अपनी उस घायल या टूटी हुई हालत में वह दूसरे किसी जानवर का शिकार नहीं कर सकता, सब आदमी से ज्यादा चौकन्ने होते हैं और खटका पाते ही भाग निकलते हैं। असल नासमझ, भुग्गा, गावदुम आदमी है।
सौ बात की एक बात, आदमी से बढ़कर लाचार और नासमझ जानवर सारी सृष्टि में दूसरा नहीं है, और यह भी उसकी नासमझी का ही एक प्रमाण है कि वह अपने एक पुराने दोस्त को धता बताकर एक अज्ञातकुलशील अजनबी के गले में इस तरह बाँह डालकर पागलों जैसा नाचता फिरता है। साल बीतते न बीतते उसे अपने भूल का पता चलने लगता है लेकिन तब तक एक और नया साल उधर चौखट पर खड़ा होता है।
मैंने अक्सर लोगों को कहते सुना है कि आदमी वर्तमान में जीता है। काश कि ऐसा होता। मगर कहाँ? सच तो यह है कि आदमी कभी वर्तमान में नहीं जीता, जो कुछ जीता-मरता है सब भविष्य में। इसलिए तो सब उसे वर्तमान संवत्सर की बिदाई का सहृदय आयोजन करना चाहिए तब वह एक अजन्मे और तुरंत के जन्मे शिशु के स्वागत में इस तरह मतवाला होकर पिपिहरी बजाता घूमता है और सो भी आज के इस जमाने में जबकि सब जानते हैं कि हर नया बच्चा मुसीबतों की एक नयी गठरी लेकर घर में आता है।

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