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अरविंद केजरीवाल

आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद जनता को संबोधित करते हुए कहा कि आज जो शपथ ली गई है, वो अरविंद केजरीवाल ने नहीं ली है, ना ही इन मंत्रियों ने नहीं ली, बल्कि यह शपथ दिल्ली की जनता ने ली है। ये कवायद अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए नहीं थी, बल्कि भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए थी। यहां केजरीवाल की जीत नहीं हुई है, बल्कि आम आदमी की जीत हुई है। केजरीवाल ने साथ ही कहा कि पहले तो कोई काम भी रिश्वत के बिना नहीं होता था, लेकिन मैं ऐलान करता हूं, अगर आपसे कोई पैसे मांगे तो मना मत करना, उससे सेटिंग कर लेना। हम आपको दो दिन के भीतर एक फोन नंबर देंगे। आप बस उस नंबर पर तुरंत सूचना दे देना। हम सभी रिश्वत लेने वाले को रंगे हाथों पकड़वा देंगे। एक नजर में पढ़ें शपथ ग्रहण के बाद अरविंद केजरीवाल का संबोधन दोस्तों, बैरिकेडिंग को मत तोड़िए, बाउंड्री पर मत दौड़िए। इससे पुलिस वालों को व्यव्स्था बनाए रखने में परेशानी हो रही है। बहनों, भाइयों, माताओं, बुजुर्गो, आप सबको सबसे पहले मेरा नमस्कार, मेरा प्रणाम। दोस्तों आज बहुत...

आदत और शौक, भरोसा और भ्रम, भावनाए और क्रोध,

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1...  आदत और शौक हरेक  इन्सान  के कुछ  न  कुछ   शौक  होते   हैं ……जैसे  खेलना ….खाना  बनाना …पेंटिंग ….डांसिंग …. ….शौक  का  सीधा  सम्बन्ध  दिल  से  होता  है ….मतलब  जो   का कम  हम  बार  बार  करते  हैं  और ……और   बिना  बोर  हुए …..फिर  उसे  करने  से  ….हमे  दिल  से  ख़ुशी  मिलती  हैं  उसको  शौक कहते  हैं ……और  जब  हमारा  कोई  शौक  हमारी  जरुरत  बन  जाता  हैं  तो  उसे  हम  आदत  कहते  हैं ….शौक  आसानी  से  बदल  सकता  है  मगर  आदत  नहीं ……हमारी  आदतें  हमें  हमेशा  तकलीफ  देती  हैं  क्योंकि  उनके  आगे  हमारा  दिल  मजबूर  होता  है ….कोशिश  येही  रहनी...

भाजपा 'शाइनिंग इण्डिया'

8 दिसम्बर 2013 का दिन भारत में सत्तारूढ़ काँग्रेस पार्टी के लिए काला दिन साबित हुआ। भारत में चार राज्यों की विधानसभाओं के लिए हुए चुनावों में काँग्रेस को मुँह की खानी पड़ी है। विशेष रूप से दिल्ली में हुई भयानक हार के कारण काँग्रेस मुँह दिखाने के काबिल नहीं रही। दिल्ली में 70 में से सिर्फ़ 8 सीटें प्राप्त करके काँग्रेस तीसरे नम्बर पर आई है। अभी एक साल पहले बनी 'आम आदमी पार्टी' से भी काँग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है। दिल्ली की मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित को 'आम आदमी पार्टी' के नेता अरविन्द केज़रीवाल ने 25 हज़ार से भी ज़्यादा मतों से हराया है। दिल्ली में 15 साल सत्ता में रहने के बाद इन चुनावों में काँग्रेस को सिर्फ़ 8 सीटों पर ही सन्तोष करना पड़ रहा है। 'आम आदमी पार्टी' को काँग्रेस से साढ़े तीन गुना ज़्यादा सीटें मिली हैं। उसकी 28 सीटों पर जीत हुई है। काँग्रेस की मुख्य प्रतिद्वन्द्वी पार्टी 'भारतीय जनता पार्टी' (भाजपा) को दिल्ली में कुल 34 सीटें मिली हैं। राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी काँग्रेस का सफ़ाया हो गया है। इन दोनों राज्यों को भारत क...

वोट देने का अधिकार

आपको शायद इस बात का गर्व है कि आपके पास वोट देने का अधिकार है। आपको शायद इस बात का भी गर्व हो कि आप अपने वोट के जरिए सरकार बदल सकते हैं। लोकतंत्र के नाम पर आपको पिछले चौंसठ सालों से यह एहसास कराया जा रहा है कि आपकी भी इस देश में कुछ हैसियत है। हकीकत यह है कि आपको अब तक जानबूझकर एक मायावी दुनिया के मुगालतों में बंधक बना कर रखा गया है। पांच साल में एक दिन आपकी आवाभगत एक शहंशाह की तरह की जाती है। वोट देने के बाद शहंशाह के कपडे उतार दिए जाते हैं। एक बार फिर से आपको बेबस और लाचार आदमी की जिन्दगी जीने के लिए किस्मत के भरोसे छोड़ दिया जाता है। लोकतंत्र के नाम पर चलने वाला यह दर्दनाक और बेरहम सीरियल कभी खत्म नहीं होता। हां, हर पांच साल में निर्माता, निर्देशक और फनकार बदल जाते हैं। अवाम की रुलाई और धुनाई बदस्तूर जारी रहती है। आखिर, वोट देकर आप हासिल क्या करते हैं? एक बेहतर जिन्दगी के सपने तो बहुत दूर की बात रही, जिन्दा रहने की न्यूनतम जरूरतों के लिए भी आपको हाथ में कटोरा लेकर खड़ा रहना पड़ता है। आप भीख मांगने के लिए तैयार हैं, लेकिन जिन लोगों को आपने वोट दिया है, उनके पास आपको ...

भारत रत्न

क्या क्रिकेट “सामंतवादी” खेल है? =================== अभी दो दिन पहले ही मैंने सचिन तेंदुलकर को मेजर ध्यान चंद के ऊपर वरीयता देने की आलोचना करते हुए एक लेख लिखा था। सो इस बारे में कोई दो राय नहीं हैं कि मेरे हिसाब से मेजर साब को भारत रत्न पहले मिलना चाहिए या दोनों को साथ-साथ मिलना चाहिए। लेकिन आज एक मित्र ने एक वरिष्ठ पत्रकार का लेख मुझे भेजा। इस लेख की शुरुआत में लिखा है: **** उद्धरण आरम्भ **** क्रिकेट-जैसे घोर सामंती और औपनिवेशिक खेल को सम्मानित क्यों किया है? इस खेल का इतिहास क्या है? क्रिकेट अंग्रेजों का खेल है और अंग्रेजों के पूर्व गुलाम देशों में ही यह खेला जाता है। दुनिया की अन्य महाशक्तियों-अमेरिका, रुस, चीन, फ्रांस, जर्मनी, जापान आदि देशों में इसका कोई महत्व नहीं है। दुनिया के लगभग 200 राष्ट्रों में से केवल राष्ट्रकुल के 50 देशों में इसे राष्ट्रीय खेल का दर्जा प्राप्त है। इस खेल से देश की युवा-पीढ़ी के समय और धन की बेहिसाब बर्बादी होती है। कई-कई दिनों तक चलनेवाले खेल को खेल कौन कहेगा? दो आदमी बल्ला घुमाएं और 11 आदमी दिन भर खड़े-खड़े गेंद झेलने की फिराक में र...

संजीव कुमार

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भारतीय सिनेमा जगत में संजीव कुमार को एक ऐसे बहुआयामी कलाकार के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने नायक सहनायक, खलनायक और चरित्र भूमिकाओं से दर्शकों को अपना दीवाना बनाया। संजीव कुमार के अभिनय में एक विशेषता रही कि वे किसी भी तरह की भूमिका के लिए सदा उपयुक्त रहते थे। फिल्म ‘कोशिश’ में एक गूँगे की भूमिका हो या फिर ‘शोले’ में ठाकुर की भूमिका या ‘सीता और गीता’ और ‘अनामिका’ जैसी फिल्मों में लवर्स बॉय की भूमिका हो या ‘नया दिन नई रात में’ नौ अलग-अलग भूमिकाएँ- सभी में उनका कोई जवाब नहीं था। फिल्मों में किसी अभिनेता का एक फिल्म में दोहरी या तिहरी भूमिका निभाना बड़ी बात समझी जाती है लेकिन संजीव कुमार ने फिल्म ‘नया दिन नई रात’ में एक या दो नहीं बल्कि नौ अलग-अलग भूमिकाएँ निभाकर दर्शकों को रोमांचित कर दिया। फिल्म में संजीव कुमार ने लूले-लँगड़े, अंधे, बूढे, बीमार, कोढ़ी, हिजड़े, डाकू, जवान और प्रोफेसर के किरदार को निभाकर जीवन के नौ रसों को रुपहले पर्दे पर साकार किया। यूँ तो यह फिल्म उनके हर किरदार की अलग खासियत की वजह से जानी जाती है लेकिन इस फिल्म में उनके एक हिजड़े का किरदार आज भी दर्शकों क...

अजब गजब रचनायें

1,........ एक कंप्यूटर सॉफटवेयर इंजीनियर अपने हिंदी लिटरेचर की पढ़ाई पढ़ रहे दोस्त से: यार कल में धोखे से एक कवि सम्मेलन में पहुंच गया। दोस्त-तो क्या सुना। सॉफटवेयर इंजीनियर- यार उस कवि ने कहा मैं अब आपको वायरस VIRUS पर एक कविता सुना रहा हूं। दोस्त- कैसी लगी.. सॉफटवेयर इंजीनियर- बाबा जी का ठुल्लु..साला, पूरी कविता में बस खून, खराबे, जोश और बहादुरी की बाते कर रहा था.. एक लाइन में वायरस नहीं मिला? दोस्त-अबे सर्किट..तो फिर वो वायरस पर नहीं वीर रस पर कविता सुना रहा होगा!!!  2..... शरारती पप्पू की क्लास टीचर छुट्टी पर थीं, सो वैकल्पिक अध्यापिका के रूप में भेजी गई मैडम ने बच्चों से उनकी पसंदीदा फिल्मों के बारे में बातचीत करना शुरू किया। चर्चा के दौरान पता चला कि लगभग सभी बच्चों को आमिर खान और करीना कपूर अभिनीत 'थ्री इडियट्स' बेहद पसंद आई थी, तो मैडम ने पूछा,"क्या तुम लोग बता सकते हो, '3 इडियट्स' से हमें क्या-क्या सीखने को मिला?" तुरन्त ढेरों बच्चों ने जवाब देने के लिए हाथ ख ड़ा कर दिया। मैडम ने एक बच्चे को इशारा किया और कहा, "...

अर्थपूर्ण व्यस्तता आवश्यक है

यूँ तो आजकल हर कोई व्यस्त है । जीवन की गति से तालमेल बनाये रखने को आतुर । जीवन से भी अधिक तेज़ी से दौड़ने को बाध्य । आपाधापी इतनी कि  हम यह विचार करना भी भूल ही गए  कि जितना व्यस्त हैं , इस व्यस्तता के चलते जितना लस्त-पस्त हैं, उसकी आवश्यकता है भी या नहीं। भागे तो जा रहे हैं पर जितना स्वयं को उलझा रखा है उसका प्रतिफल क्या है ? हमारी यह व्यस्तता अर्थपूर्ण और सकारात्मक है भी या नहीं ।  कुछ भी करके समय काट दिया जाय ऐसी व्यस्तता का तो कोई अर्थ नहीं । यह तो हम सब समझते हैं । फिर भी कई बार जाने अनजाने ऐसे कार्यों में भी लगे रहते हैं  जिनमें ऊर्जा का सदुपयोग नहीं हो पाता  । जो कि एक विचारणीय पक्ष है । हम चाहे जो भी करें।  श्रम और समय का व्यय तो होता ही है । ऐसे में जहाँ भी , जिस रूप में भी, श्रम और समय लगाया जाय उसका सकारात्मक प्रतिफल कुछ ना हो तो स्वयं को ही छलने का आभास होता है । व्यस्तता का लबादा  ओढ़ कई बार स्वयं से दूर हो जाने मार्ग चुन बैठते हैं । उचित समन्वय  के ...

कौन है ये आम आदमी

आज हर तरफ आम आदमी आम आदमी का नाम चल रहा है ! है कौन ये आम आदमी? आदमी भी है या सिर्फ कोई वोट बैंक है जो सिर्फ वोट डालने के समय नेताओ को याद आता है ! चारो तरफ आम आदमी के रहनुमा नज़र आते है लेकिन यही आम आदमी कभी महगाई से तो कभी भ्रष्टाचार से लड़ता है या फिर कीडे मकोडो की तरह अपनी जिंदगी बसर करता है ! क्या होता है यह आम आदमी? समाज में आम, राजनीति में खास- मगर सिर्फ चुनावी वक्त में? समाज में आम आदमी की भूमिका वहीं तक है जहां से खास आदमी की भूमिका शुरू होती है। यह खास आदमी होता आम आदमी जैसा ही है, किंतु उसका 'शाही रूतबा' उसे आम से खास बना देता है। मैं इस अवधारणा को नहीं मानता कि देश आम आदमी के सहारे चलता है। देश खास आदमी के 'आदेश' पर चलता है। खास आदमी बेहद ताकतवर होता है। आम आदमी खास आदमी के सामने कहीं नहीं ठहरता। या कहें कि उसे ठहरने नहीं दिया जाता। आम आदमी खास आदमी की शर्तों पर ही जीता है। यह हकीकत है। अब आप आम आदमी का दिल बहलाने के लिए कह-लिख कुछ भी लें लेकिन समाज में चलती उसी की है जिसके पास सत्ता की ताकत और छिनने का माआदा होता है। खास आदमी आम आदमी से ...

मन्ना डे

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ये कैसा खालीपन आ गया आज अचानक। एक विराट शून्य। भारतीय संगीत के चुनिंदा दिग्गजों में शामिल मन्ना डे काफी वक्त से बीमार थे और इस बात का अहसास काफी दिन से था कि एक दिन अचानक ही दुखद ख़बर आएगी। वह ख़बर आज आ गई, मन्ना डे के जाने का मतलब सिर्फ एक गायक का चले जाना नहीं है। मन्ना डे भारतीय संगीत का एक युग थे। उनकी आवाज़ सीधे रूह को छूती थी। रफी, मुकेश और किशोर की विराट लोकप्रियता के बीच में भी मन्ना डे की उपस्थिति न केवल महसूस की गई बल्कि उनकी अनिवार्यता को भी दिग्गज संगीतकारों ने समझा था। लेकिन, क्या आज की पीढ़ी समझ सकती है कि आज हमारे बीच से कौन सा शख्स चला गया? नयी पीढ़ी मन्नादा होने का मतलब और मन्नादा के हमारे बीच होने का मतलब नहीं समझ सकती। नयी पीढ़ी के कई बच्चों ने मन्ना डे का नाम शायद आज पहली बार सुना होगा, जब उनके निधन की ख़बर टेलीविजन चैनलों पर रेंग रही है। हो सकता है कि कइयों के लिए मन्ना डे का मतलब ‘यारी है ईमान मेरा यार मेरा जिंदगी‘ गाने वाले एक गायक की हो क्योंकि ‘ज़ंजीर’ फिल्म का यह गाना अकसर चैनलों पर बजता रहता है। लेकिन, मेरे लिए मन्ना डे का मतलब एक गायक भर नहीं थ...

त्यौहार और हमारी परम्पराये

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पहले त्योहारों के साथ आस्था और परंपरा जुड़ी होती थीं। त्योहार हमारी संस्कृति का आईना होते हैं। आज इनका भी व्यवसायीकरण हो गया है। पहले ये त्योहार परस्पर मेल-मिलाप का ज़रिया हुआ करते थे और आज ये विशुद्घ आस्था का वास्ता न रहकर व्यवसायिक समीकरणों को सुदृढ़ करने का रास्ता बन गए हैं। त्योहारों के पीछे की वास्तविक सोच बदल गई है। आज त्योहारों के साथ प्रतियोगिता भी जुड़ गई है। त्योहारों पर तोहफ़े यानी उपहार दिए जाने की हमारी हिंदुस्तानी संस्कृति की काफ़ी पुरानी परंपरा रही है। पहले खुले दिल से तोहफ़े दिए जाते थे, उपहारों के पीछे छुपी भावना देखी जाती थी, आज क्वालिटी और ब्रांड देखे जाते हैं। यानी दिखावे की भावना प्रबल हो गई है। सामने वाले ने जिस स्तर का तोहफ़ा दिया है हमें भी उसी के अनुरूप देना है। व्यवसायिक फ़ायदे/स्वार्थ या तेज़ी से बदलते समीकरणों के मद्देनज़र हम पाँच-छह कि.मी. या उससे भी ज़्यादा दूरी वाले व्यक्ति से मिलने या बधाई दने पहुंच जाएंगे और अपने पड़ोसियों को भले ही नॉक न करें। पहले की तुलना में आज परिवारों की तरफ से बच्चों को त्योहारों पर घूमने-फिरने की ज़्यादा आज़ादी...

स्मिता पाटिल

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फिल्म “मंथन” को हिन्दी सिनेमा जगत की एक कालजयी फिल्म जाता है. गुजरात के दूध व्यापारियों पर आधारित यह फिल्म जब बनी तो इसको बनाने के लिए गुजरात के लगभग पांच लाख किसानों ने अपनी प्रति दिन की मिलने वाली मजदूरी में से दो-दो रूपये फिल्म निर्माताओं को दिए और बाद में जब यह फिल्म प्रदर्शित हुई तो यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई. इस फिल्म को हिट कराने में जितना हाथ निर्माता, निर्देशक का रहा उतना ही योगदान अभिनेत्री स्मिता पाटिल( Smita Patil ) का भी रहा. Smita Patil Biography बॉलिवुड में जब भी आर्ट कलाकारों की बात की बाती है तो शबाना आजमी, ओम पुरी, नसीरुद्दीन शाह जैसे सितारों का नाम सामने आते हैं पर इन सभी की श्रेणी में ही एक नाम स्मिता पाटिल का भी है जिन्हें यह सिने जगत कभी नहीं भूल सकता. सब कहते हैं कि हिट अभिनेत्री बनने के लिए आपकी रंगत अच्छी होनी चाहिए फिर चाहे आपका अभिनय उन्नीस-बीस ही क्यूं ना हो लेकिन स्मिता पाटिल ने अपने सशक्त अभिनय से इस बात को झुठला दिया और साबित कर दिया कि बॉलिवुड में अगर आपके पास बेहतरीन हुनर है तो आपको किसी रंग-रूप की जरूरत नहीं. ...

ए.पी.जे अब्दुल कलाम

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ए.पी.जे अब्दुल कलाम का जीवन परिचय भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम का पूरा नाम डॉक्टर अवुल पाकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम है. यह पहले ऐसे गैर-राजनीतिज्ञ राष्ट्रपति रहे जिनका राजनीति में आगमन विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में दिए गए उत्कृष्ट योगदान के कारण हुआ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को रामेश्वरम, तमिलनाडु में हुआ था. इनके पिता जैनुलाब्दीन एक कम पढ़े-लिखे और गरीब नाविक थे. वह नियमों के पक्के और उदार स्वभाव के इंसान थे जो दिन में चार वक्त की नमाज भी पढ़ते थे. अब्दुल कलाम के पिता अपनी नाव मछुआरों को देकर घर का गुजारा चलाते थे. परिणामस्वरूप बालक अब्दुल कलाम को अपनी आरंभिक शिक्षा पूरी करने के लिए घरों में अखबार वितरण करने का कार्य करना पड़ा. ए.पी.जे अब्दुल कलाम एक बड़े और संयुक्त परिवार में रहते थे. उनके परिवार के सदस्यों की संख्या का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह स्वयं पांच भाई एवं पांच बहन थे और घर में तीन परिवार रहा करते थे. ए.पी.जे अब्दुल कलाम का विद्यार्थी जीवन बहुत कठिनाइयों भरा बीता. जब वह आठ-नौ वर्ष के रहे होंगे, तभी ...

राइट टू रिजेक्ट

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2013 के चुनाव वोटरों के लिये पहली बार उम्मीदवारों को बाकायदा बटन दबाकर खारिज करने वाला भी चुनाव होगा। यानी ईवीएम की मशीन में वोटरों को यह विकल्प भी मिलेगा कि वह किसी भी उम्मीदवार को चुनना नहीं चाहते है। लेकिन और जीत हार तय करने निकले वह वोटर जो जातीय या धर्म या समुदाय के आधार पर बंटे होते हैं वह उम्मीदवार के दागी होने से पहले अपने आधारों को देखते हैं। तो तीन सवाल असबार सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एवीएम में नोटा यानी इनमें से कोई नहीं वाले बटन के घाटे पर बड़ी तादाद में वोटरों के वोट बिना गिने रह जायेंगे। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने एक उदाहरण संसद का यह कहकर दिया था कि वहां भी वोटिंग के हालात में एबसेंट की संख्या भी बतायी जाती है। लेकिन चुनाव आयोग ने कोई व्यवस्था नहीं की है कि नोटा बटन दबाने वालो की गिनती हो। दूसरा सवाल वोट मैनेज करने वालो के लिये आसानी होनी। क्योकि साफ छवि वाले नेता वोटरो के सामने यह आवाज जरुर उठायेगे कि वो नोटा बटन भी दबा सकते हैं। और तीसरा रिप्ररजेन्टेशन आफ पीपुल्स एक्ट की धारा 49 को खत्म करने का कोई महत्व नहीं बचेगा। क्योंकि इस नियम के तहत वोटर पहले प्रिजाइडि...