वोट देने का अधिकार
आपको शायद इस बात का गर्व है कि आपके पास वोट देने का अधिकार है। आपको शायद
इस बात का भी गर्व हो कि आप अपने वोट के जरिए सरकार बदल सकते हैं।
लोकतंत्र के नाम पर आपको पिछले चौंसठ सालों से यह एहसास कराया जा रहा है कि
आपकी भी इस देश में कुछ हैसियत है।
हकीकत यह है कि आपको अब तक जानबूझकर एक मायावी दुनिया के मुगालतों में बंधक बना कर रखा गया है। पांच साल में एक दिन आपकी आवाभगत एक शहंशाह की तरह की जाती है। वोट देने के बाद शहंशाह के कपडे उतार दिए जाते हैं। एक बार फिर से आपको बेबस और लाचार आदमी की जिन्दगी जीने के लिए किस्मत के भरोसे छोड़ दिया जाता है। लोकतंत्र के नाम पर चलने वाला यह दर्दनाक और बेरहम सीरियल कभी खत्म नहीं होता। हां, हर पांच साल में निर्माता, निर्देशक और फनकार बदल जाते हैं। अवाम की रुलाई और धुनाई बदस्तूर जारी रहती है।
आखिर, वोट देकर आप हासिल क्या करते हैं? एक बेहतर जिन्दगी के सपने तो बहुत दूर की बात रही, जिन्दा रहने की न्यूनतम जरूरतों के लिए भी आपको हाथ में कटोरा लेकर खड़ा रहना पड़ता है। आप भीख मांगने के लिए तैयार हैं, लेकिन जिन लोगों को आपने वोट दिया है, उनके पास आपको भीख देने के लिए भी समय नहीं है। उनका सारा समय और ऊर्जा वॉलमार्ट को लाने के लिए समर्पित है। अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि आपने वोट नहीं दिया, तो गलत आदमी संसद या विधानसभा में जाएगा। इस देश के भोले-भाले और गरीब आदमी के साथ कब तक छल किया जाता रहेगा? जब चुनाव एक चोर और लुटेरे के बीच में ही करना है तो वोट देने या नहीं देने से क्या फर्क पड़ता है? वजीर कोई भी बने, हमारे पढ़े-लिखे नौजवानों को तो एक अदद नौकरी के लिए दर-दर भटकना है।
ऐसा भी नहीं है कि कोई नया प्रयोग करना बाकी हो। हमने चौंसठ सालों में सभी को आजमा कर देख लिया। सफेद, भगवा, लाल, हरा सभी के रंग देख लिए। एक भी राजनैतिक पार्टी ऐसी नहीं बची, जिसे सत्ता पर हमने काबिज न किया हो। लेबल बदला, लूट का सिलसिला नहीं बदला, चेहरा बदला लेकिन जुल्म और शोषण का रवैया नहीं बदला। बड़े फक्र के साथ कहा जाता है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। बड़ा है तो सबको रोजी-रोटी मिलनी चाहिए थी। अगर ऐसा नहीं हो सका है, तो लोकतंत्र का महिमा-मंडन, गुणगान जनता के साथ फरेब है। ऐसा लोकतंत्र हमारे किस काम का जो हमारी बहन-बेटियों को इज्ज़त से जीने का अवसर देने में नाकाम हो?
वॉल मार्ट और विदेशी कंपनियों के रिटेल बाजार में निवेश करने के मुद्दे पर एक पत्रकार ने अन्ना हजारे से सवाल किया, तो उन्होंने कहा- ‘वे सेवा करने नहीं आ रहे हैं, वे मेवा खाने आ रहे हैं।’ यही बात हमारे राजनेताओं पर भी लागू होती है। चुनाव उनके लिए बिजनेस है। सिर्फ बिजनेस, बिजनेस के अलावा और कुछ भी नहीं।अगर ऐसा नहीं है, तो महलों में रहने वाले लोग चिलचिलाती हुई धूप में, ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर रोड शो और रथ-यात्राओं में अपना पसीना क्यों बहा रहे हैं? जात-पांत और मजहब के नाम पर लोगों को बांटने का काम क्यों कर रहे हैं? जाहिर है कि जो चुनाव में जीतेगा, दस प्रतिशत कमीशन उसे मिलेगा। अय्याशियां उसके खाते में जाएंगी। जुल्म करने की ताकत उसे मिलेगी। यह सब एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत हो, जनता की मंजूरी से हो और चुनाव के मार्फत हो। इसीलिए आपसे कहा जाता है कि संविधान ने आपको एक बहुत बड़ी ताकत दी है- आपको वोट देने का अधिकार दिया है।जो व्यवस्था अमीर को और ज्यादा अमीर तथा गरीब को और ज्यादा गरीब बना रही है, उसे रद्द करने का वक्त आ गया है। मौजूदा चुनाव प्रक्रिया से जिस लोकतंत्र का ताना-बाना बुना गया है, वह महज पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसा बनाने का खेल है।
आज की राजनैतिक परिस्तिथि में वोट देने का अर्थ है- अपनी बरबादी पर दस्तखत करना। वोट देने का अर्थ है अपनी बदहाली को कायम रखना। अगर आपने अपनी मरजी का राजा चुना है, तो हरजाना भी आपको भी भरना पड़ेगा। चुनाव प्रक्रिया को बदलने और सही लोकतंत्र के निर्माण का रास्ता यहीं से शुरू होगा। मौजूदा-जन-विरोधी चुनाव प्रक्रिया को सुधरने की ज़रूरत है और उन लोगो को सत्ता में लेन के प्रयास होने चाहिए जो इन बदलावों को पूरी निष्ठा और ईमानदार से ला सके.
हकीकत यह है कि आपको अब तक जानबूझकर एक मायावी दुनिया के मुगालतों में बंधक बना कर रखा गया है। पांच साल में एक दिन आपकी आवाभगत एक शहंशाह की तरह की जाती है। वोट देने के बाद शहंशाह के कपडे उतार दिए जाते हैं। एक बार फिर से आपको बेबस और लाचार आदमी की जिन्दगी जीने के लिए किस्मत के भरोसे छोड़ दिया जाता है। लोकतंत्र के नाम पर चलने वाला यह दर्दनाक और बेरहम सीरियल कभी खत्म नहीं होता। हां, हर पांच साल में निर्माता, निर्देशक और फनकार बदल जाते हैं। अवाम की रुलाई और धुनाई बदस्तूर जारी रहती है।
आखिर, वोट देकर आप हासिल क्या करते हैं? एक बेहतर जिन्दगी के सपने तो बहुत दूर की बात रही, जिन्दा रहने की न्यूनतम जरूरतों के लिए भी आपको हाथ में कटोरा लेकर खड़ा रहना पड़ता है। आप भीख मांगने के लिए तैयार हैं, लेकिन जिन लोगों को आपने वोट दिया है, उनके पास आपको भीख देने के लिए भी समय नहीं है। उनका सारा समय और ऊर्जा वॉलमार्ट को लाने के लिए समर्पित है। अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि आपने वोट नहीं दिया, तो गलत आदमी संसद या विधानसभा में जाएगा। इस देश के भोले-भाले और गरीब आदमी के साथ कब तक छल किया जाता रहेगा? जब चुनाव एक चोर और लुटेरे के बीच में ही करना है तो वोट देने या नहीं देने से क्या फर्क पड़ता है? वजीर कोई भी बने, हमारे पढ़े-लिखे नौजवानों को तो एक अदद नौकरी के लिए दर-दर भटकना है।
ऐसा भी नहीं है कि कोई नया प्रयोग करना बाकी हो। हमने चौंसठ सालों में सभी को आजमा कर देख लिया। सफेद, भगवा, लाल, हरा सभी के रंग देख लिए। एक भी राजनैतिक पार्टी ऐसी नहीं बची, जिसे सत्ता पर हमने काबिज न किया हो। लेबल बदला, लूट का सिलसिला नहीं बदला, चेहरा बदला लेकिन जुल्म और शोषण का रवैया नहीं बदला। बड़े फक्र के साथ कहा जाता है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। बड़ा है तो सबको रोजी-रोटी मिलनी चाहिए थी। अगर ऐसा नहीं हो सका है, तो लोकतंत्र का महिमा-मंडन, गुणगान जनता के साथ फरेब है। ऐसा लोकतंत्र हमारे किस काम का जो हमारी बहन-बेटियों को इज्ज़त से जीने का अवसर देने में नाकाम हो?
वॉल मार्ट और विदेशी कंपनियों के रिटेल बाजार में निवेश करने के मुद्दे पर एक पत्रकार ने अन्ना हजारे से सवाल किया, तो उन्होंने कहा- ‘वे सेवा करने नहीं आ रहे हैं, वे मेवा खाने आ रहे हैं।’ यही बात हमारे राजनेताओं पर भी लागू होती है। चुनाव उनके लिए बिजनेस है। सिर्फ बिजनेस, बिजनेस के अलावा और कुछ भी नहीं।अगर ऐसा नहीं है, तो महलों में रहने वाले लोग चिलचिलाती हुई धूप में, ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर रोड शो और रथ-यात्राओं में अपना पसीना क्यों बहा रहे हैं? जात-पांत और मजहब के नाम पर लोगों को बांटने का काम क्यों कर रहे हैं? जाहिर है कि जो चुनाव में जीतेगा, दस प्रतिशत कमीशन उसे मिलेगा। अय्याशियां उसके खाते में जाएंगी। जुल्म करने की ताकत उसे मिलेगी। यह सब एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत हो, जनता की मंजूरी से हो और चुनाव के मार्फत हो। इसीलिए आपसे कहा जाता है कि संविधान ने आपको एक बहुत बड़ी ताकत दी है- आपको वोट देने का अधिकार दिया है।जो व्यवस्था अमीर को और ज्यादा अमीर तथा गरीब को और ज्यादा गरीब बना रही है, उसे रद्द करने का वक्त आ गया है। मौजूदा चुनाव प्रक्रिया से जिस लोकतंत्र का ताना-बाना बुना गया है, वह महज पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसा बनाने का खेल है।
आज की राजनैतिक परिस्तिथि में वोट देने का अर्थ है- अपनी बरबादी पर दस्तखत करना। वोट देने का अर्थ है अपनी बदहाली को कायम रखना। अगर आपने अपनी मरजी का राजा चुना है, तो हरजाना भी आपको भी भरना पड़ेगा। चुनाव प्रक्रिया को बदलने और सही लोकतंत्र के निर्माण का रास्ता यहीं से शुरू होगा। मौजूदा-जन-विरोधी चुनाव प्रक्रिया को सुधरने की ज़रूरत है और उन लोगो को सत्ता में लेन के प्रयास होने चाहिए जो इन बदलावों को पूरी निष्ठा और ईमानदार से ला सके.
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