आदत और शौक, भरोसा और भ्रम, भावनाए और क्रोध,
1... आदत और शौक
हरेक इन्सान के कुछ न कुछ शौक होते हैं ……जैसे खेलना ….खाना बनाना …पेंटिंग ….डांसिंग …. ….शौक का सीधा सम्बन्ध दिल से होता है ….मतलब जो काकम हम बार बार करते हैं और ……और बिना बोर हुए …..फिर उसे करने से ….हमे दिल से ख़ुशी मिलती हैं उसको शौक कहते हैं ……और जब हमारा कोई शौक हमारी जरुरत बन जाता हैं तो उसे हम आदत कहते हैं ….शौक आसानी से बदल सकता है मगर आदत नहीं ……हमारी आदतें हमें हमेशा तकलीफ देती हैं क्योंकि उनके आगे हमारा दिल मजबूर होता है ….कोशिश येही रहनी चाहिए के हम किसी भी शौक को अपनी आदत में शामिल न होने दे …..क्योंकि अच्छी से अच्छी आदत भी कभी न कभी नुकसान दे ही देती है …….हो सकता है की आप की हमेशा सच बोलने की आदत न चाहते हुए भी खुद आपका या किसी और का नुक्सान करदे …..इसलिए दिल खुला रखो ….किसी भी तरह की मजबूरी को न अपनाओ ….ये मसला पूरी तरह आप पर निर्भर करता है की अपने किन शौक को जरुरत से ज्यादा तवज्जो देकर उसे अपनी आदत मैं शामिल कर लेते हैं ……मैंने हमेशा ही कोशिश की किसी को भी अपनी मजबूरी न बन्ने देने की ….इसलिए शायद हरेक वो चीज जो मेरी जरुरत है …मेरी मजबूरी नहीं हैं ……मैं किसी के बिना भी जी सकता हूँ ….किसी के भी बिना …..यही जज्बा मुझे किसी भी परिस्थिति में मजबूर न होने देने का हौंसला देता है ……...इसलिए अब ये सर झुकता है सिर्फ अपनी मर्ज़ी से …..किसी मजबूरी से नहीं ……
2.... भरोसा और भ्रम
बहुत ही मामूली सा फरक होता है दोनों के बीच ….अगर आप सोचते हो के कोई काम आप आसानी के कर सकते हो ..तो ये आपका कांफिडेंस होता है …..और अगर ये सोचते हो के वो काम आपके अलावा कोई नहीं कर सकता तो ये आपका भ्रम है ….सिर्फ ध्यान रखने वाली बात है की ….कोई भी काम …जो होना है ….देरी से या जल्दी …आपके या आपके बिना हो ही जाता है ….इसलिए दिमाग में खुशफहमी पालने की जरुरत नहीं है के आपके बिना किसी काम पर फरक पड़ेगा ….ये बात ठीक है के हर आदमी अपने आप में विशेष होता है …शायद कोई दूसरा 100% उसके जैसा नहीं हो सकता …..मगर ये दुनिया है ….कोई जगह अगर खाली होती है तो जल्दी भर भी जाती है …खुद महसूस किया है मैंने ….लोग साथ छोड़ते चले गए मगर मेरे विश्वास को मैंने टूटने नहीं दिया ….जिन जिम्मेदारियों को निभाने के बारे मैं मैंने कभी सोचा भी नहीं था मुझे निभानी पड़ी …….अगर ज़िन्दगी में कभी ऐसा दौर आता है जहाँ पर किसी दुसरे की जिम्मेदारियों का बोझ आप पर आ जाता है तो विश्वास के साथ उसे निभाना …बिना शिकायत किये …बिना झिझक के …ताकि उन लोगो को जवाब मिल सके जो इस भ्रम मैं थे की उन के बिना कोई काम नहीं हो सकता …...
हरेक इन्सान के कुछ न कुछ शौक होते हैं ……जैसे खेलना ….खाना बनाना …पेंटिंग ….डांसिंग …. ….शौक का सीधा सम्बन्ध दिल से होता है ….मतलब जो काकम हम बार बार करते हैं और ……और बिना बोर हुए …..फिर उसे करने से ….हमे दिल से ख़ुशी मिलती हैं उसको शौक कहते हैं ……और जब हमारा कोई शौक हमारी जरुरत बन जाता हैं तो उसे हम आदत कहते हैं ….शौक आसानी से बदल सकता है मगर आदत नहीं ……हमारी आदतें हमें हमेशा तकलीफ देती हैं क्योंकि उनके आगे हमारा दिल मजबूर होता है ….कोशिश येही रहनी चाहिए के हम किसी भी शौक को अपनी आदत में शामिल न होने दे …..क्योंकि अच्छी से अच्छी आदत भी कभी न कभी नुकसान दे ही देती है …….हो सकता है की आप की हमेशा सच बोलने की आदत न चाहते हुए भी खुद आपका या किसी और का नुक्सान करदे …..इसलिए दिल खुला रखो ….किसी भी तरह की मजबूरी को न अपनाओ ….ये मसला पूरी तरह आप पर निर्भर करता है की अपने किन शौक को जरुरत से ज्यादा तवज्जो देकर उसे अपनी आदत मैं शामिल कर लेते हैं ……मैंने हमेशा ही कोशिश की किसी को भी अपनी मजबूरी न बन्ने देने की ….इसलिए शायद हरेक वो चीज जो मेरी जरुरत है …मेरी मजबूरी नहीं हैं ……मैं किसी के बिना भी जी सकता हूँ ….किसी के भी बिना …..यही जज्बा मुझे किसी भी परिस्थिति में मजबूर न होने देने का हौंसला देता है ……...इसलिए अब ये सर झुकता है सिर्फ अपनी मर्ज़ी से …..किसी मजबूरी से नहीं ……
2.... भरोसा और भ्रम
बहुत ही मामूली सा फरक होता है दोनों के बीच ….अगर आप सोचते हो के कोई काम आप आसानी के कर सकते हो ..तो ये आपका कांफिडेंस होता है …..और अगर ये सोचते हो के वो काम आपके अलावा कोई नहीं कर सकता तो ये आपका भ्रम है ….सिर्फ ध्यान रखने वाली बात है की ….कोई भी काम …जो होना है ….देरी से या जल्दी …आपके या आपके बिना हो ही जाता है ….इसलिए दिमाग में खुशफहमी पालने की जरुरत नहीं है के आपके बिना किसी काम पर फरक पड़ेगा ….ये बात ठीक है के हर आदमी अपने आप में विशेष होता है …शायद कोई दूसरा 100% उसके जैसा नहीं हो सकता …..मगर ये दुनिया है ….कोई जगह अगर खाली होती है तो जल्दी भर भी जाती है …खुद महसूस किया है मैंने ….लोग साथ छोड़ते चले गए मगर मेरे विश्वास को मैंने टूटने नहीं दिया ….जिन जिम्मेदारियों को निभाने के बारे मैं मैंने कभी सोचा भी नहीं था मुझे निभानी पड़ी …….अगर ज़िन्दगी में कभी ऐसा दौर आता है जहाँ पर किसी दुसरे की जिम्मेदारियों का बोझ आप पर आ जाता है तो विश्वास के साथ उसे निभाना …बिना शिकायत किये …बिना झिझक के …ताकि उन लोगो को जवाब मिल सके जो इस भ्रम मैं थे की उन के बिना कोई काम नहीं हो सकता …...
3.... भावनाए और क्रोध
हमेशा कोशिश रहनी चाहिए अपनी भावनाओ और क्रोध को कण्ट्रोल में रखने की ….आमतोर पर अगर हमारे साथ कुछ गलत होता है ….या कुछ हमारी उम्मीदों के खिलाफ होता है तो हमे गुस्सा आ जाता है …… …गुस्से मैं हमारे सोचने की शक्ति कम हो जाती है ….हम क्या कह रहे हैं …क्या कर रहे हैं …हमे कुछ समझ नहीं आता …..बाद मैं हमे इसका अफ़सोस होता हैं …फिर आखिर हम ऐसे हालत ही क्यों पैदा होने देते हैं …..क्यों कोशिश नहीं करते इस ’से निजात पाने की ……. ऐसे मैं हमे इन बातो का ध्यान रखना चाहिए की हम इस दुनिया को नहीं बदल सकते ….हमे इसके अनुसार अपने आप को ढालना होगा …और जैसा की मैंने पहले भी कहा है की समझोते से आदमी छोटा नहीं हो जाता ….और बड़ा हो जाता है ….हमेशा ये नहीं समझाना चाहिए के यू आर अ किंग ….आपके जैसे ना जाने कितने किंग आपके आस -पास मौजूद रहते हैं …जैसे की मैंने पहले भी बताया की हरेक आदमी विशेष हैं …उसी तरह हरेक के सोचने समझने की शक्तिया भी कम या ज्यादा होती हैं …..कुछ लोग आसानी से अपने गुस्से को कण्ट्रोल कर लेते हैं …और कुछ लोग बिलकुल भी नहीं ….गुस्सा ताकत का नहीं कमजोरी का प्रतीक होता है ….ज्यादा गुस्सा मतलब …ज्यादा दिमागी कमजोरी …..ये एक बीमारी होती हैं …जिसका इलाज़ हमारे पास ही होता है …..गुस्से का इलाज़ है प्यार और सहनशक्ति …..ये दोनों का मिला जुला रूप ही गुस्से का संपूर्ण इलाज़ है ….. इनको अपनी ज़िन्दगी में अपनाने पर ही मैंने अपनी ज़िन्दगी मैं बहुत ज्यादा फरक महसूस किया है……अगर आपको भी इसी तरह की शिकायत है तो शायद ये इलाज़ आपके भी काम आ सकता है ….
हमेशा कोशिश रहनी चाहिए अपनी भावनाओ और क्रोध को कण्ट्रोल में रखने की ….आमतोर पर अगर हमारे साथ कुछ गलत होता है ….या कुछ हमारी उम्मीदों के खिलाफ होता है तो हमे गुस्सा आ जाता है …… …गुस्से मैं हमारे सोचने की शक्ति कम हो जाती है ….हम क्या कह रहे हैं …क्या कर रहे हैं …हमे कुछ समझ नहीं आता …..बाद मैं हमे इसका अफ़सोस होता हैं …फिर आखिर हम ऐसे हालत ही क्यों पैदा होने देते हैं …..क्यों कोशिश नहीं करते इस ’से निजात पाने की ……. ऐसे मैं हमे इन बातो का ध्यान रखना चाहिए की हम इस दुनिया को नहीं बदल सकते ….हमे इसके अनुसार अपने आप को ढालना होगा …और जैसा की मैंने पहले भी कहा है की समझोते से आदमी छोटा नहीं हो जाता ….और बड़ा हो जाता है ….हमेशा ये नहीं समझाना चाहिए के यू आर अ किंग ….आपके जैसे ना जाने कितने किंग आपके आस -पास मौजूद रहते हैं …जैसे की मैंने पहले भी बताया की हरेक आदमी विशेष हैं …उसी तरह हरेक के सोचने समझने की शक्तिया भी कम या ज्यादा होती हैं …..कुछ लोग आसानी से अपने गुस्से को कण्ट्रोल कर लेते हैं …और कुछ लोग बिलकुल भी नहीं ….गुस्सा ताकत का नहीं कमजोरी का प्रतीक होता है ….ज्यादा गुस्सा मतलब …ज्यादा दिमागी कमजोरी …..ये एक बीमारी होती हैं …जिसका इलाज़ हमारे पास ही होता है …..गुस्से का इलाज़ है प्यार और सहनशक्ति …..ये दोनों का मिला जुला रूप ही गुस्से का संपूर्ण इलाज़ है ….. इनको अपनी ज़िन्दगी में अपनाने पर ही मैंने अपनी ज़िन्दगी मैं बहुत ज्यादा फरक महसूस किया है……अगर आपको भी इसी तरह की शिकायत है तो शायद ये इलाज़ आपके भी काम आ सकता है ….
4.... व्यक्तित्व और पारिवारिक पृष्ठभूमि
कभी आपने खुद का मूल्यांकन किया है ????????……….. क्या मानते है अपने आप को ??????..... आमतोर पर हर किसी की दोहरी पहचान होती है .…..एक की वजह उसका फॅमिली बैकग्राउंड होता है और दूसरी की वजह वो खुद ………ये आप पर निर्भर करता है की इन दोनों मैं से आप किसे ज्यादा प्रिओरिटी देते हैं ……..अगर आप चाहते है के आपको आपके फॅमिली बैकग्राउंड की वजह से जाना जाये तो इसमें आपकी खुद की शक्शियत दबी रह जाती हैं …..और अपनी पहचान बनाने के लिए आपको फॅमिली बैकग्राउंड का सहारा छोड़ना पड़ता हैं …..वैसे कोई खास बात भी नहीं है इस में …..क्योंकि बहुत अच्छा फॅमिली बैकग्राउंड भी एक अच्छे करेक्टर की गारंटी नहीं देता ……और ये भी जरुरी नहीं की जिसका बैकग्राउंड अच्छा नहीं उसकी शक्शियत बहुत अच्छी नहीं तो सकती …….जहाँ तक मेरा सवाल हैं …मैं एक बहुत अच्छे या बहुत अच्छी अकादमिक प्रोफाइल वाली फॅमिली से नहीं हूँ ……..या सच कहूँ तो अपने परिवार का मैं पहला शक्श हूँ जिसने कॉलेज लेवल तक एजुकेशन ली है ……परिवार और संबंधियों ……किसी से कभी कोई सपोर्ट नहीं मिली …..ऐसे में अपनी पहचान बनाना एक बड़ी चुनौती थी मेरे लिए जिसे मैंने पूरी ईमानदारी से निभाया ……एक जूनून था ….की कुछ बन के दिखाना है ……उन लोगो को जवाब देना है ……तो मुझे कम आंक रहे थे …..और आज एक ऐसे स्टेज पर अपने आप को खड़ा देख कर ख़ुशी होती है …….जहाँ पर मैं सर उठा कर जी सकता हूँ और ये कह सकता हूँ की भगवन भी उसी की मदद करता हैं जो अपनी मदद खुद करते हैं ……..हमारे लिए हमारा इतिहास मायने नहीं रखता …..मायने ये बात रखती है की “हम क्या हैं ”……..
कभी आपने खुद का मूल्यांकन किया है ????????……….. क्या मानते है अपने आप को ??????..... आमतोर पर हर किसी की दोहरी पहचान होती है .…..एक की वजह उसका फॅमिली बैकग्राउंड होता है और दूसरी की वजह वो खुद ………ये आप पर निर्भर करता है की इन दोनों मैं से आप किसे ज्यादा प्रिओरिटी देते हैं ……..अगर आप चाहते है के आपको आपके फॅमिली बैकग्राउंड की वजह से जाना जाये तो इसमें आपकी खुद की शक्शियत दबी रह जाती हैं …..और अपनी पहचान बनाने के लिए आपको फॅमिली बैकग्राउंड का सहारा छोड़ना पड़ता हैं …..वैसे कोई खास बात भी नहीं है इस में …..क्योंकि बहुत अच्छा फॅमिली बैकग्राउंड भी एक अच्छे करेक्टर की गारंटी नहीं देता ……और ये भी जरुरी नहीं की जिसका बैकग्राउंड अच्छा नहीं उसकी शक्शियत बहुत अच्छी नहीं तो सकती …….जहाँ तक मेरा सवाल हैं …मैं एक बहुत अच्छे या बहुत अच्छी अकादमिक प्रोफाइल वाली फॅमिली से नहीं हूँ ……..या सच कहूँ तो अपने परिवार का मैं पहला शक्श हूँ जिसने कॉलेज लेवल तक एजुकेशन ली है ……परिवार और संबंधियों ……किसी से कभी कोई सपोर्ट नहीं मिली …..ऐसे में अपनी पहचान बनाना एक बड़ी चुनौती थी मेरे लिए जिसे मैंने पूरी ईमानदारी से निभाया ……एक जूनून था ….की कुछ बन के दिखाना है ……उन लोगो को जवाब देना है ……तो मुझे कम आंक रहे थे …..और आज एक ऐसे स्टेज पर अपने आप को खड़ा देख कर ख़ुशी होती है …….जहाँ पर मैं सर उठा कर जी सकता हूँ और ये कह सकता हूँ की भगवन भी उसी की मदद करता हैं जो अपनी मदद खुद करते हैं ……..हमारे लिए हमारा इतिहास मायने नहीं रखता …..मायने ये बात रखती है की “हम क्या हैं ”……..
5.... माफ़ करना और माफ़ी मांगना
इन्सान गलतियों का पुतला हैं …सभी जानते हैं ….कोई भी इन्सान भगवन नहीं बन सकता …मगर सबसे बड़ी बात है …अपनी गलतियों को स्वीकार करना ….अपनी गलती स्वीकार करने से कोई इन्सान छोटा नहीं हो जाता ….उसका दर्ज़ा तो पहले से भी ऊँचा हो जाता हैं …आखिर एक नया अध्याय जो उसके साथ जुड़ जाता हैं …एक ऐसा सबक जो उसे भविष्य मैं दोबारा वही गलती करने से रोकता है …..बड़ी आसानी से हम किसी पर भी आरोप लगा देते हैं ….उसकी गलती के लिए उसे गुनाहगार बना देते हैं …..क्या सच मैं हमे ये जान’ने की जरुरत नहीं होती की आखिर क्या वज़ह रही होंगी उसकी इस गलती के पीछे …..शायद नहीं …क्योंकि ये गलती हमने नहीं की ….मगर कभी गलती हो भी जाती है और हम एक्सक्यूस देना चाहते है और कोई सुन ’ना नहीं चाहता है तो शायद हमें गुस्सा आ जाता हैं ……वैसे ऐसा भी नहीं हैं की हर किसी को गलती पर सजा ही दी जानी चाहिए ……उदहारण के लिए …अगर आपका सबसे प्यारा दोस्त ..या उनमे से कोई एक ...जन कर के …..आपके साथ कुछ गलत करता हैं …..तो आप क्या करते हैं ??????........उस ’से …झगडा करते हैं ….दोस्तों के बीच उसकी बुराई करते हैं ….या फिर सीधे उसके साथ गली गलोज करते हैं ….शायद ऐसा ही कुछ …..मगर मेरे नज़रिए से ….मैं उसे बिना कुछ कहे सिर्फ बात करना बंद कर देता हूँ ….शायद येही सबसे बड़ी सजा होती है उसके लिए ……(हमेशा के लिए नहीं )…सिर्फ उसको एहसास करने के लिए की उसकी इस गलती की वज़ह से उसने क्या खो दिया है …..मतलब ये हैं की माफ़ करना और माफ़ी चाहना ….दोनों ही मसलो को जटिल ना बना करके बहुत आसान बना देने पर रिश्तो के बीच बढ़ रहे फसलो को रोका जा सकता है
इन्सान गलतियों का पुतला हैं …सभी जानते हैं ….कोई भी इन्सान भगवन नहीं बन सकता …मगर सबसे बड़ी बात है …अपनी गलतियों को स्वीकार करना ….अपनी गलती स्वीकार करने से कोई इन्सान छोटा नहीं हो जाता ….उसका दर्ज़ा तो पहले से भी ऊँचा हो जाता हैं …आखिर एक नया अध्याय जो उसके साथ जुड़ जाता हैं …एक ऐसा सबक जो उसे भविष्य मैं दोबारा वही गलती करने से रोकता है …..बड़ी आसानी से हम किसी पर भी आरोप लगा देते हैं ….उसकी गलती के लिए उसे गुनाहगार बना देते हैं …..क्या सच मैं हमे ये जान’ने की जरुरत नहीं होती की आखिर क्या वज़ह रही होंगी उसकी इस गलती के पीछे …..शायद नहीं …क्योंकि ये गलती हमने नहीं की ….मगर कभी गलती हो भी जाती है और हम एक्सक्यूस देना चाहते है और कोई सुन ’ना नहीं चाहता है तो शायद हमें गुस्सा आ जाता हैं ……वैसे ऐसा भी नहीं हैं की हर किसी को गलती पर सजा ही दी जानी चाहिए ……उदहारण के लिए …अगर आपका सबसे प्यारा दोस्त ..या उनमे से कोई एक ...जन कर के …..आपके साथ कुछ गलत करता हैं …..तो आप क्या करते हैं ??????........उस ’से …झगडा करते हैं ….दोस्तों के बीच उसकी बुराई करते हैं ….या फिर सीधे उसके साथ गली गलोज करते हैं ….शायद ऐसा ही कुछ …..मगर मेरे नज़रिए से ….मैं उसे बिना कुछ कहे सिर्फ बात करना बंद कर देता हूँ ….शायद येही सबसे बड़ी सजा होती है उसके लिए ……(हमेशा के लिए नहीं )…सिर्फ उसको एहसास करने के लिए की उसकी इस गलती की वज़ह से उसने क्या खो दिया है …..मतलब ये हैं की माफ़ करना और माफ़ी चाहना ….दोनों ही मसलो को जटिल ना बना करके बहुत आसान बना देने पर रिश्तो के बीच बढ़ रहे फसलो को रोका जा सकता है
6.... जीवन थोडा है
हमारा जीवन सीमित है …..एक कड़वा सच जिसे हम जानते हैं मगर मान ’ने से अक्सर इंकार करते हैं ….ज़िन्दगी का कोई भी एक पल …जो बीत गया है कभी वापस नहीं आएगा ….अगर जीवन में कोई ख्वाहिश है तो उसको बन्धनों की वज़ह से मिटने ना दो ….जो आप चाहते हो जरुर पूरा करो ….क्योंकि ख्वाहिशे पूरी ना होने का मलाल उस वक़्त होगा जब आप जीवन की आखरी स्टेज पर होंगे ….यही मलाल होगा की “क्यों नहीं कर पाए ”….मैंने पहले भी कहा है की लोग सिर्फ सलाह दे सकते है हेल्प नहीं ….फैसला तो सिर्फ आपका ही होगा ….एक ऐसा फैसला जो आपने दिल से लिया हो …यक़ीनन कभी जिंदगी मैं ऐसे फैसले पर आपको पछताना नहीं पड़ेगा ….ज़िन्दगी के हर लम्हे को आखरी पल समझ के जी सकोगे तो ही ज़िन्दगी का मज़ा ले सकते हो …जो आज आपके हाथ में हैं सिर्फ वही तुम्हारा हैं …कल का कोई भरोसा नहीं ….जितनी खुशियाँ समेट सकते हो समेट लो …वरना एक दिन झुर्रिया पड़े चेहरे और दबे अरमानो को लिए एक ऐसी हालत मैं खुद को खड़े पाओगे ….जहाँ पूछने वाला कोई ना होगा …वक़्त तो सनसनाते हुए पत्थर की तरह पास से निकल जाता है ..और पीछे छोड़ जाता है ….अफ़सोस और मलाल के आंसू …..इसलिए ऐसा ना होने दो …..वक़्त को काबू करो इससे पहले के वो आप पर पकड़ बना ले …..\
हमारा जीवन सीमित है …..एक कड़वा सच जिसे हम जानते हैं मगर मान ’ने से अक्सर इंकार करते हैं ….ज़िन्दगी का कोई भी एक पल …जो बीत गया है कभी वापस नहीं आएगा ….अगर जीवन में कोई ख्वाहिश है तो उसको बन्धनों की वज़ह से मिटने ना दो ….जो आप चाहते हो जरुर पूरा करो ….क्योंकि ख्वाहिशे पूरी ना होने का मलाल उस वक़्त होगा जब आप जीवन की आखरी स्टेज पर होंगे ….यही मलाल होगा की “क्यों नहीं कर पाए ”….मैंने पहले भी कहा है की लोग सिर्फ सलाह दे सकते है हेल्प नहीं ….फैसला तो सिर्फ आपका ही होगा ….एक ऐसा फैसला जो आपने दिल से लिया हो …यक़ीनन कभी जिंदगी मैं ऐसे फैसले पर आपको पछताना नहीं पड़ेगा ….ज़िन्दगी के हर लम्हे को आखरी पल समझ के जी सकोगे तो ही ज़िन्दगी का मज़ा ले सकते हो …जो आज आपके हाथ में हैं सिर्फ वही तुम्हारा हैं …कल का कोई भरोसा नहीं ….जितनी खुशियाँ समेट सकते हो समेट लो …वरना एक दिन झुर्रिया पड़े चेहरे और दबे अरमानो को लिए एक ऐसी हालत मैं खुद को खड़े पाओगे ….जहाँ पूछने वाला कोई ना होगा …वक़्त तो सनसनाते हुए पत्थर की तरह पास से निकल जाता है ..और पीछे छोड़ जाता है ….अफ़सोस और मलाल के आंसू …..इसलिए ऐसा ना होने दो …..वक़्त को काबू करो इससे पहले के वो आप पर पकड़ बना ले …..\
7.... दोस्त और दोस्ती
दोस्ती हमेशा ही मोहब्बत से बड़ी होती है ….वैसे तो दोनों का ही अपना अलग वजूद है …मगर मोहब्बत तो हजारों से नहीं हो सकती हैं ना …और दोस्ती का भी मतलब सिर्फ दोस्त बनाना नहीं होता ….दोस्ती निभाना भी होता है ….दोस्त को समझना …उसमे आपको जो अच्छा या बुरा लगता है …उसको बताना …..आपमें उसे क्या अच्छा या बुरा लगता है उसे जान ’ना ….इससे दोनों ही लोगो में जो खामिया हैं .. या अच्छईया है …उनको सही दिशा मिल सकती है ….वैसे तो आपने सुना होगा की “एक सच्चा दोस्त कभी शिकवा या मांग नहीं करता ”…मगर सही मायनो मैं …अगर आपको उसकी वज़ह से कोई तकलीफ है तो जरुर कंप्लें करे ….साथ बैठकर उसे सोल्व करने का प्रयास करें ….मगर जयादातर मामलो मैं हम लोगो के इगोस हमे ऐसे करने से रोकते हैं …अपने इगो को एक तरफ रख कर ही हम इन मामलो का हल निकल सकते हैं …अगर आप पहल करते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है की आप गलत थे और सामने वाला सही हैं …इसका मतलब है के आप दोस्ती और संबंधो के सही मायने समझते हैं …मगर आजकल वक़्त की कमी ही अच्छे संबंधो को ख़राब करने का आधार तैयार करती है …..ठीक है …वक़्त किसी के पास नहीं है …मगर क्या इतना भी नहीं के हम किसी के सवाल का जवाब भी नहीं दे सकते ….या फिर मुद्दत बाद किसी पुराने दोस्त के मिलने पर हमारे पास बहाना होता है ..”यार मेरा फ़ोन चोरी / मिस्पलेस हो गया था …तेरा फ़ोन नंबर भी उसी में था ..बहुत कोशिश की तेरा नंबर खोजने की मगर ….”…….मगर मैं फिर भी हमेशा से ही मानता हूँ की …हमे ऐसी बातो पर नाराज़ होने से ज्यादा उन हालातो को समझना चाहिए जिसकी वज़ह से ऐसा हुआ ….और अगर आप हालातो को समझ पाते हैं तो आपको उस ’से कोई शिकायत नहीं होगी …..मैं समजता हूँ ….इसलिए मुझे मेरे दोस्तों …मेरी फॅमिली ….मेरे संबंधियों …किसी से शिकायत नहीं ……
दोस्ती हमेशा ही मोहब्बत से बड़ी होती है ….वैसे तो दोनों का ही अपना अलग वजूद है …मगर मोहब्बत तो हजारों से नहीं हो सकती हैं ना …और दोस्ती का भी मतलब सिर्फ दोस्त बनाना नहीं होता ….दोस्ती निभाना भी होता है ….दोस्त को समझना …उसमे आपको जो अच्छा या बुरा लगता है …उसको बताना …..आपमें उसे क्या अच्छा या बुरा लगता है उसे जान ’ना ….इससे दोनों ही लोगो में जो खामिया हैं .. या अच्छईया है …उनको सही दिशा मिल सकती है ….वैसे तो आपने सुना होगा की “एक सच्चा दोस्त कभी शिकवा या मांग नहीं करता ”…मगर सही मायनो मैं …अगर आपको उसकी वज़ह से कोई तकलीफ है तो जरुर कंप्लें करे ….साथ बैठकर उसे सोल्व करने का प्रयास करें ….मगर जयादातर मामलो मैं हम लोगो के इगोस हमे ऐसे करने से रोकते हैं …अपने इगो को एक तरफ रख कर ही हम इन मामलो का हल निकल सकते हैं …अगर आप पहल करते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है की आप गलत थे और सामने वाला सही हैं …इसका मतलब है के आप दोस्ती और संबंधो के सही मायने समझते हैं …मगर आजकल वक़्त की कमी ही अच्छे संबंधो को ख़राब करने का आधार तैयार करती है …..ठीक है …वक़्त किसी के पास नहीं है …मगर क्या इतना भी नहीं के हम किसी के सवाल का जवाब भी नहीं दे सकते ….या फिर मुद्दत बाद किसी पुराने दोस्त के मिलने पर हमारे पास बहाना होता है ..”यार मेरा फ़ोन चोरी / मिस्पलेस हो गया था …तेरा फ़ोन नंबर भी उसी में था ..बहुत कोशिश की तेरा नंबर खोजने की मगर ….”…….मगर मैं फिर भी हमेशा से ही मानता हूँ की …हमे ऐसी बातो पर नाराज़ होने से ज्यादा उन हालातो को समझना चाहिए जिसकी वज़ह से ऐसा हुआ ….और अगर आप हालातो को समझ पाते हैं तो आपको उस ’से कोई शिकायत नहीं होगी …..मैं समजता हूँ ….इसलिए मुझे मेरे दोस्तों …मेरी फॅमिली ….मेरे संबंधियों …किसी से शिकायत नहीं ……
8.... क्या करे क्या ना करे
अगर किसी काम के बारे मैं आपके दिमाग और दिल की सहमती ना हो ….अगर दिमाग कहता हो “नहीं ” और दिल कहता हो “हाँ ”…..ऐसे मैं क्या करते हैं आप ???????........... ऐसे मैं मेरे नज़रिए से आपको अपने दिल की सुननी चाहिए ……क्योंकि अगर कुछ गलत भी हो जाता है तो आप इसे आसानी से स्वीकार कर पाओगे ….मगर दिल की नहीं सुन ’ने पर ये दर्द का सबब बन जाता है …बहुत तकलीफ होती है …बहुत पछतावा होता है …..यादें जो होती है हमेशा बनी नहीं रहती ….धीरे धीरे धुन्धली पड़ जाती है ….मगर दिल की चाहत ना पूरी होने पर मिलने वाला दर्द कभी कम नहीं होता ….इसलिए जहाँ दिल और दिमाग का टकराव हो ….वहां पर आपको सिर्फ अपने दिल की सुन ’नी चाहिए …लोगो से आप सलाह कर सकते हो …मगर फैसला वही लीजिये जो आपका दिल कहता है …..मैंने भी कुछ मामलो मैं दिल की अन्सुनी करगे दिमाग को प्रिओरिटी दी …..जिसका मुझे अब तक मलाल है …और मैं नहीं चाहूँगा की आप भी कभी ऐसे दौर से गुजरें ….इसलिए अपने दिमाग से ज्यादा अपने दिल को महत्व दीजिये
अगर किसी काम के बारे मैं आपके दिमाग और दिल की सहमती ना हो ….अगर दिमाग कहता हो “नहीं ” और दिल कहता हो “हाँ ”…..ऐसे मैं क्या करते हैं आप ???????........... ऐसे मैं मेरे नज़रिए से आपको अपने दिल की सुननी चाहिए ……क्योंकि अगर कुछ गलत भी हो जाता है तो आप इसे आसानी से स्वीकार कर पाओगे ….मगर दिल की नहीं सुन ’ने पर ये दर्द का सबब बन जाता है …बहुत तकलीफ होती है …बहुत पछतावा होता है …..यादें जो होती है हमेशा बनी नहीं रहती ….धीरे धीरे धुन्धली पड़ जाती है ….मगर दिल की चाहत ना पूरी होने पर मिलने वाला दर्द कभी कम नहीं होता ….इसलिए जहाँ दिल और दिमाग का टकराव हो ….वहां पर आपको सिर्फ अपने दिल की सुन ’नी चाहिए …लोगो से आप सलाह कर सकते हो …मगर फैसला वही लीजिये जो आपका दिल कहता है …..मैंने भी कुछ मामलो मैं दिल की अन्सुनी करगे दिमाग को प्रिओरिटी दी …..जिसका मुझे अब तक मलाल है …और मैं नहीं चाहूँगा की आप भी कभी ऐसे दौर से गुजरें ….इसलिए अपने दिमाग से ज्यादा अपने दिल को महत्व दीजिये

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