जब तुम थे .....

जब तुम थे...जब तुम थे...मेरी ज़िन्दगी में शामिलमुझे लगता था, मेरे जीवन का है कुछ आस्तित्वजब तुम थे...मैं हंसती, खिलखिलाती, मुस्कुराती थीमैं इठलाती, इतराती, गुनगुनाती थीमैं लहलहाती, चहचहाती, शर्माती थीमैं सबकी ख़ुशियों में शामिल नज़र आती थीमैं सबको सुकून बांटती थीमैं ग़म का हल भी चुटकियों में निकाल लेती थीमैं दुनिया से लड़ने का माद्दा रखती थीमैं कल्पनालोक में विचरण करती थीइंद्रधनुष के सात रंग मेरे जीवन को रंगीन बनाते थेजब तुम थे...मेरी दुआओं में तुम ही तुम नज़र आते थेमेरी ज़िन्दगी में आई थी बहारमेरी आकांक्षा उमड़ती, घुमड़ती, सरसती थीमेरी सांसें अवाध्य गति से दौड़ती थींमेरी बातों में जादू टपकता थामेरी दुनिया सात रंगों से सजी थींमेरे सपने सजते, संवरते, सुलझते थेमेरे जीवन में उत्साह, उमंग, उन्माद थामेरे जीने का भी मक्सद हुआ करता थामेरे कई शौक...कुलांचे भरते थेहर काम में मेरी उपस्थिति झलकती थी...देखो न....पहले मैं क्या थी...और आज मैं क्या हूं...आज जब तुम मेरी ज़िन्दगी में नहीं....आज इन सबके अर्थ बदल गए हैं...मैं अकेली, असहाय, अनाथ हो गई हूं...सूखे पेड़ की डाली के टूटे पत्तों की तरह बेजान, नर्जीव, सूनीतुम्हारी उन यादों ने मुझे एक पल भी तन्हा न छोड़ामेरी तन्हाई मुझे घून की तरह अंदर ही अंदर खाने लगी हैघर का एक शांत कोना मुझे बांहे पसारे जाने क्यों बुलाता हैसैडसॉन्ग मेरी तन्हाई मिटाने के लिए भी काफ़ी नहीं...फिर मेरी आंखें बिना रुके झरझराती हैं...मेरे जीवन में कोई उमंग कोई उत्साह नहींमेरा फ़ोन...पहले कभी मुझसे ख़ाली व़क्त की मिन्नत करता थाजो आज चुपचाप मुझसे किनारा किए बैठा है...जब मैं चित्र बनाने बैठती हूं और तूलिका से उनमेंरंग भरने का प्रयास करती हूं...वे चित्र भी अपने फीकेपन का एहसास करा जाते हैं...जो पहले कभी अपने अंदर सभी गाढ़े रंग समेट लेते थेआज रंगहीन बनकर इठलाते हैं...वो लड़ना...वो झगड़ना...अब आंसूओं की धार बनकर बह जाना चाहता है...तुम्हारी यादें उनमें धुंधली होने का प्रयास करती हैंहवा के वे शीतल झोंके...जो पहले मुझे गुदगुदाते थे...आज थपेड़े बनकर मुझे डराते हैं...त्योहार आता है...और बिना कोई एहसास कराए निकल जाता है...मेरा मन कहीं स्थिरता नहीं पाताकोई मेरे हृदय के एक कोने में जगह न मांग बैठेमैंने उसका भी उपाय कर लिया हैमन को एक ताले में बंद कर...चाभी न जाने कहां गुमा दी है...कोई मुझे अपने आकर्षण में बांध भी तो नहीं पातान जाने मैं उसमें भी वही उम्मीद लगा बैठती हूं...कि दिल एक पल में टूट जाता है...कोई मेरी आवाज़ में वो मिठास भी तो नहीं पातामेरा मन बेबस, असहाय, लाचार है..मेरा दिल ज़ख़्मी, मजबूर है...मेरी हंसी में भी उदासी अपनी झलक दिखा जाती है...क्या मेरे जीवन में कभी बहार नहीं आएगी...क्या मैं इतना सा ही वक्त लेकर इस दुनिया में आई थी...अगले जनम में मिलने की आस लेकर..क्या में यूं ही दफ़न हो जाऊं...और तब...क्या ये एक कहानी बनकर...बिना किसी को सुनाए...शून्य में मिल जाएगा...और क्या अगले जनम में भी मेरा प्यारमुझे वापस मिल पाएगा ।

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