एक संदेश बहन का

एक बेटी का सन्देश अपने इकलौते भाई कोइस राखी पर भैया ,मुझे बसयही तोहफा देना तुम ,रखोगे ख्याल माँ-पापा का , बस यही इकवचन देना तुम ,बेटी हूं मैं , शायद ससुराल से रोज़ न आपाऊंगी ,जब भी पीहर आऊंगी , इक मेहमान बनकरआऊंगी ,पर वादा है, ससुराल में संस्कारों से,पीहर की शोभा बढाऊंगी ,तुम तो बेटे हो , इस बात को नभुला देना तुम ,रखोगे ख्याल माँ -पापा का बस यही वचनदेना तुम ,मुझे नहीं चाहिये सोना-चांदी , न चाहियेहीरे-मोती ,मैं इन सब चीजों से कहां सुःख पाऊंगीदेखूंगी जब माँ-पापा को पीहर में खुशतो ससुराल में चैन से मैं भी जी पाऊंगीअनमोल हैं ये रिश्ते , इन्हें यूं ही नगंवा देना तुम ,रखोगे ख्याल माँ-पापा का , बसयही वचन देना तुम ,वो कभी तुम पर यां भाभी परगुस्सा हो जायेंगे ,कभी चिड़चिड़ाहट में कुछ कह भी जायेंगे ,न गुस्सा करना , न पलट के कुछ कहना तुम ,उम्र का तकाजा है, यहभाभी को भी समझा देना तुम ,इस राखी पर भैया मुझे बसयही तोहफा देना तुम ,रखोगे ख्याल माँ-पापा का , बसयही वचन देना तुम ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता है,

परफेक्शन

धर्म के नाम पर