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अर्थपूर्ण व्यस्तता आवश्यक है

यूँ तो आजकल हर कोई व्यस्त है । जीवन की गति से तालमेल बनाये रखने को आतुर । जीवन से भी अधिक तेज़ी से दौड़ने को बाध्य । आपाधापी इतनी कि  हम यह विचार करना भी भूल ही गए  कि जितना व्यस्त हैं , इस व्यस्तता के चलते जितना लस्त-पस्त हैं, उसकी आवश्यकता है भी या नहीं। भागे तो जा रहे हैं पर जितना स्वयं को उलझा रखा है उसका प्रतिफल क्या है ? हमारी यह व्यस्तता अर्थपूर्ण और सकारात्मक है भी या नहीं ।  कुछ भी करके समय काट दिया जाय ऐसी व्यस्तता का तो कोई अर्थ नहीं । यह तो हम सब समझते हैं । फिर भी कई बार जाने अनजाने ऐसे कार्यों में भी लगे रहते हैं  जिनमें ऊर्जा का सदुपयोग नहीं हो पाता  । जो कि एक विचारणीय पक्ष है । हम चाहे जो भी करें।  श्रम और समय का व्यय तो होता ही है । ऐसे में जहाँ भी , जिस रूप में भी, श्रम और समय लगाया जाय उसका सकारात्मक प्रतिफल कुछ ना हो तो स्वयं को ही छलने का आभास होता है । व्यस्तता का लबादा  ओढ़ कई बार स्वयं से दूर हो जाने मार्ग चुन बैठते हैं । उचित समन्वय  के ...

कौन है ये आम आदमी

आज हर तरफ आम आदमी आम आदमी का नाम चल रहा है ! है कौन ये आम आदमी? आदमी भी है या सिर्फ कोई वोट बैंक है जो सिर्फ वोट डालने के समय नेताओ को याद आता है ! चारो तरफ आम आदमी के रहनुमा नज़र आते है लेकिन यही आम आदमी कभी महगाई से तो कभी भ्रष्टाचार से लड़ता है या फिर कीडे मकोडो की तरह अपनी जिंदगी बसर करता है ! क्या होता है यह आम आदमी? समाज में आम, राजनीति में खास- मगर सिर्फ चुनावी वक्त में? समाज में आम आदमी की भूमिका वहीं तक है जहां से खास आदमी की भूमिका शुरू होती है। यह खास आदमी होता आम आदमी जैसा ही है, किंतु उसका 'शाही रूतबा' उसे आम से खास बना देता है। मैं इस अवधारणा को नहीं मानता कि देश आम आदमी के सहारे चलता है। देश खास आदमी के 'आदेश' पर चलता है। खास आदमी बेहद ताकतवर होता है। आम आदमी खास आदमी के सामने कहीं नहीं ठहरता। या कहें कि उसे ठहरने नहीं दिया जाता। आम आदमी खास आदमी की शर्तों पर ही जीता है। यह हकीकत है। अब आप आम आदमी का दिल बहलाने के लिए कह-लिख कुछ भी लें लेकिन समाज में चलती उसी की है जिसके पास सत्ता की ताकत और छिनने का माआदा होता है। खास आदमी आम आदमी से ...

मन्ना डे

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ये कैसा खालीपन आ गया आज अचानक। एक विराट शून्य। भारतीय संगीत के चुनिंदा दिग्गजों में शामिल मन्ना डे काफी वक्त से बीमार थे और इस बात का अहसास काफी दिन से था कि एक दिन अचानक ही दुखद ख़बर आएगी। वह ख़बर आज आ गई, मन्ना डे के जाने का मतलब सिर्फ एक गायक का चले जाना नहीं है। मन्ना डे भारतीय संगीत का एक युग थे। उनकी आवाज़ सीधे रूह को छूती थी। रफी, मुकेश और किशोर की विराट लोकप्रियता के बीच में भी मन्ना डे की उपस्थिति न केवल महसूस की गई बल्कि उनकी अनिवार्यता को भी दिग्गज संगीतकारों ने समझा था। लेकिन, क्या आज की पीढ़ी समझ सकती है कि आज हमारे बीच से कौन सा शख्स चला गया? नयी पीढ़ी मन्नादा होने का मतलब और मन्नादा के हमारे बीच होने का मतलब नहीं समझ सकती। नयी पीढ़ी के कई बच्चों ने मन्ना डे का नाम शायद आज पहली बार सुना होगा, जब उनके निधन की ख़बर टेलीविजन चैनलों पर रेंग रही है। हो सकता है कि कइयों के लिए मन्ना डे का मतलब ‘यारी है ईमान मेरा यार मेरा जिंदगी‘ गाने वाले एक गायक की हो क्योंकि ‘ज़ंजीर’ फिल्म का यह गाना अकसर चैनलों पर बजता रहता है। लेकिन, मेरे लिए मन्ना डे का मतलब एक गायक भर नहीं थ...

त्यौहार और हमारी परम्पराये

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पहले त्योहारों के साथ आस्था और परंपरा जुड़ी होती थीं। त्योहार हमारी संस्कृति का आईना होते हैं। आज इनका भी व्यवसायीकरण हो गया है। पहले ये त्योहार परस्पर मेल-मिलाप का ज़रिया हुआ करते थे और आज ये विशुद्घ आस्था का वास्ता न रहकर व्यवसायिक समीकरणों को सुदृढ़ करने का रास्ता बन गए हैं। त्योहारों के पीछे की वास्तविक सोच बदल गई है। आज त्योहारों के साथ प्रतियोगिता भी जुड़ गई है। त्योहारों पर तोहफ़े यानी उपहार दिए जाने की हमारी हिंदुस्तानी संस्कृति की काफ़ी पुरानी परंपरा रही है। पहले खुले दिल से तोहफ़े दिए जाते थे, उपहारों के पीछे छुपी भावना देखी जाती थी, आज क्वालिटी और ब्रांड देखे जाते हैं। यानी दिखावे की भावना प्रबल हो गई है। सामने वाले ने जिस स्तर का तोहफ़ा दिया है हमें भी उसी के अनुरूप देना है। व्यवसायिक फ़ायदे/स्वार्थ या तेज़ी से बदलते समीकरणों के मद्देनज़र हम पाँच-छह कि.मी. या उससे भी ज़्यादा दूरी वाले व्यक्ति से मिलने या बधाई दने पहुंच जाएंगे और अपने पड़ोसियों को भले ही नॉक न करें। पहले की तुलना में आज परिवारों की तरफ से बच्चों को त्योहारों पर घूमने-फिरने की ज़्यादा आज़ादी...

स्मिता पाटिल

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फिल्म “मंथन” को हिन्दी सिनेमा जगत की एक कालजयी फिल्म जाता है. गुजरात के दूध व्यापारियों पर आधारित यह फिल्म जब बनी तो इसको बनाने के लिए गुजरात के लगभग पांच लाख किसानों ने अपनी प्रति दिन की मिलने वाली मजदूरी में से दो-दो रूपये फिल्म निर्माताओं को दिए और बाद में जब यह फिल्म प्रदर्शित हुई तो यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई. इस फिल्म को हिट कराने में जितना हाथ निर्माता, निर्देशक का रहा उतना ही योगदान अभिनेत्री स्मिता पाटिल( Smita Patil ) का भी रहा. Smita Patil Biography बॉलिवुड में जब भी आर्ट कलाकारों की बात की बाती है तो शबाना आजमी, ओम पुरी, नसीरुद्दीन शाह जैसे सितारों का नाम सामने आते हैं पर इन सभी की श्रेणी में ही एक नाम स्मिता पाटिल का भी है जिन्हें यह सिने जगत कभी नहीं भूल सकता. सब कहते हैं कि हिट अभिनेत्री बनने के लिए आपकी रंगत अच्छी होनी चाहिए फिर चाहे आपका अभिनय उन्नीस-बीस ही क्यूं ना हो लेकिन स्मिता पाटिल ने अपने सशक्त अभिनय से इस बात को झुठला दिया और साबित कर दिया कि बॉलिवुड में अगर आपके पास बेहतरीन हुनर है तो आपको किसी रंग-रूप की जरूरत नहीं. ...

ए.पी.जे अब्दुल कलाम

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ए.पी.जे अब्दुल कलाम का जीवन परिचय भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम का पूरा नाम डॉक्टर अवुल पाकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम है. यह पहले ऐसे गैर-राजनीतिज्ञ राष्ट्रपति रहे जिनका राजनीति में आगमन विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में दिए गए उत्कृष्ट योगदान के कारण हुआ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को रामेश्वरम, तमिलनाडु में हुआ था. इनके पिता जैनुलाब्दीन एक कम पढ़े-लिखे और गरीब नाविक थे. वह नियमों के पक्के और उदार स्वभाव के इंसान थे जो दिन में चार वक्त की नमाज भी पढ़ते थे. अब्दुल कलाम के पिता अपनी नाव मछुआरों को देकर घर का गुजारा चलाते थे. परिणामस्वरूप बालक अब्दुल कलाम को अपनी आरंभिक शिक्षा पूरी करने के लिए घरों में अखबार वितरण करने का कार्य करना पड़ा. ए.पी.जे अब्दुल कलाम एक बड़े और संयुक्त परिवार में रहते थे. उनके परिवार के सदस्यों की संख्या का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह स्वयं पांच भाई एवं पांच बहन थे और घर में तीन परिवार रहा करते थे. ए.पी.जे अब्दुल कलाम का विद्यार्थी जीवन बहुत कठिनाइयों भरा बीता. जब वह आठ-नौ वर्ष के रहे होंगे, तभी ...

राइट टू रिजेक्ट

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2013 के चुनाव वोटरों के लिये पहली बार उम्मीदवारों को बाकायदा बटन दबाकर खारिज करने वाला भी चुनाव होगा। यानी ईवीएम की मशीन में वोटरों को यह विकल्प भी मिलेगा कि वह किसी भी उम्मीदवार को चुनना नहीं चाहते है। लेकिन और जीत हार तय करने निकले वह वोटर जो जातीय या धर्म या समुदाय के आधार पर बंटे होते हैं वह उम्मीदवार के दागी होने से पहले अपने आधारों को देखते हैं। तो तीन सवाल असबार सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एवीएम में नोटा यानी इनमें से कोई नहीं वाले बटन के घाटे पर बड़ी तादाद में वोटरों के वोट बिना गिने रह जायेंगे। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने एक उदाहरण संसद का यह कहकर दिया था कि वहां भी वोटिंग के हालात में एबसेंट की संख्या भी बतायी जाती है। लेकिन चुनाव आयोग ने कोई व्यवस्था नहीं की है कि नोटा बटन दबाने वालो की गिनती हो। दूसरा सवाल वोट मैनेज करने वालो के लिये आसानी होनी। क्योकि साफ छवि वाले नेता वोटरो के सामने यह आवाज जरुर उठायेगे कि वो नोटा बटन भी दबा सकते हैं। और तीसरा रिप्ररजेन्टेशन आफ पीपुल्स एक्ट की धारा 49 को खत्म करने का कोई महत्व नहीं बचेगा। क्योंकि इस नियम के तहत वोटर पहले प्रिजाइडि...

अमिताभ बच्चन

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पिछले 40 से भी ज़्यादा सालों से अपनी फिल्मों में निभाए किरदारों के जरिये करोड़ों दिलों पर छाए रहने वाले, बॉलीवुड के 'शहंशाह', और 'सुपरस्टार ऑफ द मिलेनियम' के खिताबों से नवाज़े गए अमिताभ बच्चन ने गुरुवार को ज़िन्दगी के 70 बरस पूरे कर लिए हैं... वैसे प्यार से 'बिग बी' कहकर पुकारे जाने वाले अमिताभ बच्चन के बारे में इतना लिखा-पढ़ा जाता है कि अब शायद ही कोई ऐसी जानकारी होगी, जिसे उनके चाहने वाले न जानते हों... लेकिन फिर भी, आज उनका जन्मदिन है, तो आइए, एक बार फिर कोशिश करते हैं, ताकि आपको कुछ नया बता सकें, आपके चहेते सुपरस्टार के बारे में... जन्म नाम : इन्किलाब श्रीवास्तव जन्म तिथि : 11 अक्टूबर, 1942 जन्म स्थान : इलाहबाद, उत्तर प्रदेश कद : 6'2" परिवार : पत्नी: जया बच्चन , बेटा: अभिषेक बच्चन ,बहु: ऐश्वर्या राय बच्चन , बेटी:श्वेता नंदा पहली फिल्म : सात हिन्दुस्तानी पहली सफल फिल्म :  जंजीर उपनाम : बिग बी,एंग्री यंग मेन,शहेंशाह धारावाहिक :कौन बनेगा करोड़पति फिल्म कंपनी :ए.बी.सी.एल बिग बी के नाम ...