अर्थपूर्ण व्यस्तता आवश्यक है
यूँ तो आजकल हर कोई व्यस्त है । जीवन की गति से तालमेल बनाये रखने को आतुर । जीवन से भी अधिक तेज़ी से दौड़ने को बाध्य । आपाधापी इतनी कि हम यह विचार करना भी भूल ही गए कि जितना व्यस्त हैं , इस व्यस्तता के चलते जितना लस्त-पस्त हैं, उसकी आवश्यकता है भी या नहीं। भागे तो जा रहे हैं पर जितना स्वयं को उलझा रखा है उसका प्रतिफल क्या है ? हमारी यह व्यस्तता अर्थपूर्ण और सकारात्मक है भी या नहीं । कुछ भी करके समय काट दिया जाय ऐसी व्यस्तता का तो कोई अर्थ नहीं । यह तो हम सब समझते हैं । फिर भी कई बार जाने अनजाने ऐसे कार्यों में भी लगे रहते हैं जिनमें ऊर्जा का सदुपयोग नहीं हो पाता । जो कि एक विचारणीय पक्ष है । हम चाहे जो भी करें। श्रम और समय का व्यय तो होता ही है । ऐसे में जहाँ भी , जिस रूप में भी, श्रम और समय लगाया जाय उसका सकारात्मक प्रतिफल कुछ ना हो तो स्वयं को ही छलने का आभास होता है । व्यस्तता का लबादा ओढ़ कई बार स्वयं से दूर हो जाने मार्ग चुन बैठते हैं । उचित समन्वय के ...