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अगस्त, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

लोकतंत्र और आम आदमी

राजनितिक दलों की डिमांड एंड सप्लाई के बीच फंस कर आम आदमी चुनावों के दरमियान एसा आपा खो बैठता है कि सरकार बनने के महीनों बाद उसे याद आता है उसका जीवन सरकार के सरोकारों के बिना पूरा होना सम्भव नहीं लेकिन सरकार जिन सरोकारों का पोषण कर रही है वो जीवन की कठिनाइयों का कारण बन चुके हैं। ऐसे में पछताने के सिवा एक आम आदमी कर ही क्या सकता है ? इसी अनाड़ीपन के चलते भारतीय नागरिक जीवन पैंसठ वर्ष गंवा चुका है। दरअसल मतदान के समय फोकस में रहने वाले विषय व्यक्ति के जीवन से जुड़े ही नहीं होते बल्कि अँधा कुआँ होते हैं जिसमे व्यक्ति राजनितिक दलों की सहायता से खुद को नाप तोल कर सबसे गहरे फेंकता है अगले पांच वर्ष वापस न लौटने के लिये।क्या जाति धर्म क्षेत्र कभी जीवन जीने में और उसकी समस्याओं के समाधान में सहायक हुआ है ? फिर क्यों इसी आधार पर देश प्रदेश की सरकारें बन जाती हैं ? या तो वोटिंग पैटर्न गलत है या जीवन गलतियाँ कर रहा है सम्भावना दूसरी अधिक प्रबल है। चुनावों से दूर जब व्यक्ति जीवन यापन कर रहा होता है उसकी आवश्यकताएँ सच होती हैं उस मिथक से दूर जिसे वह चुनावों के दौरान जी र...

नारी एवं उनकी सुरक्षा

इस पुरूष प्रधान समाज मेँ हम पुरूषवर्ग आदिकाल से नारियोँ के उत्सर्ग मेँ बाधा उत्पन्न करते आये है... हम हमेशा खुद मेँ खुबियाँ ढुढते रहते है... समाज मेँ खुद को साबित करने के लिए अपने बल का प्रयोग करते है... नारियोँ के उत्थान मेँ जाने क्योँ हमेँ खुद का पतन नजर आता है !!! किसी नारी को आगे बढते हुए जाने क्योँ हम नहीँ देख सकते, खासकर खुद से.... आश्चर्य तो तब होता है जब अपनी संर्कीर्ण मांसिकता का दोषी एक नारी को ठहराते है.... गलतिया हम करते है और कारण एक नारी को बताते है....वो पुरानी कहावत "जूती और स्त्री पैरोँ के नीचे ही रहे तो ठीक है", मुझे पता नहीँ किसने लिखी है परन्तु इतना जरूर पता है कि जिसने भी लिखा या कहा है वास्तव मेँ एक नारी एवं उसकी भावनाओँ को आजतक समझ ही नहीँ पाया.... 'नारी' शब्द ही संस्कार एवं सम्मान का हकदार है.... वेदना एवं संवेदना एक नारी ही इंसान को सिखाती है... फिर भी हम भावना की इस मुर्ति को गलत ठहराते है और जाने क्योँ यह भूल जाते है कि हमेँ इस दुनिया मेँ जन्म एक नारी ने ही दिया है... एक माँ का कर्ज और एक भाई का फर्...

रक्षा बंधन

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रक्षा बंधन का पर्व स्नेह का, प्रेम का और परंपराओं की रक्षा का पर्व है। रक्षा की प्रतिबद्धता का पर्व है। यह भावनाओं और संवेदनाओं से जुड़ा पर्व है। राखी के धागों का जो भाव है, वह जिस विचार के प्रतीक हैं वे भाव जीवन को बहुत ऊंचा बनाने वाले होते हैं। रक्षा बंधन आत्मीयता और स्नेह के बंधन से रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर हर कोई किसी न किसी बंधन में बँधने के लिए आतुर दिखाई देता है। गुरू शिष्य को रक्षासूत्र बाँधता है तो शिष्य गुरू को। प्राचीन काल में जब स्नातक अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षा सूत्र बाँधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बाँधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में...

कहानी मिल्खा सिंह की

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कहानी मिल्खा सिंह की ***************** 1947 का वक़्त और भारत का बटवारा जिन लोगो ने देखा और भोग है वो उस मंज़र को अपनी पूरी ज़िन्दगी में नहीं भूल सकते हैं !नफरत की लहर ने जाने कितने मासूमो की ज़िन्दगी छिन ली और कितनो को अपनों से हमेशा के लिए दूर कर दिया !बटवारे के वक़्त बहुत सारे लोग भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत आये इन में बहुत ऐसे लोग ऐसे भी थे जो अपन े पुरे परिवार को खो दिए थे नफरत की आग ने उन के परिवारों को लील लिया था उन्ही लोगो में एक सिख बच्चा भी पाकिस्तान से अपनी जान बचा के बहुत मुस्किल से भारत आया था जिसका नाम था मिल्खा सिंह जिसको आज पूरी दुनिया फ्लाइंग सिख के नाम से भी जानती है! मिल्खा सिंह का जन्म 8 अक्तूबर 1935 को लायलपुर जो अब पाकिस्तान में है हुवा था बटवारे के वक़्त हुवे दंगो में मिल्खा के पुरे परिवार की हत्या कर दी गई थी और मिल्खा किसी तरह अपनी जान बचाते हुवे भारत आ गए !भारत आने के बाद मिल्खा सिंग ने अपनी ज़िन्दगी फुटपाथ पर बितानी शुरू की थी उन्हों ने अपनी जीवका चलने के लिए होटलों में बर्तन मांजने लगे थे लेकिन उसी वक़्त उन्हों ने ये ठान लिय...

स्वतन्त्रता दिवस

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आज 15 अगस्त है.भारत का 67 वा स्वतन्त्रता दिवस. आज के दिन भारत को अंग्रेजों से आज़ादी मिली थी. आज़ादी के इतने सालों बाद भी क्या हम इस आजादी से खुश हैं ? आज़ाद भारत में रहते हुए, आज़ाद भारत में सांस लेते हुए भी क्या आप खुद को आज़ाद महसूस करत े हैं ? अगर हम गौर करें तो ये पायेंगे कि हमने अपने देश को तो अंग्रेजों से आज़ाद करवा लिया, मगर यहाँ के लोग और उनकी सोच को हम अंग्रेजीपन से आजाद नहीं करवा पाए. आज भी हम उसी अंग्रेजीपन के गुलाम हैं. अपने स्कूल, ऑफिस, या सोसाइटी में तिरंगा फेहरा के हम अगर ये समझते हैं कि हमने आज़ादी हासिल कर ली है तो ये गलत है. देश के आज़ाद होने के बाद भी हम यहाँ कि प्रशासनिक प्रणाली और शिक्षा प्रणाली में उनके बनाये हुए नियमों को ही मानते आ रहे हैं. इस आज़ाद भारत कि हर चीज़ में आपको उस अंग्रेजीपन कि झलक दिखाई देगी. यहाँ के लोग, उनकी सोच, उनका रहन सहन सभी उस अंग्रेजीपन के गुलाम हैं. हमें क्यों विदेशी चीजों से इतना लगाव है ? हम विदेशी चीजों से इतने आकर्षित क्यों होते हैं. क्यों हमें हर विदेशी चीज़ कि कामना रहती है जैसे विदेशी कपडे, विदेशी ब्रांड, टी...

भोजन का समय निश्चित करें

स्व॰ श्री राजीव दीक्षित जी की   post..... मित्रो हमारे देश मे 3000 साल पहले एक ऋषि हुए जिनका नाम था बागवट जी ! वो 135 साल तक जीवित रहे ! उन्होने अपनी पुस्तक अशटांग हिरद्यम मे स्वस्थ्य रहने के 7000 सूत्र लिखे ! उनमे से ये एक सूत्र राजीव दीक्षित जी की कलम से आप पढ़ें ! __________________________ _______ बागवट जी कहते है, ये बहुत गहरी बात वो ये कहते है जब आप भोजन करे कभी भी तो भोजन का समय थोडा निश्चित करें । भोजन का समय निश्चित करें । ऐसा नहीं की कभी भी कुछ भी खा लिया । हमारा ये जो शरीर है वो कभी भी कुछ खाने के लिए नही है । इस शरीर मे जठर है, उससे अग्नि प्रदिप्त होती है । तो बागवटजी कहते है की, जठर मे जब अग्नी सबसे ज्यादा तीव्र हो उसी समय भोजन करे तो आपका खाया हुआ, एक एक अन्न का हिस्सा पाचन मे जाएगा और रस मे बदलेगा और इस रस में से मांस,मज्जा,रक्त,मल,मूत्रा, मेद और आपकी अस्थियाँ इनका विकास होगा । हम लोग कभी भी कुछ भी खाते रहते हैं । ये कभी भी कुछ भी खाने पद्ध्ती भारत की नहीं है, ये युरोप की है । युरोप में doctors वो हमेशा कहते रहते है की थोडा थोडा खाते रहो, कभी...

सावन का मौसम

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सावन का तो मौसम ही ऐसा है जो चारों तरफ हरियाली ला देता है  बच्चे, बड़े सभी इस दौरान खुद को तरोताजा महसूस करने लगते हैं.  सावन के महीने में तो यहां कई बार दिन रात बारिश होती रहती है.  हम खुश होते थे, जब बारिश की वजह से हमें स्कूल नहीं जाना पड़ता था. माँ  गरमागरम पकौड़े बनातीं और हम सब दिन भर बारिश में मौज मस्ती करते रहते. सावन में मज़े करने का इससे बेहतर तरीका और कौन सा हो सकता है? बारिश के मौसम में खानपान, पहनावा, दिनचर्या सब कुछ बदल जाता है.  सावन न होता, तो बारिश कैसे होती? गर्मी से राहत कैसे मिलती? रिमझिम फुहारों के बीच झमाझम फुहारों के बीच में अपनों के साथ भुट्टा खाने का आनंद कैसे उठाते? ऐसे कई कारण है, जिनकी वजह से सावन है मेरा मनपसंद  मौसम.हर नुक्कड़ पर कच्चे कोयलों के लाल सुर्ख अंगारों पर लोहे की जाली के ऊपर उलट पलट कर भुनते हुए भुट्टे . आहा ! यह दृश्य, और भुनते भुट्टे की सुगंध ; मन ही नहीं आत्मा तक को परम आनन्द में आप्लावित कर देती है . जब उस गर्मागर्म भुट्टे पर मसाला और नीम्बू लगवाकर भीगी बरसात में खाने का मज़ा लिया जाता है ; तो कहना ह...

किशोर कुमार

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किशोर कुमार (जन्म: 4 अगस्त , 1929 निधन: 13 अक्तूबर , 1987 )  भारतीय फिल्मों के इतिहास में लोकप्रियता के नये आयाम रचने वालों में मशहूर पार्श्वगायक, अभिनेता व संगीतकार किशोर कुमार का नाम बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है। जिस प्रकार अमिताभ बच्चन को सदी के महानायक की उपाधि प्राप्त है उसी तरह अगर किशोर कुमार को बीसवीं सदी का सुर सम्राट कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। किशोर कुमार के गाए हुए गीत हमारे देश की अनमोल धरोहर है। जिस पर हमें सारी दुनिया के सामने गौरव प्राप्त करने का अधिकार है। सुरों का स्वामी खण्डवा (मध्यप्रदेश) में जन्में किशोर कुमार गांगुली के दोनों भाई अशोक कुमार व अनूप कुमार फिल्मों से जुड़े रहे तथा दोनों ने फिल्मों में नाम कमाया। किशोर कुमार ने अपने समय के अधिकांश अभिनेता-अभिनेत्रियों के साथ अभिनय किया तथा सुरैया, आशा भोंसले, लता मंगेशकर, सुलक्षणा पंडित, अनुराधा पौडवाल, साधना सरगम आदि गायिकाओं के साथ गाया है। किशोर की आवाज सबसे ज्यादा आशा भोंसले के साथ पसंद की गई। सुरों के इस स्वामी ने अपनी मधुर आवाज का जादू दर्शकों पर बिखेरा। जादू भरी आवाज के बल पर...

भारत क्यों छटपटा रहा है

आज मनस-पटल पर एक प्रश्न चिह्न अंकित होने लगा कि आज भारत क्यों छटपटा रहा है।विचारों के थपेङे जैसे-जैसे मस्तिष्क की भीत पर चोट करने लगे।भावनाओं के महलों की नींव हिलने लगी थी।और भावनाऍ शब्दों का रूप लेकर बहने के लिए तत्पर हो उठी।और इसी सैलाब मेम डूबते-तिरते मैने देखा कि आज हम भारतीय विदेशों का गुणगान करते हैं।और अपने देश का नाम आते ही मुंह बिचकाकर बङे स्टाइल से कहते हैं-”ब्लडी शिट! कुछ नहीं होने वाला इस देश का “ऐसा कहते एक क्षण को भी हमेम लज्जा का अनुभव नहीं होता।यदि यह देश ब्लडी शिट है तो यहॉ क्यों इस अपशिष्ट पदार्थ को खाने के लिए रुके हो ?यदि यही प्रश्न कर लिया जाये तो कोई उत्तर न मिलेगा परंतु कोई ये प्रश्न ही नहीं करता। सैकङों मन  अनाज  सङ गया  और किसान  आत्महत्या कर  रहे हैं।पिज्जा बीस मिनट में आता है और एम्बूलेंस दो घंटे में भी नहीं पहुंचती ।एक सिपाही को शहीद होने पर एक लाख और एक  हीरो को एक फिल्म...