सरबजीत सिंह

सरबजीत नहीं रहा,वह शहीद हो गया | हम हार गए क्योकि हमने अपने देश को निकम्मों के हाथों में दे रखा है | सरबजीत की आत्मा को शांती मिले | शहीद को नमन ....
मैं नहीं जानता की वह दोषी था या निर्दोष लेकिन जिस तरह से उसकी हत्या की गयी वह बहुत ही घटिया और निर्मम है |निर्दोषों की निष्ठुरता से, मानवता की नृशंसता से और शांति की खौफ से
समाप्ति का कब तक यह निर्दयी नाच चलेगा ......कब तक हम हर वात के लिए चुप-चाप बैठे रहेंगे ..कब तक ये संहार चलेगा और कब तक ये चीत्कार उठेंगी मानवता का सरेआम कब तक ये उल्हास उड़ेगा ???
थू है ऐसे स्वाभिमान पर ऐसे अभिमान पर जो दुशमनों को जमीन न चटा सके .

अगर मेरा भारत कथित भारत महान नहीं होकर केवल भारत होता ..य्हना के लोग भारतीय होते ..यहाँ के लोग हिन्दू मुसलमान ..सिक्ख इसाई नहीं होते केवल हिन्दुस्तानी और भारतीय होते यहाँ अमेरिका के गुलाम कभी सरकारी नोकर रहे मनमोहन सिंह की जगह हमारे जेसे पागल प्रधानमत्री होते ..सियासी पार्टियां कुर्सी के लियें नहीं देश के लिए लड़ रहे होते ...हमारे देश में से लड़ने का खुद का होसला होता ..हमे इसके लियें अमेरिका की इजाज़त की जरूरत नहीं होती
तो दोस्तों यकीन मानिए आज पाकिस्तान पकिस्तान नहीं रहा होता पाकिस्तान भारत के नक्शे में शामिल होता और हमारे सरबजीत जेसे ना जाने कितने लाडले ज़िंदा रहकर हमारे साथ होते ..हमारे कई निद्र्दोश लोग बेमोत आतंकी मोत मरने से बच जाते कश्मीर हमारे देश की सीमाओं के साथ बलात्कार नहीं कर रहा होता ..चीन हमारी इज्ज़त को तार तार नहीं कर रहा होता और हम चीन की सीमाओं में होते ओर चीन हमसे उसकी सीमाओं की जमीन देने की भीख मांग रहा होता लेकिन दोस्तों जिन हाथों में परमाणु का रिमोट है देश का स्वाभिमान है वोह हाथ अमेरिका के आगे बेबस पाकिस्तान और आतंकियों सहित चीनियों के सामने बेबस और नतमस्तक है मुझे शर्म आती है ऐसे लोकतंत्र पे जहां ऐसा प्रधानमन्त्री होता है जिसे जनता का एक व्यक्ति भी वोट देकर नहीं जिताता और अनचाहा व्यक्ति देश की सुरक्षा अस्मिता खुशाहली के भविष्य का फेसला करता है थू है ऐसे स्वाभिमान पर ऐसे अभिमान पर जो दुशमनों को जमीन न चटा सके .
 23 साल जेल में दर्द सहे और 25 लाख का मुआवजा देकर
उस दर्द को कम करने की कोशिश
की गयी हमारी लोकतांत्रिक/पारिवारिक सरकार द्वारा. वाह रे तेरा इन्साफ, वाह रे तेरा इंसान की बोली लगाना. पहले सामान की बोली लगती थी, फिर दौर आया खेल और
खिलाड़ियों की बोली लगने का और अब इंसान के
पार्थिव शरीर का. अब और भी कुछ
बचा हों तो उसकी भी बोली लगाने और देखने के लिए
तैयार हों जायें. * किसी का तन बिक रहा है, किसी का मन बिक रहा है!
* तू इंसानों की छोड़ अब तो साल अपना वतन बिक
रहा है!! # सरबजीत के शहीद होने पर कांग्रेस सरकार ने
सरबजीत के परिवार के लिए २५ लाख का मरहम लगाने
की कोशिश की है 
@@@ 
 सरबजीत सिंह अनजाने में सीमा पार कर पाकिस्तान गए एक भारतीय जासूस हों या किसान, लाहौर जेल में अपराधियों के हाथों हुई मौत के बाद शहीद हो गए हैं ।
सरबजीत की बहन दलबीर कौर, उनकी पत्नी और दो बेटियां उन्हें जिंदा वतन वापस लाने की लड़ाई भले ही हार गयी हों पर उनकी मौत ने भारत के सामने पाकिस्तान की सरकारी एजेंसियों और गैर-सरकारी तत्वों की संदिग्ध भूमिका को ला खड़ा किया है ।
सरबजीत के परिवार का कहना है कि वह 23 साल पहले नशे की हालत में अनजाने में ही भारत-पाक सीमा पार कर गए थे । उन्हें 1990 में पाकिस्तानी सेना ने मंजीत सिंह के नाम से गिरफ्तार कर लिया था ।
भारतीय जासूस होने के आरोप में सरबजीत पर 1989 में लाहौर और मुल्तान में सिलसिलेवार बम धमाकों की साजिश रचने का केस दर्ज कर दोषी ठहाराया गया और आखिरकार मौत की सजा सुनायी गयी ।
सरबजीत पर एक के बाद एक कई अदालतों में मुकदमा चला और मौत की सजा सुनायी गयी । उन पर चलाया गया मुकदमा उनके एक इकबालिया बयान पर आधारित था जिसके बारे में पाकिस्तानी अधिकारियों का दावा है कि उन्होंने जांच के

दौरान यह बयान दिया था ।
बहरहाल, सरबजीत ने मुकदमे के दौरान अदालत को बताया था कि वह भारत के एक किसान हैं और नशे की हालत में सीमा पार कर पाकिस्तान चले आए हैं ।
सरबजीत की बड़ी बहन दलबीर कौर ने अपने भाई को रिहा कराने की मुहिम के तहत पाकिस्तान में अस्मां जहांगीर और अंसार बर्नी जैसे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से हाथ मिलाया और सीमा पार के दौरे पर गयीं । एक वक्त ऐसा था जब लगा कि दलबीर अपनी मुहिम में कामयाब हो जाएंगी । राष्ट्रपति के पास दया याचिका तक दायर की गयी ।
लेकिन लाहौर के कोट लखपत जेल में बंद सरबजीत अपने साथी कैदियों की ओर से किए गए हमलों को झेल नहीं पाए और अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया । माना जा रहा है कि पिछले साल आमिर अजमल कसाब को दी गयी फांसी का बदला लेने के लिए कैदियों ने सरबजीत पर जानलेवा हमला किया ।
जिस वक्त सरबजीत पाकिस्तान की सीमा में गए थे उस वक्त उनकी बेटियां नाबालिग थीं । उन्होंने अपने पिता की पहली झलक 2008 में उस वक्त पायी थी जब वे अपनी मां और बुआ के साथ पाकिस्तान गयी थीं @@@

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