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अप्रैल, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मेहनत

  कर्म और किस्मत पर हज़ारो सालो से विद्वान और दार्शनिक लोगो के बीच मे बहस होता आई है, किसकी महत्ता ज़्यादा है और कौन ज़्यादा प्रभावशाली है इस पर अभी भी लोगो के विचार बहुत अलग है। जीवन के सिद्धांतो मे कर्म और किस्मत एक पहेली हैं जिन्हे अभी कर कोई भी हल नही कर पाया है। प्राचीन वेदो मे किस्मत और कर्म को दो अलग अलग पहलु के रुप मे बताया गया है जो कभी न कभी हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। यह विषय थोड़ा जटिल और मुश्किल है। जबसे मनुष्य इस धरती पर आया है तबसे लेकर आज तक उसकी ज्ञान, सत्य और सुख पाने की जिज्ञासा अभी तक शांत नही ही है अभी भी वह सुख समृद्धि पाने के लिए व्याकुल है। कर्म एक क्रिया है जिसमे आप अपने स्वभाव के अनुसार कार्य करते है, कर्म किसी इच्छा को पाने के लिया किया गया प्रयास है। कर्म क्या है ? वेदो और पुराणो मे कर्म को मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म माना गया है। ईश्वर की परम कृपा पाने और जीवन को सफल बनाने के सिर्फ एक ही मार्ग है कर्म का मार्ग। ऐसा माना जाता है कि अपने जीवन मे हम जो भी कार्य करते उसका अच्छा या बुरा परिणाम हमे अवश्य मिलता है। जो भी सुख या दुख हम भोगते है वें कही न कह...

लम्हों का सफ़र

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1...  जिसको चाहा वो चला गया , अकेला था अकेला ही रह गया  ।  वो एक चेहरा फिर कभी न देख पाया , व़ो  एक हँसी जिसको कभी न समेट पा या , एक दिन अचानक बिछड़ के फिर न मिल पाया , वरना मिलने वालो को बिछड़  बिछड़  के मिलता पाया  ।  कहाँ उनका रास्ता था और कहाँ रास्ता  मेरा  , कहीं किसी चौराहे रास्तों को मिलते न पाया , बिछड़ कर हर चेहरे एक चेहरा मे खोजता हूँ अब , भीड़ मे खुद को जब भी पाया तो तन्हा ही पाया ।  2...  बदलता रहा कलेंडर के पन्ने सालभर , बदला नहीं गम का मौसम सुबह शाम रात भर।  बाँटने के शौक मे क्या क्या न  बँटा जमीन पर,   देश  बँटे ,लोग  बँटे,वक़्त तक   बँटा  कलेंडर पर । कितने सारे लोग आये हमदर्द बताकर , मौका पाकर ले गए कलेडर से सपनो को नोंच कर । सच का टोकरा लिए बैठे रहे हम कलेंडर पर , बिक गए    दुनिया के  सारे  झूठ वक़्त के   बाजार पर । बदलते साल की खुशियों मे डूबा है ये शहर , कि...

प्रेम

अधूरेपन को प्रेम मानना कितना सही है?............... छोटी-सी इस ज़िंदगी में कइयों ने प्रेम किया होगा; कई प्रेम कर नहीं पाए होंगे, पर उसकी आकांक्षा में भटकते रहे हों, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। संभव है कि कई ऐसे हुए हों, जिन्हें लगता रहा उम्रभर कि वे प्रेम करते हैं, पर असलियत यह थी कि प्रेम के नाम किसी भ्रम का शिकार बनते रहे और ज़िंदगी में असल प्रेम से कभी सामना ही नहीं हुआ। प्रेम पर जब भी बा तें होती हैं तो यह कहने वाले बहुतेरे मिल जाते हैं कि प्रेम चर्चा का विषय नहीं है, इसकी तो बस अनुभूति ही संभव है और चूंकि सबकी अनुभूति अलग-अलग है, इसलिए सबके लिए प्रेम का अर्थ भी एक नहीं हो सकता है। इस धारणा से मैं पूरी तरह सहमत नहीं हूं। यह तर्क मूल विषय से पलायन का तर्क है। सच तो यह है कि प्रेम के कई चरण होते हैं और किसी एक चरण को अकेले में ही संपूर्ण प्रेम मान लेने की गलतियां लोग अमूमन करते फिरते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि प्रेम जीवन का इतना अहम हिस्सा है कि उसकी एक झलक मात्र ही जीवन में परिपूर्णता का अहसास देने लगती है। लोग समग्रता में इसे समझे बिना ही इसके बहाव में बह जाते हैं। जीवन अग...

दिल्ली कि गुड़िया

एक बार एक बच्ची ने अपने पिता से कहा- पापा मुझे राक्षस से डर लगता है, वे कैसे होते हैं? क्या वे मुझे खा जाएंगे? पापा ने डरी हुई बच्ची के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा कि डरने की कोई जरूरत नहीं है बेटी, आज के युग में राक्षस नहीं होते। अब यही बेटी अपने पापा से पूछ रही है कि अगर इस युग में राक्षस नहीं हैं तो कैसे एक 5 साल की मासूम बच्ची को बलात्कार का दर्द सहना पड़ता है? एक मासूम के साथ ऐसी दरिंदगी तो शायद राक्षस भी नहीं दिखाते। तो क्या सच में आज का इंसान राक्षस से भी बदतर हो गया है? उस मासूम के साथ हुए दर्दनाक हादसे के बाद अपने आस-पास के लोगों के इंसान होने का भ्रम टूटता है। दरअसल, इंसानी चोले में ये दरिंदे राक्षस हैं। जी नहीं, शायद ऐसे लोगों के लिए कहीं और भी ज्यादा शर्मनाक विशेषण की जरूरत पड़ेगी। अजीब देश है हमारा। साल में नवरात्रि के 18 दिन शक्ति की स्वरूप मां दुर्गा की पूजा इतने धूम-धाम से की जाती है। लेकिन वास्तविकता में लोग उनका ही रूप माने जाने वाली महिलाओं के साथ जानवरों से भी गया-गुजरा सलूक करते हैं। सिर्फ बलात्कार नहीं करते बल्कि ऐसी पाशविकता दिखाते हैं कि रूह कांप ज...

साहस

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जब आप स्वयं की ओर देखते हैं तब क्या देख सकते हैं? क्या आपको कोई ऐसा दिखाई देता है जो आपकी अपनी क्षमता से कम अच्छे से रह रहा है? या आप किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो हर किसी से इस लिए दब जाता है और भय के कारण उनकी हर बात मान लेता है, कि कहीं वह उसका तिरस्कार न करें? या फिर आप किसी ऐसे व्यक्ति को देख सकते हैं जो स्वयं साहस के साथ हर बात का सामना कर सकता है? कठिन समय और परिस्थितियों में साहस त्याग कर हार मान लेना बहुत ही आसान होता है। यह सोच लेना कि “यह मेरे लिए नहीं है, यह भी सोच लेना बहुत आसान होता है कि दूसरे एक अच्छा जीवन जी सकते हैं परन्तु मैं नहीं।”  जो कुछ हो रहा है उसे आराम से लेट कर देखते रहना बहुत ही आसान है पर समय बीतने के साथ-साथ समझ में आने लगता है इस तरह का आराम बाद में हमें पश्चाताप् की एक लम्बी सूची देता है। तब आप कहने लगते हैं, “काश मैं ने ऐसा किया होता या फिर काश मैं यह कह पाता आदि।” क्या आप अपने जीवन की चालक सीट पर बैठे हैं? क्या आपने यह सौभाग्य पाया है कि आप अपने जीवन का निर्णय ले सकतें हैं या फिर किसी और को अपने जीवन का निर्णय लेने दिया है?  क्या आप उन ...

सुख ओर दुख

सुख ओर दुख……जीवन ओर मृत्यु …… लगभग एक से ही युग्म है… दोनों युग्म विलोम शब्दों से बने है…सुख का विलोम दुख ओर जीवन का मृत्यु…पर क्या दोनों युग्मों को ठीक ठीक परिभाषित किया जा सकता है… लगता है की हाँ पर नहीं ये संभव नहीं है….. सुख ओर दुख पर कुछ हद तक सटीक लेख लिखा जा सकता है… क्योकि  लोगों के इस संदर्भ मे अपने अपने कुछ अनुभव है जिनको कलमबद्ध किया जा सकता है……. - पर जीवन ओर मृत्यु मे केवल जीवन के संदर्भ मे ही कुछ कहा जा सकता है… मृत्यु एक सत्य है पर मृत्यु के बाद क्या होता है ये सब केवल अनुमान हैं… क्यूंकी जो जान चूके वो वापस नहीं आते ओर बिना मारे इसको जाना नहीं केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है…  ये कुछ उसी तरह है की दो लोग समुद्र के किनारे खड़े हो कर उसकी गहराई का आकलन कर रहे हों…. ओर जब एक उसकी गहराई नापने को कूदा तो उस असीम सागर मे ही खो गया… ओर बाहर खड़े दूसरे व्यक्ति ने अनुमान लगाया की एक आदमी डूब कर मर जाए सागर इतना गहरा तो है ही…….. सुख दुख पर मैंने काफी कुछ पढ़ा पर कुछ निजी अनुभवों के कारण मैं कभी उनसे पूर्णत: सहमत नहीं हुआ………… - क्या है सुख ओर क्या है ...

सही दोस्त

फ़ुरसत में हूं। कभी-कभी जब फ़ुरसत में होता हूं, तो चिन्तन-मनन की प्रक्रिया चल पड़ती है। आज भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। आस-पास हमें हर दूसरा आदमी यह कहता हुआ मिल जाता है कि दुनिया बड़ी स्वार्थी है। ... और साथ में यह भी जोड़ देते हैं कि सच्चे दोस्त नहीं मिलते। भले ही अपने-आप में लाख कमी हो, दोस्तों में प्रायः दो गुण अवश्य ढूँढते हैं, एक मार्गदर्शक और दूसरा राज़दार! जब कभी भी हम मुसीबत में हों, किसी दोराहे पर अटक गए हों, तो वह हमें सही रास्ता सुझाए और जो व्यक्तिगत या विशेष योजना बने या जो बातें हम आपस में बांटें, उसे अपने तक ही सीमित रखे। कुल मिलाकर वह मेरी कमियों को भी दिखाए और हमारे साथ भी चले। दुनिया की भीड़ में कौन सही दोस्त है, कौन नहीं, इसकी तलाश चलती रहती है। आज फुरसत में हम भी एक कोशिश करके देख ही लेते हैं। काफ़ी सोच-विचार के बाद, अब सही दोस्त की तलाश में निकलने को हम और हमारा मन उद्यत हैं। बस अभी निकलने को ही थे कि एक एस.एम.एस. आता है। ‘इनबॉक्स’ में जाकर उसे देखता हूं। लिखा है – “दुनिया में कभी सही दोस्त की तलाश में बाहर मत निकलना ... चूँकि आजकल गर्मी प्रचंड है और मैं घर के अंदर ए....

दिव्या भारती

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दिव्या भारती की आज बीसवीं पुण्यतिथि है। बॉलीवुड में दिव्या भारती उन कलाकारों में गिनी जाती है जिनका करियर महज कुछ वर्ष का रहा लेकिन उन वर्षो में उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई। महज तीन वर्षो की एक्टिंग करियर में दिव्या भारती ने दर्शकों की खूब तालियां बटोरी। उनकी आकस्मिक मौत ने भी लोगों को बड़ी हैरत में डाल दिया। 5 अप्रैल 1993 में उनकी सिर्फ 19 साल की उम्र में मौत हो गई।   शोख,चुलबुली और देहाभिनय की एक नई भाषा गढ़ने वाली दिव्या भारती की याद है क्या आप सब को अभी भी? चलिए हम ही याद दिला देते हैं। विश्वात्मा फ़िल्म की याद है आप को? इस फ़िल्म ने दिव्या भारती को स्टार बना दिया था। एक बार तो लगा कि श्रीदेवी का सिंहासन अब दिव्या ही संभाल लेंगी। यह अस्सी के दशक के आखिर की बात है। पर फ़िल्मी पंडितों का यह कयास कयास ही रह गया। दिव्या भारती की दिव्य देह बिला गई। जो देह शोला बनना को बेताब थी, जुगनू बन कर बिसर गई। पर वह, उन की शोखी, उन की देह की मादकता और उस का जादू मन में जैसे अभी भी जस का तस शेष है। लेकिन वह हम से इतनी जल्दी इतनी दूर चली जाएंगी, भला किसे मालूम था? मालूम तो ब...