होली

जिं दगी जब सारी खुशियों को स्वयं में समेटकर प्रस्तुति का बहाना माँगती है तब प्रकृति मनुष्य को होली जैसा त्योहार देती है।  होली भारत का एक विशिष्ट सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक त्यौहार है। अध्यात्म का अर्थ है मनुष्य का ईश्वर से संबंधित होना है या स्वयं का स्वयं के साथ संबंधित होना। इसलिए होली मानव का परमात्मा से एवं स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का पर्व है। असल में होली बुराइयों के विरुध्द उठा एक प्रयत्न है, इसी से जिंदगी जीने का नया अंदाज मिलता है, औरों के दुख-दर्द को बाँटा जाता है, बिखरती मानवीय संवेदनाओं को जोड़ा जाता है। आनंद और उल्लास के इस सबसे मुखर त्योहार को हमने कहाँ-से-कहाँ लाकर खड़ा कर दिया है। कभी होली के चंग की हुंकार से जहाँ मन के रंजिश की गाँठें खुलती थीं, दूरियाँ सिमटती थीं वहाँ आज होली के हुड़दंग, अश्लील हरकतों और गंदे तथा हानिकारक पदार्थों के प्रयोग से भयाक्रांत डरे सहमे लोगों के मनों में होली का वास्तविक अर्थ गुम हो रहा है। होली के मोहक रंगों की फुहार से जहाँ प्यार, स्नेह और अपनत्व बिखरता था आज वहीं खतरनाक केमिकल, गुलाल और नकली रंगों से अनेक बीमारियाँ बढ़ रही हैं और मनों की दूरियाँ भी।  अबीर गुलाल उड़ाते लोग । कहीं पिचकारी से तो कहीं गुब्बारों से एक दूसरे के ऊपर पानी फेंकते लोग। कहीं शराब/भंग के नशे मे हो हल्ला करते लोग। ये एक आम परिभाषा है होली की। किसी बच्चे से यदि होली पर कुछ लिखने को कहा जाए तो शायद वो यही लिखे। बच्चे क्या लगभग सभी एक लिए होली का यही अर्थ है।

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पर होली इससे कुछ ओर है शायद। होली जिस समय पर मनाई जाती है उस समय जाड़ा पूरी तरह से समाप्ती की ओर व गर्मी अपने स्वागत की प्रतीक्षा मे होती है। तब होली जलायी जाती है। जिसका अर्थ है की मौसम के बदलाव के साथ होने वाली सभी रोग व्याधियाँ भी उस आग मे जल जाएँ।

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वास्तव मे गौर किया जाए तो होली जैसा कोई पर्व नहीं है। होली के हर पहलू मे एक संदेश छुपा है। होली ये संदेश देती है की इंसान से रूप रंग के कारण कोई भेद भाव नहीं होना चाहिए जिस तरह गुलाल और रंगों के पीछे सारे लोग एक जैसे हो जाते हैं न कोई गोरा रह जाता है ओर न कोई काला उसी तरह वास्तविक जीवन मे भी हमें ये समझना चाहिए की ये सौन्दर्य महत्वपूर्ण नहीं है अपितु मानव का मोल है।
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जिस तरह होली मे रंगों से भीगे कपड़ों मे ये पता लगाना मुश्किल हो जाता है की कौन अमीर है ओर कौन गरीब उसी तरह वास्तविक जीवन मे भी किसी के रूप रंग वेशभूषा से उसका आंकलन नहीं किया जाना चाहिए। बिना किसी भेद भाव के हर किसी को अपना बनाने का प्रयास करना चाहिए।

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होली ही एक ऐसा त्योहार है की जब हम अक्सर किसी अंजान को भी होली की मस्ती मे सराबोर होकर गले लगाते हैं । हम नहीं जानते की वो कोई हिन्दू है या मुस्लिम या अन्य किसी संप्रदाय का । एक आत्मीयता से हम उसको अपने हृदय से लगा कर प्रफुल्लित होते हैं । और कई बार तो होली कई पूराने गिले शिकवे मिटाने का काम भी कर जाती है ।

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तो होली के इस महत्व को समझते हुए हमें ये प्रयास करने चाहिए की होली दिलों के बीच की दूरियाँ मिटाने के लिए हो दिलों मे दूरियाँ बनाने के लिए नहीं । होली शराब के नशे मे दोस्तों को दुश्मन न बना दे अपितु मस्ती मे दुश्मनों को भी अपना बना दे.

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