मन रे तू........
“मन से बाहर निकल जाइए, और आप जान लेंगे कि यह क्या है: वह जो आदि रहित और अनंत है। मन का आदि है और अंत भी है, इसलिए मन और वास्तविकता कभी नहीं मिल सकते। मन शाश्वत को नहीं समझ सकता।
और यदि आप सचमुच समझना चाहते हैं, तो आपको मन को खोना पड़ेगा। आपको मन को खोने की कीमत चुकानी पड़ेगी। लेकिन यदि आप ज़िद करेंगे, ‘मुझे तो मन के माध्यम से ही समझना है,’ तो केवल एक ही चीज़ संभव है मन धीरे-धीरे आपको यकीन दिला देगा कि कुछ भी ऐसा नहीं है जो आदि रहित हो, कुछ भी ऐसा नहीं है जो अंतहीन हो, कुछ भी ऐसा नहीं है जो अज्ञेय हो।
धीरे-धीरे, वास्तविकता से संपर्क करने की कला सीखिए, बिना मन के बीच में आने के। कभी-कभी जब सूरज अस्त हो रहा हो, बस बैठ जाइए और सूरज को देखते रहिए, उसके बारे में सोचिए मत — केवल देखिए, मूल्यांकन मत कीजिए, यहाँ तक कि यह भी मत कहिए ‘कितना सुंदर है!’ जिस क्षण आप कुछ कहते हैं, मन बीच में आ जाता है
यदि आप सचमुच समझना चाहते हैं, तो आपको मन को खोना पड़ेगा। आपको मन को खोने की कीमत चुकानी पड़ेगी। लेकिन यदि आप मन का ही उपयोग करने पर ज़ोर देंगे, तो केवल वही ज्ञान मिलेगा, केवल वही चीज़ें मिलेंगी जिन्हें मन समझ सकता है। आप माया में ही बने रहेंगे।”
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