सच्चाई खुद की
जरूरत से ज्यादा महत्व
आप टूटेंगे और वे आदत बना लेंगे.
हम इंसान हैं. प्यार करते हैं, महत्व देते हैं, ख्याल रखते हैं. कभी-कभी अपनी सीमाएं लांघकर, अपने आराम और ज़रूरतों को पीछे छोड़कर, दूसरों को समय, अवसर और स्नेह दे बैठते हैं. लेकिन सच यह है जब आप किसी को उसकी ज़रूरत से ज़्यादा अहमियत देते हैं, तब आप अनजाने में अपने ही अपमान की नींव रख रहे होते हैं.
यह बात कड़वी है, लेकिन सच है.
जब आप किसी को बार-बार प्राथमिकता देते हैं, तो धीरे-धीरे वे यह मानने लगते हैं कि आप तो हमेशा उपलब्ध हैं.
जब भी कॉल करेंगे, आप उठाएंगे. जब भी जरूरत होगी, आप दौड़कर आ जाएंगे.
फिर वे आपको कोई "खास" नहीं मानते, बल्कि "आसान" समझने लगते हैं.
वे इस आदर और सहयोग को सराहना नहीं, अधिकार समझने लगते हैं.
आपका समय, आपकी सहानुभूति, आपकी चिंता सब कुछ उनके लिए एक आदत बन जाती है. उन्हें महसूस ही नहीं होता कि आप क्या खो रहे हैं, कितना दे रहे हैं.
धीरे-धीरे वे आपकी सीमाएं लांघना शुरू कर देते हैं.
क्योंकि आपने एक बार, दो बार, दस बार चुपचाप सह लिया.
अब उन्हें लगता है कि आप सब कुछ सह सकते हैं.
और जब आप थकने लगते हैं, तब भी वे इसे आपकी कमजोरी मानते हैं—not your exhaustion but your obligation.
अगर आप कुछ नहीं कहते, तो उन्हें कभी एहसास नहीं होगा कि आप अंदर से टूट रहे हैं.
अगर आप हर बार पीछे हटते रहेंगे, तो एक दिन आपकी भावनाएं उन्हें 'ओवर' लगेगी.
वे कहेंगे "तुम ज़रूरत से ज़्यादा सोचते हो"
“हर चीज़ पर इतना क्यों रिएक्ट करते हो ?
और उस दिन आपके जज़्बात भी उनके लिए ‘फालतू’ लगने लगेंगे.
तो फिर करना क्या चाहिए ?
सीमाएं तय कीजिए.
सबसे पहले खुद को समझाइए कि आप कितना दे सकते हैं और किस हद तक देने से आप खुद थकने लगते हैं.
किसी को उसका सम्मान दीजिए, लेकिन अपनी शांति की कीमत पर नहीं.
अपने समय को महत्व दीजिए. आपका समय भी कीमती है.
जो लोग आपको महत्व नहीं देते, उनके लिए अपना समय बर्बाद मत कीजिए.
वक़्त दीजिए उन लोगों को, जो वक़्त देने के काबिल हैं.
ना कहना सीखिए.
ना कहना बदतमीज़ी नहीं होती, ये आत्मरक्षा है.
आप हर बार मदद नहीं कर सकते.
हर कोई आपकी जिम्मेदारी नहीं है.
ज़रूरत और महत्व में फर्क कीजिए.
ज़रूरत के समय हर कोई मीठा बन जाता है. लेकिन जो सिर्फ ज़रूरत में याद करें, उनसे संबंध नहीं सीमा रखें.
जो लोग आपको सिर्फ ज़रूरत के वक़्त याद करते हैं, उनके लिए आपको हमेशा इंतज़ार नहीं करना चाहिए.
एक पंक्ति याद रखिए: अगर आप हमेशा किसी की परछाईं बनकर रहेंगे, तो वे आपको कभी सूरज मानना ही भूल जाएंगे.
प्यार, सहानुभूति और समय ये तीनों बेहद कीमती होते हैं. लेकिन इन्हें कब, किसे और कितनी मात्रा में देना है ये निर्णय आपको बेहद सोच-समझकर लेना चाहिए.
दूसरों को खुश करने के चक्कर में, खुद की शांति मत खो बैठिए.
कभी भी किसी को उसकी ज़रूरत से ज़्यादा वक़्त, महत्व या अवसर मत दीजिए. क्योंकि जब आप ज़्यादा देने लगते हैं, तो वह एहसान नहीं, आदत बन जाती है.
और एक बार जब वो आदत बन जाए, तब उसकी कद्र खो जाती है.
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