बदला ओर बदलाव



प्रिय प्रधानमंत्री जी, 

बदला चाहिए,
बदलाव चाहिए,
जवाब चाहिए...

बदला पाकिस्तान से,
बदलाव सिस्टम में और जवाब सरकार से. 

बदला: 

महोदय, मैं किसी युद्धोन्माद की आग में नहीं झुलस रहा. मैं नहीं चाहता कि मेरे व्यक्तिगत भावना के संपोषण के लिए मेरे और भाई शहीद हो. एक और मां-बाप बेऔलाद हो जाए. कोई बच्चा फिर से पितृछाया से विहीन हो जाए. लेकिन, इसका ये मतलब भी नहीं कि मुझे पाकिस्तान से, आतंकवादियों से बदला नहीं चाहिए. बिल्कुल चाहिए. लेकिन, जीरो कैजुअलिटी पर. मुझे नहीं मालूम ऐसा कर पाना कैसे संभव होगा? लेकिन, इसे संभव बनाने की ताकत हमारी सेना, हमारे रणनीतिकारों के पास होगी, ये विश्वास है. ये विश्वास है कि अगर सरकार चाहे तो कश्मीर समस्या का समाधान निकल सकती है, बशर्ते नीयत साफ हो. हां, जरूरत हो तो कश्मीर समाधान के लिए कश्मीर को “BOWL OF SALAD” या फिर “MELTING POT” भी बनाया जा सकता है. 

बदलाव: 

महोदय, सिस्टम में बदलाव की बात तो वैसे बहुत बडी बात है. फिलहाल, कम से कम ऐसे बदलाव तो अपरिहार्य है कि एक पठानकोट के बाद, उरी और फिर उरी के बाद पुलवामा जैसी घटनाएं बार-बार दुहराई न जा सके. इंटेलीजेंस की सूचनाओं को महज पीस ऑफ इंफॉर्मेशन मान कर नजरअन्दाज न किया जाए. जिसने इसे नजरअन्दाज किया और जिस वजह से नुकसान हुआ, उसके खिलाफ कडी कार्रवाई हो. तनावग्रस्त इलाकों में जवानों की अधिकतम सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तकनीक का अधिकतम इस्तेमाल हो. कम से कम अब तो ये बदलाव हो कि सेना और अर्द्धसेना के जवानों की शहादत में कोई फर्क न हो. ये भी बदलाव हो कि देश की रक्षा में चाहे जो शहीद हो, सबको बराबर सम्मान, बराबर अधिकार, बराबर सहयता मिले. ये भी बदलाव हो कि अर्द्धसेना के जवानों को रिटायरमेंट के बाद सेना की तरह ही समान पेंशन मिले.  

सवाल: 

प्रधानमंत्री जी, सवाल ये है कि आखिर आपके उस दावे का क्या हुआ, जिसमें आपने कहा था कि हमारी सरकार ने नोटबन्दी कर के आतंकियों की कमर तोड दी? सवाल ये है कि आखिर कश्मीरी सुसाइड बम्बर क्यों बन रहे है (ये बहुत ही खतरनाक ट्रेंड है)? यह ट्रेंड अगर जल्द से जल्द नहीं थमा तो हमारे लिए नासूर बन सकता है. क्या आप मानेंगे कि सरकार की कश्मीर नीति फेल हो चुकी है (वह भी तब जब भाजपा वहां कुछ साल सत्ता में रह चुकी है)? एनआईए पिछले कुछ सालों से हुर्रियत नेताओं की जांच कर रही है? क्या आप बता सकते है कि ये जांच कब अपने कनक्लूजन पर पहुंचेगा? 

सर, आपने कहा कि आपका भी खून खौल रहा है. माफ कीजिएगा, आप पर सवा अरब देशवासी समेत दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र की रक्षा की जिम्मेदारी है. आप अगर अपना खून खौलाएंगे तो फिर सही फैसला कैसे ले पाएंगे? आप शांतचित्त हो कर काम करिए, फैसले लीजिए. अपनी सरकार, मंत्रियों, बडॆ नेताओं समेत खुद भी जनता से शांति-धैर्य बनाए रखने की अपील करिए. जम्मू से ले कर देश के कई कोनों में लगातार जनता के गुस्से का सडक पर प्रदर्शन चालू है. ये प्रदर्शन कहीं हिंसक न हो जाए, इसलिए आप अपने सवा अरब देशवासियों के नाम संदेश दीजिए. चुनाव का वक्त है. हो सकता है, राजनीतिक दल जनता के गुस्सा का गलत फायदा उठाने की कोशिश करे. इस वजह से कुछ गलत भी हो सकता है. सीमा पर और सीमा के भीतर सुरक्षा का माहौल बनाना भी आपकी ही जिम्मेवारी है. 

अंत में सिर्फ एक और सवाल? क्या आप ये सुनिश्चित करवा सकते है कि कोई भी राजनीतिक दल हमारे जवानों की शहादत को चुनावी राजनीति का हथसके?

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