मुद्दा

माँ रोज़ तरह तरह के परांठे बनाती हैं। आज मटर के परांठे बने हैं। शायद ही किसी और के यहाँ बनते होंगे। मटर को छीलकर मिक्सी में चलाकर जो स्टफ बनता है न, वो जब परांठे में लहसन और तमाम मसालों के साथ सेका जाता है और फिर मक्खन के साथ परोसा जाता है, तो 'यू कैन विन' के सब फंडे फीके पड़ जाते हैं और आप वैसे ही जीत जाते हैं। जैसे अखिलेश जीत गये हैं, आधे। साइकिल को मिक्सी में चलाकर, तमाम मसालों के साथ, सेकने का प्रयास अतुलनीय है। मोदी जब आये थे तब मुद्दा विकास था, लेकिन फिर भला हो हमाई बाकी पार्टियों का, मुद्दा अब बैल है। मतलब क्या ही तो हो रहा है देश के साथ। इंडिया का आईडिया अब चूल्हे पर चढ़ाकर, मुद्दा हमारा रोटी नहीं, बैल है। मुद्दा हमारा देश नहीं, मुद्दा मंदिर भी नहीं, मुद्दा हमारा गाय बैल से आगे ही नहीं बढ़ पा रहा। ट्रम्प आ गया है, चाइना चिलमिला रहा है, टेररिज्म बढ़ रहा है, और भारत की आधी आबादी बैल से खेले या नहीं खेले, यही सोच रही है। मटर के पराँठे हैं, पर दही क्यूँ नहीं है इस पर चर्चा है। विकास बेचारा, बातों में उलझा रह गया, फाइलों में ही बंद रह गया, मुश्किलों में ही दबा रह गया। इधर कम्पनियाँ प्लेसमेंट तो कर नहीं रही, बल्कि बन्दे बाहर और करती जा रही है, रिसेशन जैसे चांसेस हो रहे हैं, और मुद्दा बैल पर लटका हुआ है। पड़ोस वाली आंटी कह रही थी कि फेसबुक नें बेड़ागर्क कर रखा है देश का। होली पर पानी है मुद्दा, दिवाली पर धुंआ है मुद्दा, वेंटीलेटर पर ही चल रहा है बेचारा। मोदी जी कह रहे थे अच्छे दिन आयेंगे। यहाँ देश तनिक भी नहीं बदला, पिछले तीन साल में। सब वैसा का वैसा है। घोटाले ही कर लो, कम से कम आम आदमी यही फील कर लेगा की कुछ किया। जैसे थ्री जी घोटाले में ये तो था न कि थ्री जी आयेगा। अभी तो आता जाता ही नहीं दिख रहा। ऐसे में कुछ लोग, अगर कांग्रेस जैसी पार्टियों का सहारा लेकर, जब पंजाब के विकास की बात करते हैं, तो फिर लगता है कि बैल का मुद्दा ही अच्छा है। ठोको ताली।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता है,

परफेक्शन

धर्म के नाम पर