नया साल, नया खुशी
नया साल, नया दिन, मन में उत्साह, उल्लास, एक उमंग, कुछ अलग करने की तमन्ना इत्यादि । यह सब खुशी की ही तरंगें है । खुशी का नाम सुनते ही बुझे हुए चेहरों पर रौनक आ जाती है, सुख की चमक आ जाती है । कौन है जो सुखी नहीं होना चाहता? हर कोई अपने घर में खुशी बनाए रखना चाहता है और अपने घर से ज्यादा समय तक कोई भी दूर नहीं रह सकता । घर आ कर ही उसे शान्ति मिलती है । खुशी के लिए किसी वस्तु का होना जरूरी नहीं ।
कभी-कभी तो हम यह भी नहीं जानते होते कि हमें क्या चाहिए । बस कोई कमी सी महसूस होती है जिसके कारण हम जीने का पूरा आनन्द नहीं उठा पाते । सब कुछ होते हुए भी मन उदास रहता है । आखिर क्या कारण है कि हम खुशी से दूर है? क्यों मन में बेचैनी रहती है? क्यों मन में एक अनजानी सी कमी रहती है जैसे कुछ विशेष खो गया हो । आखिर वजह क्या है । कही बात केवल इतनी तो नहीं कि हमें शिकायत की आदत पड़ गई है? कोई न कोई गुत्थी उलझाए-सुलझाए बिना हमें भी चैन नहीं आता । जो पास है उस की कद्र नहीं, जो नहीं है उस के लिए तड़पेंगे ।
अगर हमें यह बोध हो जाए कि जीने के लिए तरह-तरह की वस्तुओं की जरूरत नहीं । भीड़ चाहे जितनी मर्जी जमा कर लें अपने आस पास । आखिर तो साथ निभाने वाले दो – चार रिश्ते ही होते है । लेकिन इन रिश्तों की कद्र अब कम होती जा रही है । लोग चीजें से तो प्यार करते है और इन्सानों का इस्तेमाल । ये जानते हुए भी कि इनमें से एक भी वस्तु हमारे साथ नहीं जानी
तो फिर किसलिए नफ़रत किस लिए लड़ाई – झगड़ा? क्यों आपस में तकरार? क्यों हम अपने बहुमूल्य रिश्तों को छोटी – छोटी बातों के लिए तोड़ रहे है? गलतीया सब से होती है, तो क्या हम उन्हें माफ नही करे! जिंदगीभर के लिए नाता तोड़ ले । हम सभी चाहते तो खुशी है परन्तु उसे ढूँढ गलत जगह पर रहे है । कभी भी दौलत रिश्तों से कीमती नहीं होती । अपने रिश्तों के बिना इन्सान अकेला हो जाता है । यह सच है कि हमें जो खुशी बचपन में एक छोटे-से मिट्टी के खिलौने से प्राप्त हो जाती थी, आज बड़ी से बड़ी वस्तु से भी नहीं मिलती । हमारे पास सब कुछ है फिर भी हम सुखी नहीं । पहले इतनी सुख-सुविधाओं के साधन नहीं थे परन्तु फिर भी हम सुखी थे । आज के समय में यदि कुछ मिनटों के लिए भी बिजली चली जाए तो हमारी साँस वही अटक जाती है । जबकि पिछले समय में तो बिजली थी ही नहीं । फिर भी लोग सुख से रहते थे । कारण क्या है? यही कि हमने स्वयं को सुविधाओं का दास बना लिया है । ये है तो हम है, ये नहीं तो हम भी नहीं ।
इस का अर्थ यह नहीं कि सुख-सुविधाएँ होनी ही नहीं चाहिए । जितनी हों अच्छा है, लेकिन स्वयं को इन पर इतना भी निर्भर न करें कि यही साधन दु ख के साधन बन जाएँ । यदि इस खोई हुई खुशी को जीवन में दोबारा लाना चाहते है, तो हमें इन्हें स्वयं तलाश करना होगा । जो खुशी आज हमारे लिए अजनबी हो गई है, कल हमारी साथी होगी । बस, दु ख को बढ़ावा देना छोड़ दें । यह सारी सृष्टि खुशियों से भरी पड़ी है ।
हर बात में हँसी है, हर बात में खुशी है । अन्तर केवल हमारे सोचने और समझने का है । यदि हम प्रयास करें तो अपने चारों ओर बिखरी खुशियों को संचित कर सकते है । सभी को अपना बनाते चलें । खुशियाँ और गम मिलकर बांटे क्योंकि हम प्राय : सुनते है कि खुशी बाँटने से दुगनी होती है और गम बाँटने से आधा रह जाता है । जितना हो सके, दूसरों को खुशी देने के विषय में सोचें, उस से हमें एक अद् भुत आनन्द की प्राप्ति होगी :
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