काश कोई धर्म ना होता ....
काश कोई धर्म ना होता.....…….काश कोई मजहब ना होता....कोई मस्जिद ना होती, कोई मंदिर ना होता कोई दलित ना होता, कोई काफ़िर ना होता कोई बेबस ना होता, कोई बेघर ना होता किसी के दर्द से कोई, बेखबर ना होता ना ही गीता होती , औरना कुरान होता तुझको जो जख्म होता, मेरा दिल तड़पता ना मैं हिन्दू होता, ना तू मुसलमान होता तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें