लिव-इन-रिलेशनशिप
बढ़ती भौतिकतावादी मानसिकता के कारण लिव-इन- रिलेशनशिप का चलन बढ़ता जा रहा
है, जिसके कारण जिम्मेदारियों से जुड़े रिश्ते जैसे विवाह और परिवार की
पारम्परिक मान्यताएं टूट रही हैं.हमारा समाज जो रुढ़िवादी होने के साथ-साथ परंपरावादी भी है, ऐसे किसी भी रिश्ते को जायज नहीं ठहराता जो महिला या पुरुष को शादी से पहले साथ रहने की इजाजत दें. और अगर ऐसे संबंधों के प्रभावों की चर्चा की जाए तो यह साफ हो जाता है कि लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे रिश्ते खासतौर पर महिलाओं के लिए घाटे का सौदा साबित होते हैं. गौरतलब है कि ऐसे रिश्तों को न तो कानून का कोई विशेष संरक्षण प्राप्त है और न ही समाज का, इसके उलट हमारा समाज तो ऐसे रिश्ते और इनका निर्वाह कर रहे लोगों को गलत नज़रों से देखता है. हम इस बात को कतई नकार नहीं सकते कि महिलाएं आज भी सामाजिक रूप से कई बंधनों और सीमाओं में जकड़ी हुई हैं. और बिना शादी किए साथ रहना उनके लिए एक अपराध माना जाता है. सामाजिक दायरों और सीमाओं की बात छोड़ भी दी जाए तो वैयक्तिक दृष्टिकोण से भी इसके कई दुष्प्रभाव हैं.जिन संबंधों को पारिवारिक और सामाजिक तौर पर मान्यता न मिले, यह अक्सर देखा गया है कि ऐसे संबंध स्थायी नहीं हो पाते. और इनके टूटने का खामियाज़ा केवल महिलाओं को ही भुगतना पड़ता हैं. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि एक तो महिलाएं पुरुषों के मुकाबले अधिक संवेदनशील होती हैं, और दूसरा ऐसी महिला जो बगैर शादी किए किसी पुरुष के साथ रहे उसे हमारा परंपरावादी समाज जो केवल विवाह जैसी संस्था को अपनाने के बाद ही इसकी इजाजत देता है, उसे हमेशा गलत नज़रों से देखता है और उसे वह सम्मान भी नहीं मिल पाता जिसकी वह अपेक्षा रखती है. यह मानसिक तौर पर तो उसे आघात पहुंचाता ही है, उसके चरित्र पर उठ रहीं अंगुलियां भी उसे जीने नहीं देतीं.
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