कल हो ना हो

मैंने हाल ही में एक किताब पढ़ी-“The Top Five Regrets of the Dying” जिसे एक नर्स Bronnie Ware ने लिखा है।
वो हर दिन उन लोगों के साथ रहती थी जो ज़िंदगी के आख़िरी मोड़ पर थे। मरने से पहले उन्होंने पाँच बातें कही पाँच पछतावे…जो शायद हमारे भी होंगे।

मरने से पहले लोगों के पाँच पछतावे:
1. काश मैं वो ज़िंदगी जी पाता जो मैं चाहता था, वो नहीं जो दुनिया मुझसे चाहती थी।
2. काश मैंने इतना काम न किया होता, थोड़ा वक्त अपने लिए भी निकाला होता।
3. काश मैंने अपने दिल की बात खुलकर कही होती, उसे भीतर दबाकर नहीं रखा होता।
4. काश मैंने अपने परिवार और दोस्तों के लिए और वक्त निकाला होता।
5. काश मैंने वो किया होता, जिससे मैं सच में खुश होता।

जब मैंने ये पढ़ा, तो दिल जैसे रुक गया…क्योंकि ये सिर्फ़ एक किताब नहीं थी-ये हम सबकी ज़िंदगी का आईना थी। क्योंकि हम भी तो यही करते हैं ना?
हर दिन कहते हैं-एक दिन मैं गाना गाऊँगा…..एक दिन मैं योगा शुरू करूँगा…एक दिन दुनिया घूमूँगा…एक दिन माँ के साथ पूरा दिन बिताऊँगा…एक दिन मैं खुद के लिए जियूँगा…”

पर क्या हम कभी रुके हैं ये सोचने के लिए कि कितने ‘एक दिन’ बचे हैं हमारे पास?
अगर आपकी उम्र 55 साल की है, तो लगभग आपके पास बस 10,000 दिन बचे हैं इस धरती पर।
दस हज़ार सुबह-शाम-और रात।बस इतना ही जीवन बाकी बचा है हमारे पास।
अब सोचिए-क्या हम इन्हें शिकायतों में बिताएँगे? या आभार, प्रेम और सुकून से?
हम सब कहते हैं-जब मैं रिटायर हो जाऊँगा, तब आराम करूँगा…जब बच्चे सेटल हो जाएँगे, तब मैं जीना शुरू करूँगा…”
पर तब तक ज़िंदगी, धीरे-धीरे हमारी मुठ्ठी से रेत की तरह फिसल चुकी होगी।
ज़िंदगी का Countdown शुरू हो गया है। इसलिए जो कहना है कह दो । जो करना है, कर लो।
कितनी बार दिल में आया कि माँ को कहें कि “माँ, तुम्हारे हाथ का पराँठा दुनिया का सबसे tasty पराँठा है।पर हम नहीं कहते। “अब कह दो ।”
अगर आप कह देंगे, वो महीनों खुश रहेगी। हर किसी को बताएगी कि “मेरे बेटे ने कहा कि मैं सबसे अच्छा खाना बनाती हूँ।”
कभी भाई से झगड़ा हुआ, पर हम गले नहीं लगाया और सोचा कि “पहले वो बोलेगा…” गले लगा लो ।” क्या पता कल हो न हो ।

कभी दोस्त को कॉल करना चाहा, पर सोचा -“वो तो अब व्यस्त होगा…”
अब call कर लो।
हम भावनाएँ दिल में रखते हैं, बोलते नहीं और धीरे-धीरे रिश्ते ठंडे पड़ जाते हैं।

श्रीराम के जीवन में सुख भी आया, दुख भी। राज मिला, फिर छिन गया।
लोगों ने पूजा भी की और अपमान भी किया। पर उन्होंने कभी शिकायत नहीं की।
जब राज्य मिला, वो विनम्र रहे। जब राज्य गया, तब भी शांत रहे।
क्योंकि उन्हें पता था कि “जो सत्य और धर्म के मार्ग पर चलता है, उसे मंज़िल की जल्दी नहीं होती।”
राम हमें सिखाते हैं —
“जीवन का उद्देश्य मंज़िल नहीं, यात्रा का आनंद लेना है।”
उन्होंने जीवन को कभी टाला नहीं, हर परिस्थिति में जिया।

तो अब हम क्या करें?
माँ से कहें-“माँ, आज तुम्हारे पराँठे वाक़ई जादू हैं।”
पिता से कहें-“आपसे बातें करना मुझे बहुत अच्छा लगता है।”
भाई से कहें-“चल, जो हुआ भूल जा।”
बहन को गले लगाएँ, दोस्तों को फोन करें,
और खुद से कहें —“अब नहीं टालना, अब जीना है।”

क्योंकि जब आख़िरी वक़्त आएगा, हमारे दिमाग़ में हमारी तनख्वाह नहीं घूमेगी, बल्कि वो चेहरे होंगे जिन्हें हमने मुस्कुराहट दी है ।
वो पल होंगे जब हमने किसी को अपनापन दिया था।
वो शामें होंगी जब हमने कहा था “आज मैं सच में खुश हूँ।”
हमें वो पाँच पश्चाताप नहीं होंगे


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