मिट्टी
जीवन में चाहे कैसी भी कठिन और निराशाजनक परिस्थितियां क्यों न हों, हर सुबह उठकर जब पैर ज़मीन पर रखें तो शुक्रिया करें उस ईश्वर का कि आपके जीवन में फिर एक नई रौशनी से भरा सवेरा आया है.
उस क्षण ज़मीन को छूकर माथे से अवश्य लगाना चाहिए कि हमारे पैरों में उस जमीन का अहसास अभी तक जिंदा है ।
वरना किसी ऐसी ही एक साधारण सी सुबह वह अहसास भी होगा जब पैरों तले कोई ज़मीन नहीं होगी और हम कहीं दूर से बस देख रहे होंगें अपनी इस काया को इसी ज़मीन की मिट्टी में मिलते हुए.
क्योंकि यही वह शास्वत् सत्य है जिसे जानते सब हैं, सोचता कोई नहीं लेकिन एक दिन रूबरू सभी को होना पड़ता है.
उस पल के विषय में जब कभी भीतर उतर कर सोचते हैं तो लगता है कि यह जीवन केवल एक भ्रम के अतिरिक्त और कुछ नहीं. और देखा जाए तो हम उसी मिट्टी से बने मिट्टी में मिलने के लिए ही जन्म लेते हैं.
फिर ये व्यर्थ के लोभ-शोक न जाने काहे इतने सिर पर चढ़कर बोलते हैं?
तो रोज़ सुबह उठकर यदि आपने ज़मीन पर पैर रखने का वो अहसास अपने भीतर उतार लिया तो यकीनन आप सदा ज़मीन से जुड़ कर रहेंगें और एक दिन ज़मीन की मिट्टी में मिलने का वो भय भी हमेशा-हमेशा के लिए चला जाएगा!
क्योंकि हर सुबह कई पैर ऐसे होते हैं जिन्हें ज़मीन छूना नसीब ही नहीं होता !
और नसीबवाले हैं वो जिनकी मिट्टी में अभी तक चेतना बाकी है!
बेहद सिंपल और छोटी सी कहानी है पैरों और मिट्टी के बीच होने वाले स्पर्श के इस मामूली से अंतर की !
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